“हॉरर स्टोरीज,क्राइम बेस्ड स्टोरीज और उनके दुष्प्रभाव”, को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%B9%E0%A5%89%E0%A4%B0%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%9C%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%87%E0%A4%AE-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A1-%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%9C-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B5-4sqo8ouepukm?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!
ग्राम भौंरा में 2 सालो के बाद भव्य मैले (जत्रा) का आयोजन किया गया :-
इलाही माता मंदिर में तेल चढ़ाने का कार्यक्रम –
यह कार्यक्रम नवमी (श्रीराम नवमी)के दिन शाम से शुरू होता है, जो की दशमी, एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), तेरस के दिन तक चढ़ता है । इस तरह माई के दरबार में पूरे पांच दिन तक तेल चढ़ाने (बाने बिठाने) का कार्यक्रम चलता है। इस कार्यक्रम में सभी गांव की लड़कियां एवं महिलाएं शाम के समय तेल चढ़ाने जाती हैं और वहीं तेल चढ़ाने के बाद नाचती गाती हैं, और सभी बड़े ही धूम – धाम से इस अवसर का आनंद लेती हैं। इस कार्यक्रम के दौरान मैय्या के दरबार को लाइट और सजावट से बड़ा ही सुन्दर सजाया जाता है वह नजारा मन को प्रफुल्लित करता है, साथ ही नचाई के लिए तीन से चार ढोल रहते है।


तेरस के दिन शाम को मेला लगता है और यह दो दिनों तक रहता है, चतुर्दशी (चौदस) के दिन सुबह के समय माता मंदिर में महाआरती का आयोजन होता है चवदश कि सुबह 5 बजे भंवरा ईलाई माता को पूजा चढ़ाई जाती है जिसमें पूरे गांव का हर व्यक्ति शामिल होता है 🙏🙏🙏 जिसमे सभी महिलाएं दीपक और पूजा की थाल सजाकर ले जाती हैं और बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ आरती का कार्यक्रम पूरा होता है । पूजा चढ़ाते वक्त सभी देवी देवताओं का जयकारा लगाया जाता हैं । सभी महिलाओं से पूजा एकत्रित करके बड़े थाल में लेकर मैय्या की पूजा की जाती हैं या मैय्या के पास चढ़ाया जाता हैं, यह प्रक्रिया आप वीडियो में dekh सकते है।






मेला (जत्रा ) :-
ग्राम भौंरा में 2 साल के बाद मेला लगा जिसमे सभी लोगो ने खरीददारी की, झूले झूले और साथ ही खाने के लिए आइसक्रीम, बर्फ, लस्सी, मिठाई और तरह तरह के समान थे । मेले में हर तरह के समान के दुकानें थी चूड़ियां, कपड़े, चप्पल जुतिया, बच्चो लिए गुब्बारे, गुड़िया, छोटे छोटे खिलौने, तरह तरह की तस्वीरे और मेकअप , गले के हार, ईयरिंग सभी तरह के दुकानें लगाई गई। हर तरह की दुकानें देखने को मिली।

















































मैले में दिन और रात दोनो समय काफी भीड़ दिखाई दी । सभी लोगो ने मैले का बहुत आनंद लिया और बच्चो ने भी खूब सारी मस्ती की । बच्चो के लिए भी ढेर सारी दुकानें थी जैसे खिलौने, गुब्बारे और झूले आदि।






भंवरा इलाही माता मंदिर महाआरती लाइव फोटोज विडियोज – 14th October, 2021
यहां हर वर्ष नवमी के दिन महा आरती का आयोजन किया जाता है नवरात्रि के समय में नवरात्र पर्व पर माता के मंदिर में भक्तों का भारी मात्रा में तांता लगा रहता है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं नवरात्रि के समय में हर रोज माता के मंदिर में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए व अपनी मन्नत पूरी होने के लिए पहुंचते रहते हैं। यहां पर नवमी के दिन भारी मात्रा में भीड़ रहती है इसी वजह से नवरात्री के दिनों में मन्दिर में भक्तों चहल – पहल लगी रहती हैं। नवरात्रि कि हर दिन श्रद्धालु 4:00 बजे से मंदिर में पहुंच जाते हैं, सुबह 4:00 बजे ओम नमः शिवाय के मंत्रों के जाप के साथ पूरे गांव में प्रभात फेरी निकाली जाती है, उसके बाद 5 बजे मंदिर में आरती उतारी जाती है आरती में बड़ी मात्रा में भीड़ होती है आसपास के गांव के सभी लोग आरती में आते हैं।







