नमस्कार दोस्तों आज हम आपको सीधे ले चलते किसान भाइयों के साथ खेत पर जहा से आपको बताएंगे कैसे सोयाबीन के प्रति किसान भाई उदासीन he । हमने आष्टा इछावर सीहोर शुजालपुर के किसानों से बातचीत करके ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है, हम आपको बताएंगे कि कैसे किसानों ने समय रहते खरीफ की बुवाई पूरी कर ली हैं। ज्यादातर किसान भाइयों ने सोयाबीन मक्के की फसल को प्राथमिकता दी है।
सोयाबीन के प्रति घटता झुकाव
जैसा की आप सभी को पता ही है कि पिछले साल सोयाबीन की फसल ना के बराबर हुई थी इस कारण इस साल किसानों को सोयाबीन के बीज की भारी किल्लत झेलनी पड़ी जो सोयाबीन सीजन के समय में 3000 से 4000 के रुपए प्रति क्विंटल बिका था आज वही बोनी के टाइम पर 8000 से ₹9000 प्रति क्विंटल मिल रहा है। इतने महंगे बीच के दामों के कारण ज्यादातर किसान भाइयों ने इस बार सोयाबीन के साथ-साथ दूसरी फसल जैसे मक्का उड़द ज्वार इत्यादि फसलों को भी अपने खेत में बोया है सोयाबीन पिछले दो-तीन सालों से किसानों को अच्छा फायदा नहीं पहुंचा पा रहा है।
इस साल सोयाबीन की बोनी थोड़ी जल्दी हुई है हर साल हिंदी महीने के हिसाब से गंगा दशहरा के समय बोनी शुरू होती है लेकिन लेकिन मानसून के जल्दी आने से आष्टा एवं उसके आसपास के गांव में सभी किसान भाइयों ने अपने अपने खेतों में सोयाबीन की बोनी पूरी कर ली।
सोयाबीन के बीज का इंतजाम कैसे किया
चलिए अब हम आपको बता दें कि किस तरीके से इस बार किसान भाइयों ने सोयाबीन के बीज का इंतजाम किया है – लगभग 50 परसेंट किसान भाइयों ने सोयाबीन के बीज का इंतजाम नवंबर दिसंबर के महीने में ही कर लिया था क्योंकि उस समय सोयाबीन ₹5000 प्रति क्विंटल मिल रहा था ज्यादातर लोग सोयाबीन शाजापुर एरिया से लेकर आए या कुछ लोग मंदसौर नीमच से भी बीच लेकर आए हैं छोटे एवं बाकी किसान लोग जिन्होंने वक्त रहते बीज का इंतजाम नहीं किया था उन लोगों को अभी 8000 से 9000 के भाव में सोयाबीन खरीदना पड़ा।
सोयाबीन फसल की लागत के बारे में
चलिए एक बार सोयाबीन फसल की लागत के बारे में बात करते हैं सोयाबीन की फसल कैश क्रॉप के बाद के नाम से भी जानी जाती है मतलब किसान सोयाबीन सीधे बाजार में बेचने के लिए उगाता है सोयाबीन की फसल को बोने के बाद सबसे पहले खरपतवार के लिए चारा मार दवाई डालनी पड़ती है, उसके बाद सोयाबीन के पत्तों में इल्ली लग जाती है इसलिए इल्ली मार दवाई का छिड़काव वापस से किया जाता है। सोयाबीन की फसल 60 से 90 दिनों में आ जाती है यदि मौसम साफ रहता है तो मजदूर के माध्यम से या हार्वेस्टर से सोयाबीन को काट लिया जाता है एवं थ्रेसर से निकालकर सोयाबीन किसान भाई अपने घर ले आते हैं। सोयाबीन की पैदावार अलग-अलग प्रकार की जमीन में अलग-अलग होती है फिर भी यदि अच्छी फसल हुई हो तो 1 एकड़ में 3 से 4 क्विंटल पैदावार होती है जोकि लागत काटने के बाद किसान भाई को थोड़ा बहुत मुनाफा de jati he। जिन लोगों के पास पानी की व्यवस्था नहीं रहती है या जमीन असिंचित है वहां पर सोयाबीन ही मेन फसल है पिछले साल सोयाबीन नहीं हुई थी इसलिए इस साल ज्यादातर किसान भाई सोयाबीन की फसल को लेकर बहुत एतिहाद बरत रहे हैं।
सोयाबीन की फसल के ऊपर बढ़ती प्रकृति की मार
खेती का धंधा ज्यादातर प्रकृति के ऊपर पूरा निर्भर है बुवाई के टाइम से लेकर कटाई तक किसी भी वक्त ज्यादा बारिश खरपतवार इल्लियो के प्रकोप इत्यादि से पूरी फसल चौपट हो जाने का खतरा बना रहता है, पिछले साल सोयाबीन की फसल बहुत अच्छी थी सभी लोगों ने बहुत मेहनत की थी लेकिन फसल आने के 1 महीने पहले अचानक से हुई बारिश से सारे सोयाबीन बांझ हो गए, इस कारण सोयाबीन की फसल नहीं हो पाई।
हम सभी लोगों को खेती के धंधे के प्रति अच्छा भाव रखना चाहिए एवं ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कि देश के अन्नदाता को प्रकृति की मार ना झेलना पड़े।
सरकार की मुआवजा राशि से किसान को राहत
सोयाबीन की फसल ना होने के कारण सरकार ने सभी किसान भाइयों को उचित मुआवजा राशि देकर काफी सहयोग दिया हालांकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अभी भी फसल का नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई है किसान भाइयों को इंतजार रहेगा कि जल्द से जल्द पिछले साल का फसल बीमा किसान भाइयों को मिले।