महानवमी के दिन मंदिर में विशेष पूजन विधि के साथ महा आरती का आयोजन – इस दिन पूरे मन्दिर दीपो से सजाया जाता है साथ ही लाइट भी लगाई जाती है इस सजावट के कारण मंदिर का भव्य रूप देखने लायक होता है। इस दिन सुबह – सुबह के समय महिलाएं आरती का थाल सजाकर वह पूजन का थाल लेकर मंदिर में पहुंचती है। हर वर्ष नवरात्रि के नवमी में मंदिर में महाआरती का आयोजन किया जाता है तथा विशेष हवन पूजन विधि भी की जाती है और साथ ही मातारानी का आलौकिक श्रृंगार किया जाता हैं तथा 56 भोग लगाया जाता हैं। इन सबके साथ मंदिर में आरती के बाद भजन कीर्तन भी होता है जिसका सभी भक्त आनंद लेते हैं और इस महाआरती में आसपास के गांव से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं । सभी की मनोकामना पूर्ण होती हैं।
माता के दरबार में चुनरी यात्रा –
ग्राम भंवरा में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी का दिन –
दुर्गा अष्टमी का दिन नवरात्रा के 9 दिनों में से सबसे बड़ा दिन माना जाता है इस दिन भक्त मां दुर्गा की पूजा करते हैं मां दुर्गा के अस्त्र-शस्त्र की पूजा भी करते हैं। अस्त्र – शस्त्र की पूजा के कारण इस दिन को वीराअष्टमी भी कहा जाता हैं। सभी लोग अष्टमी का व्रत रखते हैं तथा दुर्गा मां के लिए पूजा करते हैं इस पूजा में बीच में मिट्टी के 9 घड़े रखे जाते हैं और उन घड़ों में मां के नौ शक्तियों का आवाहन किया जाता है।
सभी लोग इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं और अष्टमी के कुछ दिन पहले अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं अपना सारा काम जल्दी से जल्दी समाप्त करने के बाद पूजा की तैयारी की जाती हैं इस दिन भक्त उपवास भी रखते हैं इसमें कुछ लोग निर्जल उपवास रखते हैं तो कुछ लोग जल, दूध का सेवन करके भी उपवास रखते हैं, उपवास में चावल, दाल, गेहूं जैसे चीजों का सेवन नहीं किया जाता है। सभी लोग सुबह – सुबह स्नान करने के पश्चात मंदिर में मां दुर्गा के दर्शन के लिए जाते हैं उसके बाद घर पर संध्या के समय मां दुर्गा की पूजा की तैयारी की जाती है। विशेष दिन के लिए सभी लोग जो अपने घरों से दूर रहते हैं वे कुछ लोग तो अपने काम से छुट्टियां लेकर अपने गांव और घर को वापस आ जाते हैं जो छात्र पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं वह भी इस विशेष दिन को मनाने के लिए, पूजा करने के लिए अपने घर आते हैं और बड़े ही भक्ति भाव के साथ इस दिन को मनाते हैं।



यह पूजा शक्ति , साहस, सफलता और समृद्धि के लिए देवी दुर्गा की पूजा की जाती है वह शक्ति, नैतिकता और सुरक्षा का प्रतीक है लाभ में रोगों से सुरक्षा और राहत उपयुक्त परिणामों का आकर्षण, साहस का दुर्गा का आशीर्वाद शामिल है दुर्गा अष्टमी का व्रत देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए किया जाता है।

लाइव …ग्राम भवरा के आनंद चौदस झाकियों की लाइव फोटोज वीडियोस | अनंत चतुर्दसी महोत्सव , 2021 , ऐतिहासिक समारोह !
झांकियो की लाइव तश्वीरे और वीडियोस
आनंद चौदस झांकी २०२१ समारोह / सेलिब्रेशन की लाइव तश्वीरे और वीडियोस आप सभी के लिए लेकर आये हे , २ साल आनंद चौदस की झांकी निकली , गांव के सभी लोगो ने बहुत आनंद लिया और बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। झांकिया माताजी के चौक से सुरु होती हे क्रम वॉर और पंचायत भवन से होते हुए, चंपावली बखुल, टाला का लीम, स्कूल चौराहे से होते हुए, स्कूल मोहल्ले, बड़ा मंदिर, पेला साथ , पाठा से होते हुए विषर्जन के लिए जाती हे !
हर एक मंदिर की एक झांकी होती हे , उसके साथ ट्रेक्टर पर बने मंच पर नृत्य एवं संगीत से भरपूर भजन गाने होते हे जसमे गांव के हर एक वर्ग के लोग आनंद उठाते हे ! आनंद चौदस भवरा गांव का बहुत बड़ा त्यौहार होता हे ! १० दिन गणेश जी पूजा अर्चना और आरती करने के बाद चौदस के दिन गणेश विषर्जन झांकियो के साथ होता हे !
झांकियो की लाइव तश्वीरे और वीडियोस
ग्राम भंवरा में अनंत चतुर्दशी की झांकियों की पूरी तैयारी बारिश बंद होने का इंतजार
इस वर्ष 19 September 2021 का दिन विशेष है । इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी का श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ विसर्जन किया जाएगा। कोरोना के कारण पूरे 2 साल बाद इस बार वापस से अनंत चतुर्दशी की झांकी निकालने का मौका मिल रहा है।
आनन्द चौदस की लाइव झांकी pics and videos
लाइव …ग्राम भवरा के आनंद चौदस झाकियों की लाइव फोटोज वीडियोस | अनंत चतुर्दसी महोत्सव , 2021 , ऐतिहासिक समारोह !

गणेश विसर्जन जुलूस – ग्राम भंवरा में बड़े ही हर्ष, उल्लास और श्रृद्धा पूर्वक भगवान गणेश जी के विषर्जन की तैयारी की जाती हैं । यहां पर सब लोग विसर्जन के दो-चार दिन पहले एकत्रित होकर मंदिर में सभा बुलाकर निर्णय लेते है और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाए जाते हैं । गणेश उत्सव झाँकि पथ संचलन के लिए मीटिंग रखी जाती हैं। बड़े ही सुंदर तरीके से झांकियां बनाई जाती है और ढोल – नगाड़ों के साथ झांकियों में भगवान गणेश जी को बिठाकर सारे गांव में जुलूस निकाला जाता है आसपास के गांव के लोग थे जुलूस देखने आते हैं। बड़ी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं और जुलूस का आनंद लेते हैं।
इस वर्ष प्रत्येक मंडली का पथ संचलन कुछ इस प्रकार रहेगा-
1. *श्री राम कृष्ण मंदिर समिति*
2. *श्री बजरंग मंडल समिति*
3. *श्री दुर्गा शंकर समिति*
4. *श्री बालमण्डल समिति*
5. *श्री अयोध्या मंडल समिति*
6.*श्री राम मंदिर बड़ा समिति*
https://youtube.com/shorts/mpHdvrgiyjs?feature=share
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सारे गांव में जुलूस निकालने के बाद गणेश जी को विसर्जित करने के लिए नदी या तालाब पर ले जाया जाता है और वहां पूजा पूजन करने के पश्चात गणेश विसर्जन किया जाता है। गणेश चतुर्थी के साथ ही गणेश स्थापना का सिलसिला शुरू हो जाता है और फिर धूमधाम से उनका विसर्जन होता है। जिस स्थान पर बप्पा का विसर्जन करना है, वहां पहुंचकर सर्वप्रथम कपूर जलाकर आरती करें। गणेश जी के समक्ष प्रार्थना करते हुए उनसे आशीर्वाद लें और बप्पा से क्षमा मांगे और खुशी-खुशी जयकारों के साथ बप्पा को विदा कर दें। गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित करते समय ऐसे ही पानी में नहीं डालना चाहिए। उन्हें बहुत सम्मान के साथ धीरे-धीर विसर्जित करना चाहिए।



कैसे करें गणपति बप्पा का विसर्जन – वैसे तो अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन किया जाता है लेकिन कुछ लोग 5, 7, 9 दिनों में भी विसर्जन करते हैं.इसलिए जितने दिन तक बप्पा को अपने घर स्थापित करने का संकल्प आपने लिया हो उसी तिथि को बप्पा का विसर्जन करें। भगवान गणेश के विसर्जन वाले दिन भी बप्पा की विधि पूर्वक पूजा करें जैसे प्रतिदिन करते हैं। बप्पा को भोग अर्पित करें।
उसके बाद एक लकड़ी का साफ-सुथरा पाटा लेकर उस पर गंगाजल डालकर पवित्र कर दें। उस पाटे पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं, उस पर अक्षत अर्पित करें और लाल या पीले रंग का कपड़ा पाटे पर बिछाएं। कपड़े के चारों कोनों पर पूजा की सुपारी रखें, गुलाब के फूलों और पंखुड़ियों को पाटे पर बिखेर दें। गणेश जी के जयकारों के साथ सावधानी से गणेश जी की प्रतिमा को उठाकर पाटे पर रखें, और साथ में गणेश जी के प्रिय मोदक, फल, फूल कुमकुम और वस्त्र, आदि भी रखें।
बड़े हर्ष उल्लास के साथ ग्राम भंवरा में मनाया गया वामन ग्यारस, जयंती एकादशी एवं परिवर्तिनी एकादशी का पर्व-
भादो शुक्ल पक्ष के 11 दिन बाद यह ग्यारस मनाई जाती है इस वर्ष 17 सितंबर 2021 को डोल ग्यारस का आयोजन किया गया ।

ग्राम भंवरा में एकादशी का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया, कहते हैं कि बाल रूप में श्री कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नंद के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था, उसी प्रकार आज तक इस दिन को मनाया जाता है। झांकियों का आयोजन किया जाता है, माता यशोदा की गोद भी भरी जाती है। कृष्ण भगवान को डोल में बिठाकर झांकियां सजाई जाती है, इसी अवसर पर डोल को बहुत ही सुंदर भव्य रुप में झांकी की तरह सजाया जाता है, फिर एक बड़े जुलूस के साथ पूरे गांव में ढोल- नगाड़े, नाच – गाने, के साथ इनकी यात्रा निकाली जाती है यात्रा में सभी लोग गम्मत करते हुए जाते हैं ।


सारे गांव में यात्रा/भ्रमण करने के बाद जिस स्थान पर नदी या तालाब हो वह ढोल लेकर जा कर पूजा की जाती है पूरे गांव में भ्रमण व नदी के भ्रमण के बाद कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित करने के बाद पूजन व आरती की जाती है।


एकादसी व्रत का महत्व – भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक माना जाता है इस दिन सभी लोग व्रत रखते हैं इस व्रत से पापो की मुक्ति व सुखद अंत के लिए प्रार्थना की जाती है सभी लोग एकादशी व्रत का पालन करते हैं। व्रत का वेज्ञानिक तरीके से भी देखा जाए तो बहुत लाभ है , इसे एकादशी में वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी भी कहा जाता हैं।
इस एकादशी को डोल ग्यारस या परिवर्तिनी एकादशी क्यों कहा जाता हैं – इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवा कर उन्हें नए कपड़े पहनाती है और उन्हें शुद्ध धार्मिक कार्यों में सम्मिलित किया इस प्रकार से डोल ग्यारस भी कहा जाता है और ऐसा भी कहा जाता हैं कि देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में गए भगवान विष्णु इस दिन निद्रा में करवट लेते हैं भगवान के करवट बदलने का समय भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है इसलिए इस एकादशी को परिवर्तीनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर जी ग्राम भवरा स्थित इलाही माता मंदिर पहुंची , ग्रामीणों ने किया स्वागत
आज दिनांक 15 सितंबर 2021 को मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट पर्यटन मंत्री माननीय उषा ठाकुर जी सीहोर जिले आष्टा तहसील ग्राम भौंरा पहुंची तथा प्राचीन मंदिर मां इलाही धाम मैं माताजी के दर्शन किए एवं पूजा अर्चना की। माननीय मंत्री जी का स्वागत क्षेत्र के सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी, आष्टा विधायक रघुनाथ सिंह जी एवं अन्य भाजपा सदस्य तथा वरिष्ठ ग्रामीण जनों ने स्नेह से किया।कार्यक्रम के दौरान माननीय मंत्री जी ने शिवराज सिंह सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया तथा केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित किया। माननीय मंत्री जी ने मंदिर के लिए रिटर्निंग वाल की घोषणा की तथा आष्टा को उज्जैन कुम्भ से जोड़ने के बारे में आश्वासन दिया !
माननीय मंत्री जी ने प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए उचित राशि तथा पुरातात्विक विभाग में जोड़ने के बारे में आश्वासन दिया।
हम आपको बता दें कि ग्राम भौंरा में स्थित इलाई माता मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है जहां पर हजारों सालों से अखंड जोत या दीपक जलते आ रहे हैं मंदिर के बगल में बहुत ही पुरानी बावड़ी है जो पूरी तरह पत्थरों से बनी है आसपास के गांव से हर रोज श्रद्धालु माता जी के दर्शन करने आते हैं, माननीय मंत्री जी ने भी मंदिर में पूजा अर्चना की तथा ग्रामीणों की समस्याओं के बारे में भी विस्तार से सुना।
गांव के वरिष्ठ जनों ने समय-समय पर जनप्रतिनिधियों से निवेदन किया है कि माता इलाही मंदिर पुरातात्विक धरोहर है तथा उसे पर्यटन विभाग में जोड़ें। उसी कड़ी में आज माननीय मंत्री जी भंवरा ग्राम पहुंची एवं मंदिर, बावड़ी और अन्य पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण किया तथा जीर्णोधार एवं अन्य जरूरतों के लिए उचित राशि प्रदान करने का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम के पश्चात माननीय मंत्री जी ने अपने निज आवास इंदौर के लिए रवाना हो गई।
पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए गांव के सरपंच श्रीहरीकुंवर मालवीय जी ने सभी कार्यकर्ता एंड ग्रामीण लोगो का धन्यवाद ज्ञापन किया।
Success story of IAS Nagarjun B Gowda – आर्थिक तंगी के कारण नौकरी के साथ ही 6 – 8 घंटे पढ़ाई की रणनीति बनाकर दुसरे प्रयास में बन गए आईएएस अधिकारी

आइए जानते हैं नागार्जुन गौड़ा के बारे में – नागार्जुन गौड़ा का जन्म कर्नाटक के गांव में हुआ था, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। इन सब कठिनाइयों के चलते उन्होंने कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई की, इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने एमबीबीएस का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया इसके बाद उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली। एमबीबीएस के बाद उन्होंने एक हॉस्पिटल में नौकरी ज्वाइन कर ली।
यूपीएससी की तैयारी में आई कठिनाइयां – परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण यूपीएससी की तैयारी पहले ना कर पाए, पहले उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की तथा हॉस्पिटल में नौकरी ज्वाइन की। एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष और कठिन परिश्रम करना पड़ा। लगातार मेहनत करते हुए हॉस्पिटल में जॉब करने के साथ उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने का मन बनाया और नौकरी के साथ ही तैयारी शुरू की।
प्रत्येक दिन 6 – 8 घंटे पढ़ाई को दिया :- नागार्जुन गौड़ा ने नौकरी के साथ हर दिन करीब 6 से 8 घंटे निकालकर पढ़ाई की। नागार्जुन गौड़ा का मानना है कि अगर हर चीज शेड्यूल के अनुसार तय करें और समझदारी के साथ प्लान करें तो लगातार कोशिश के कारण सिलेबस कंप्लीट होने के बाद ज्यादा से ज्यादा रिवीजन हो सके। इसके साथ ही समय प्रबंधन करना बहुत जरूरी है।
कठिन परिश्रम और लगातार कोशिशों नागार्जुन गौड़ा दुसरे प्रयास में UPSC exam में Rank – 418 UPSC CSE 2018 में आईएएस अधिकारी बन गए।
अन्य कैंडीडेट्स को नागार्जुन की सलाह – नागार्जुन गौड़ा का मानना है कि अगर आप एक अच्छी रणनीति के साथ हर दिन 6 – 8 घंटे पढ़ाई के लिए निकाल लेंगे तो नौकरी के साथ भी परीक्षा पास कर सकते हैं और वे कहते हैं कि अगर तैयारी करना चाहते हो तो बहाना बनाना बंद करें और संसाधनों का रोना रोना बंद करें जैसे भी पॉसिबल हो अपनी तैयारी करते रहे। जॉब करने के साथ भी आप तैयारी कर सकते हैं और कोचिंग के बिना भी सफलता प्राप्त की जा सकती है अगर आप स्मार्ट वर्क, हार्ड वर्क और धैर्य के साथ तैयारी करेंगे तो निश्चित रूप से यह सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
वे बताते हैं कि इसके लिए आपको monthly, weekly, and daily का टाइम टेबल आवश्यक है। आपको हर एक सब्जेक्ट के लिए टाइम टेबल में समय देना है और समय समय पर अपना कार्य पूर्ण करना है आप समय डिवाइड कर सकते हैं
- Monthly to weekly,
- weekly to daily,
- daily to hourly,
- इस तरीके से आप का सिलेबस कंप्लीट हो जाएगा इसके साथ आपका हर दिन का एक टारगेट होना चाहिए और टारगेट पूरा करना चाहिए और साथ ही (time management) समय प्रबंधन करना चाहिए।
- यदि आप 1 घंटे के लिए पढ़ते हैं तो 5 – 10 मिनट का ब्रेक और आधे घंटे के लिए पढ़ते हैं तो 5 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं।
- कोचिंग करना इतना इंपोर्टेंट नहीं है अगर आपको टॉपिक्स को समझने में कठिनाई आती है तो आप कोचिंग कर सकते हैं यदि आपको अच्छे से समझ आ रहे हैं और आप अपनी पढ़ाई ठीक से कर रहे हैं तो कुछ ना करें सेल्फ स्टडी करके भी यूपीएससी के एग्जाम की तैयारी कि जा सकती है।
ग्राम भंवरा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।
आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष में ग्राम भौंरा तहसील आष्टा जिला सीहोर, मैं सुबह-सुबह योगाभ्यास का आयोजन किया गया। गांव के युवा लोग एवं बड़े बुजुर्ग लोग सभी ने मिलकर योग किया।गांव के वरिष्ठ पंडित जी एवं शिक्षक श्री मनोहर लाल शर्मा जी ने योग के इतिहास के बारे में बताया एवं योग से कैसे शरीर और दिमाग दोनों को स्वस्थ रखा जा सकता है इस बारे में डिटेल में बताया, श्री शर्मा जी ने बहुत सारे योगा जैसे आलोम विलोम ब्रह्मास्त्र प्राणायाम सूर्य नमस्कार इन सभी के बारे में डिटेल में समझाया। वही गांव के युवा लोग जो कि पिछले 2 महीने से सुबह निरंतर योगा करते थे उनकी टीम ने भी पार्टिसिपेट किया इसमें मुख्य रूप से शिवचरण संतोष एवं बालमुकुंद जी ने सभी लोगों को सूर्य नमस्कार प्राणायाम का अभ्यास करवाया। आप सभी को बता दें कि हमारे गांव से श्री जितेंद्र परमार देवी अहिल्याबाई यूनिवर्सिटी इंदौर में योगा टीचर हैं उन्होंने लॉक डाउन के समय पर गांव के युवा लोगों का मार्गदर्शन किया था एवं योग के लिए प्रेरित किया था। योगा दिवस के उपलक्ष में ग्रामीण मंडल अध्यक्ष श्री सुनील परमार जी , गांव के सरपंच श्री हरिकुंवर जी ने सभी लोगों का दिल से धन्यवाद दिया एवं सभी को प्रेरित किया की योगा से शरीर और दिमाग दोनों स्वस्थ रह सकते हैं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष में हम सभी लोगों को प्रण लेना चाहिए जब भी अपने व्यस्त शेड्यूल से टाइम मिले तब योगा जरूर करेंl
मंदिर के चढ़ावे में आने वाले फूलो के इस्तेमाल से निकाला अनूठा तरीका, फूलो से बना रहे अगरबत्ती और धूपबत्ती, स्टार्टअप से करोड़ों की कमाई ।
सबसे पहले जानते हैं कैसे आया फूलों से अगरबत्ती बनाने का विचार – मकर सक्रांति का दिन था, सउस दिन अंकित अग्रवाल अपने एक चेक रिपब्लिक दोस्त के साथ गंगा नदी के किनारे बैठे थे, बैठे-बैठे दोनों वहां का दृश्य देख रहे थे। मकर सक्रांति का दिन था तो सैकड़ों लोग नदी में स्नान कर रहे थे, विदेशी दोस्त ने देखा कि लोग गंगा नदी के पानी में नहा रहे हैं जो की बहुत ही मटमेला हो रहा है तो परेशान होकर पूछा लोग इतने गंदे पानी में क्यों नहा रहे हैं इसे साफ क्यों नहीं करते तो अंकित सरकार और सिस्टम पर आरोप लगाते हुए टालने की कोशिश करने लगा, विदेशी दोस्त ने कहा तुम खुद कुछ क्यों नहीं करते। तभी चढ़ावे के फूलों से भरा एक टेंपो आकर रुका और अपना सारा कचरा गंगा जी में उड़ेल दिया, उसी समय अंकित के दिमाग में फूल स्टार्टअप का विचार आया।

चढ़ावे के फूलों को कचरे में जाने से रोका – अंकित अग्रवाल ने चढ़ावे के फूलों को कचरे में जाने से रोका और साथ ही गंगा का पानी भी खराब होने से बचाया। फूलों को इकट्ठा करके उनकी प्रोसेसिंग करके अगरबत्ती, धूपबत्ती और फ्लेदर (फूलों से बना लेदर) बनाते हैं। जिससे करोड़ों की कमाई तो होती ही है साथ ही सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है फुल स्टार्टअप के अंदर अंकित बताते हैं कि हम लोग रोजाना लगभग साढ़े तीन टन फूल कानपुर के मंदिरों और तिरुपति से उठाते हैं। इससे अगरबत्ती – धूपबत्ती बनाते हैं और उन्होंने ढाई साल की रिसर्च के बाद एक चमड़े का विकास किया है जो फूल से तैयार होता है।
IIT, IIM और अन्य संस्थानों की प्रतियोगिताओं में जाकर 20 लाख रुपए किए इकट्ठा – फुल का आईडिया आने के बाद अंकित ने रिसर्च करना शुरू किया। उन्हे phool से क्या – क्या बनाया जा सकता है इसकी कोई जानकारी नहीं थी। लगभग 2 महीने बाद होने समझ आया कि मंदिर में चढ़ाएं गए फूलों का कोई समाधान नहीं है बहुत कम लोग हैं जो इससे खाद वगैरह बनाते हैं लेकिन उससे कुछ खास कमाई नहीं होती।उन्होंने 2 किलो फूल और ₹72000 से शुरुआत की और अपनी आइडिया लेकर IIT,IIM और संस्थानों की प्रतियोगिताओं में जाने लगे। इन सब के जरिए उन्होंने 20 लाख रुपए इकठ्ठा कर लिए । अब उन्होने 1 साल बाद नौकरी छोड़कर पूरी तरह से स्टार्टअप में लग गए।
इसके बाद अंकित ने अपने दोस्त अपूर्व को स्टार्टअप मे अपने साथ जुड़ने के लिए राजी किया। अपूर्व उस समय बेंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग की नौकरी करते थे। अंकित कहते हैं कि, phool का आईडिया भले ही उनका था लेकीन इसे ब्रांड बनाने में अपूर्व का बहुत बड़ा योगदान है।
लोगों ने फूल देने से किया इनकार :- अब सबसे बडी समस्या यह थी कि लोग फूल देने के लिए तैयार नहीं थे वे फूल पानी में फेंकना चाहते थे लेकिन अंकित ने लोगों को बहुत समझाया और बताया कि हम ‘तेरा तुझको अर्पण’ कथा को आगे बढ़ा रहे हैं। यानी हम मंदिर के साथ के फूलों से अंगूठी और धूपबत्ती बना रहे हैं और साथ ही अगर फूल हमे देंगे तो गंगा नदी के पानी में ज्यादा कचरा नहीं होगा, तब जाकर लोग फूल देने के लिए तैयार हुए क्योंकि वह फूल किसी ना किसी तरह से भगवान को ही अर्पित होनी थी और लोगों की आस्था के साथ भी कोई खिलवाड़ नहीं होगा।

कैसे बनाते हैं अगरबत्ती और धूपबत्ती पूरी प्रोसेस :- इस प्रोसेस के बारे में अपूर्व बताते हैं कि पहले तो हम मंदिरों में जाकर फूल इकट्ठा करके अपनी गाड़ियों से फैक्ट्री लाते हैं फिर उन फूलो से नमी को हटाया जाता हैं और उन्हें सुखाया जाता हैं नमी हटाने के बाद फूल के बीच का भाग और पत्तियां अलग – अलग कर लेते हैं क्योंकि दोनो का इस्तेमाल अलग – अलग होता है। फिर इसे मशीन की सहायता से पेस्टीसाइड वगैरा को अलग करते हैं। इन प्रक्रियाओं के बाद यह एक पाउडर बन जाता हैं । अब इस पाउडर को आटे की तरह गूंथ लिया जाता है और हाथों से अगरबत्ती या धूपबत्ती बनाई जाती हैं। इसके बाद प्राकृतिक खुशबू में डुबोकर पैकिंग कर दी जाती हैं। यही पूरी प्रोसेस जिससे की अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाई जाती हैं।

लॉकडाउन की वजह से आई कठिनाई :- phool से शुरुवात में सोशल अल्फा, DRK फाउंडेशन, आईआईटी कानपूर और कुछ अन्य संस्थाओं से 3.38 करोड़ रूपए के फंड जुटाए। इससे उनका काम ट्रैक पर आ गाया। कुछ समय बाद आया कोरोना का दौर। अपूर्व ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से कई परेशानियां आई ढाई महीने में कंपनी के पास कोई आमदनी नहीं थीं लेकिन खर्च वैसा का वैसा ही था। मैनेगमेंट टीम ने ढाई महीने तक कोइ सैलेरी नहीं ली। उनके पास सिर्फ 4 महीने कम्पनी चलाने के पैसे शेष थे।
उसके बाद अगस्त 2020 में phool का IAN फंड (स्टार्टअप को फंड देने वाली संस्था ) और सैन फ्रांसिस्को को ड्रैपर रिचर्ड्स कपलान फाउंडेशन ने मिलकर 10.40 करोड़ रुपए की फंडिंग दी है । कम्पनी का कहना हैं कि रूटीन खर्च के लिए वो अपने प्रोडक्ट से कमाई कर लेते हैं। इस फंडिंग का इस्तेमाल सिर्फ रिसर्च एंड डवलपमेंट के काम में किया जाएगा।
इस कॉन्सेप्ट को दुनिया भर मे ले जाने का प्रयास:- इस स्टार्टअप को दुनिया भर में ले जानें का लक्ष्य है अपूर्व बताते है कि सितंबर 2018 में हमने पहला प्रोडक्ट हमारी वेबसाइट से बेचा था। उस समय के दिनों मे उनके पास सिर्फ दिन के दो या तीन ऑर्डर आते थे। लेकिन आज उन्हें रोजाना 1 हजार ऑर्डर मिलते हैं। इसके आगे का उनका प्रयास होगा कि वे इस कॉन्सेप्ट को ग्लोबल लेवल तक लेकर जा सके। अगरबत्ती का मार्केट छोटा है इसलिए वे लेदर पर पूरा फोकस कर रहे हैं। उन्हे पता था कि बूरा क्या होगा यही की हम सक्सेस नही होंगे लेकिन इसकी अच्छी बात यह हैं कि इसकी कोई सीमा नहीं है। यह एक बहुत ही अच्छा तरीका है इससे फूलों से अगरबत्ती और धूपबत्ती तो बनती ही है साथ ही गंगा नदी के पानी में कचरा नहीं होगा जिससे की लोगो को भी परेशानी नहीं होगी । वहा के पानी गंदगी कम होगी। यह एक बहुत ही अच्छी पहल हैं अंकित अग्रवाल और अपूर्व के द्वारा की गई।
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कोरोना की वजह से नौकरी में प्रोब्लम आने पर स्ट्रॉबेरी की खेती शूरू की, खेती से लाखो का मुनाफा –
यह कहानी है वाराणसी के रहने वाले रमेश मिश्रा की। रमेश मिश्रा बनारस के पास ही एक गांव के निवासी हैं। BHU se ग्रेजुएट है और बास्केटबाल में इंटर युनिवर्सिटी लेवल तक खेल चुके है। वे एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे और 10 साल से ज्यादा का टीचिंग का ज्यादा अनुभव है सब सामान्य चल रहा था, लेकिन कोरोना की वजह से स्कूल की नौकरी में परेशानी आने लगी तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पर अब बड़ा सवाल यह था कि क्या किया जाए। रोजाना घंटों इंटरनेट पर सर्च करने के बाद भी कुछ काम नहीं मिल रहा था ऐसे में कुछ लोगों ने स्टोबेरी की खेती करने का सुझाव दिया।
रमेश के फ्रेंड मदन मोहन तिवारी का रेलवे में सप्लाई का काम था लेकिन कोरोना के कारण वह भी बंद हो गया था। फिर रमेश ने अपने फ्रेंड के सामने स्ट्रौबरी की खेती का प्रस्ताव रखा तो वह भी तैयार हो गया दोनों ने मिलकर स्ट्रौबरी की खेती का काम स्टार्ट किया।

स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की – स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त करने में शुरुआत में कठिनाई आई। आस पास कोई स्ट्रॉबरी के बारे में नहीं जानते थे बाद में इंटरनेट के द्वारा पता चला कि पुणे में स्ट्रॉबेरी की खेती होती है। वह स्ट्रौबरी के बारे में कई लोग जानते हैं फिर रमेश ने पुणे जाने का फैसला किया और वहीं कई हफ्ते रुककर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। स्ट्रौबरी की खेती कैसे करते हैं? इसकी बारीकियों को समझा पौधों के रखरखाव, टपक की विधि से सिचाई जैसी कई विधियों को सीखा साथ ही इस बात का अनुभव भी हुआ कि इस खेती के लिए शुरुआत में कितनी जमीन चाहिए और इसमें कितना पैसा लगेगा।
पुणे से 15000 पौधे मंगवाए और स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की – खेती की शुरुआत करने में कुछ मुश्किलें आई। इसके लिए 2 एकड़ जमीन चाहिए थी, जो कि रमेश के पास नहीं थी फिर रमेश ने मदन को बताया तो मदन ने 3 एकड़ जमीन की व्यवस्था की जिसमें से 2 एकड़ में स्ट्रॉबेरी और 1 एकड़ में सब्जियां भी लगाई। खेती करने के लिए पहले जमीन और पानी की जांच करवाई । फिर पुणे से 15000 पौधे मंगवाए जो कि ₹15 का एक पौधा था। इसके अलावा दोनों ने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर – डीपइरीगेशन के लिए सेटअप आदि की भी व्यवस्था की फिर दोनों ने ऑर्गेनिक तरीके से खेती शुरू की और आज दोनों मुनाफे में है ।
खेती करते समय ध्यान रखने की जरूरत – रमेश बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती बहुत देखभाल की मांग करती है। इसमें हर छोटी- छोटी बात का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे स्ट्रॉबेरी के पौधों की देखभाल बच्चे की तरह करनी पड़ती है, साथ ही कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है रमेश बताते हैं कि हम दोनों सुबह – सुबह ही जल्दी उठकर खेतों पर चले जाते हैं और हर तरफ घूम कर हर पौधे को चेक करते हैं कि कोई पौधा मुरझा तो नहीं रहा, पौधे पर कहीं से भी मिट्टी जमा नहीं होना चाहिए, दिन भर में कई बार मिट्टी को साफ करना पड़ता है यह काम वह दोनों नहीं संभाल सकते थे इसलिए उन्होंने गांव की 7 महिला को काम पर रखा चिड़ियों और कीड़ों से बचाने के लिए ऑडियो टेप की रील को पौधों से 5 से 7 फीट ऊपर लटकाया जाता है ताकि यह सुरक्षित रहें। ऐसी हर छोटी-बड़ी बातों को ध्यान में रखकर स्ट्रॉबरी की खेती की जा सकती है।

कैसे बेचते हैं स्ट्रॉबेरी – रमेश बताते है की पैदावार बेचने के लिए उन्होंने सन 2020 में दिल्ली माल भेजने के लिए बात की थी, लेकिन बाद में लोकल मार्केट से ही डिमांड आने लगी तो दोनों ने लोकल मार्केट में ही सप्लाई करने का निर्णय लिया और बनारस के और आसपास के क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी के सप्लाई करने लगे। लोकल मार्केट में भी उन्हें अच्छा फायदा होता है लोकल मार्केट और आसपास के क्षेत्र में भी ₹300 प्रति किलो के हिसाब से स्ट्रौबरी की सप्लाई करते हैं। हर एक पौधे से 500 से 700 ग्राम तक स्ट्रौबरी की पैदावार होती है।

स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करें – रमेश और मदन दोनों इस खेती के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि इस स्ट्रॉबेरी खेती के लिए बलुई और दोमट मिट्टी अच्छी होती है। अगस्त – सितंबर के महीने में इसके पौधे लगाए जाते हैं। इसके लिए तापमान 30 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए, अगर तापमान अधिक होता है तो फसल को नुकसान होता है इसलिए कम तापमान में ही यह खेती करनी चाहिए। हालांकि ज्यादा तापमान वाली जगह पर भी लोग इसकी खेती करने लगे स्ट्रॉबेरी की खेती करने में मेहनत और देखभाल बहुत जरूरी है इसलिए इसे ज्यादा जमीन पर नहीं करना चाहिए अगर ज्यादा जमीन पर खेती करेंगे तो देखभाल की कमी होने के कारण नुकसान का खतरा रहता है। बड़े पैमाने पर खेती करना हो तो पर्याप्त संसाधन की जरूरत है अगर पर्याप्त संसाधन हो तो स्ट्रौबरी की खेती ज्यादा जमीन पर की जा सकती है।
शुरुआत में कुछ कठिनाइयां आई लेकिन अब यह खेती लाखों रुपए का मुनाफा दे रही हैं। स्ट्रॉबेरी की फूड और कोमेस्टिक इंडस्ट्री में स्ट्रॉबेरी की काफी डिमांड है । वह दोनों बताते हैं कि लॉकडाउन की सबसे बड़ी सिख यही है कि नौकरी से किसी को भी कभी भी निकाला जा सकता है इसलिए कुछ अपना स्वयं का काम होना चाहिए।
आपदाओं में काम आने वाले ड्रोन बनाने के लिए स्टार्टअप शूरू किया, जिसके लिए प्लेसमेंट और US के कॉलेज की सीट भी छोड़ी –
आइऐ जानते हैं चिराग के बारे में – मध्य प्रदेश के भोपाल में के रहने वाले हैं चिराग जैन आईआईटी ग्रैजुएट है उनकी उम्र 26 साल है उनका इंजीनियरिंग में भी स्पेशल इंटरेस्ट एयरोस्पेस में था हवा में उड़ने वाले सेटेलाइट और अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेट में उनका हमेशा इंटरेस्ट रहा। कॉलेज के साथ ही उन्होंने ड्रोन का काम शुरू किया उन्हें एयरोस्पेस में ही रिसर्च करनी थी क्योंकि यह बहुत ही क्रिटिकल टेक्नोलॉजी होती है इसका एक मुख्य कारण यह भी रहा कि यह देश के विकास में भी अहम रोल निभाती है।

बी.टेक समय ही जब केंपस प्लेसमेंट हुआ तो वह उसमें भी गए (बैठे) दो उन कंपनियों में उनका सिलेक्शन भी हो गया लेकिन उन्होंने ₹10 लाख के सालाना पैकेज वाली नौकरी के ऑफर को छोड़ दिया।
नौकरी छोड़ने का कारण – चिराग बताते हैं कि उन्हें सिर्फ एक डिग्री लेकर किसी कंपनी में जॉब करने में इंटरेस्ट नहीं था वह यूएस (US) जाकर इसी फील्ड में मास्टर और पीएचडी करना चाहते थे और साथ ही इसके बारे में और भी जानकारी लेना चाहते थे, फिर वापस भारत आ कर अपना खुद का बिजनेस करने का प्लान था लेकिन इन सबके बीच उन्होंने सीखने के उद्देश्य से आईआईटी (IIT) कानपुर के हेलीकॉप्टर लैब ज्वाइन की इस दौरान भी आईआईटी कानपुर के कुछ प्रोफेसर से मिले और बातचीत की तभी उन्हें लगा कि वह प्रोफेसर भी चाहते हैं कि इंडिया में अपना एयरोस्पेस कंपनी स्टैबलिश्ड करें।

यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड की इंजीनियरिंग की सीट छोड़ी और स्टार्टअप की शुरुआत की –
चिराग बताते हैं कि उन्हें यूएसए ( USA) की यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड से मास्टर में सिलेक्शन हो गया , लेकिन उन्होंने सोचा कि बाहर जाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि बाहर जाकर पढ़ाई करते तो जो काम वह अभी स्टार्ट करते है उसी काम को वह 6 साल बाद शुरू करते इससे उन्होंने सोचा बाहर ना जाकर अभी काम शुरू करू। लिहाजा उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड इंजीनियरिंग की सीट छोड़ दी और 2018 में आईआईटी कानपुर में ही मास्टर्स में एडमिशन ले लिया और साथ ही अपनी कॉलेज के दो एसोसिएट प्रोफेसर और एक और साथी के साथ मिलकर EndureAir स्टार्टअप की शुरुआत की। फिर साल 2019 में उनके स्टार्टअप को आईआईटी कानपुर के एंक्यूबेशन सेंटर में भी जगह मिल गई ।

AndureAir में उनके साथ तीन ओर को – फाउंडर है,इसमें डॉ अभिषेक और डॉक्टर मंगल कोठारी दोनों आईआईटी कानपुर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं जबकि रामा कृष्णा आईआईटी कानपुर से पोस्ट ग्रेजुएट है ।
आपदाओं में काम आने वाले तथा देश के हित में काम आने वाले ड्रोन – यह ड्रोन आपदाओं के समय काम आते हैं एक तरह से बोला जाए तो देश के सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी है। उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा के दौरान भी बचाव के लिए ड्रोन की मदद ली गई डीआरडीओ(DRDO) जैन टेक्नोलॉजी (zen Technologies) Delhivery के जैसी नामी कंपनियों के लिए ड्रोन बनाकर यह स्टार्टअप साल 2019 – 20 में एक करोड़ रुपए का रेवेन्यू जेनरेट कर चुका है। ग्लेशियर फटने के बाद आई आपदा में एनडीआरएफ (NDRF) के बचाव कार्य में एंडयोर एयर कि ड्रोन की मदद से ही सर्च ऑपरेशन किया गया। आपदा में सैकड़ों लोग सुरंग में फस गए थे, सुरंग के रास्ते संकरे होने के कारण एनडीआरएफ के जवानों को सुरंग के अंदर व पानी के नीचे के लोगों की जानकारी जुटाने में परेशानी हो रही थी, कितने लोग फंसे हुए हैं यह पता नहीं चल पा रहा था।
ऐसे में उन्हें प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के अधीन अग्नि कार्यालय और एनडीआरएफ की ओर से बुलाया गया था। उसके बाद उनकी टीम कई ड्रोन के साथ उत्तराखंड पहुंची और सबसे पहले सुरंग में सबसे छोटा ड्रोन भेजा और लोकेशन के साथ फोटो कंट्रोल रूम में आती गई, इसकी मदद से एनडीआरएफ की टीम रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती रही।
एक्सपो के दौरान हुआ परिचय – EndureAir के को -फाउंडर चिराग जैन कहते हैं कि इसी साल जनवरी में आपदा के दौरान नई टेक्नालॉजी के उपयोग को लेकर गाजियाबाद में एक एक्स्पो हुआ था, इसी दौरान उनके ड्रोन के बारे में एनडीआरएफ(NDRF) और अग्नि कार्यालय के सदस्य ने टेक्नोलॉजी देखी थी इसी कारण उन्हें उत्तराखंड त्रासदी के दौरान अप्रोच किया ।

उनका कहना है कि स्टार्टअप हर तरह के ड्रोन तैयार कर रहे हैं जो सेना और आपदा में विशेष रुप से मददगार साबित होंगे यह ड्रोन 5 किलोग्राम तक का वजन उठाकर 100 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है मुश्किल हालातों में इस ड्रोन को परखने के लिए लद्दाख और पोखरण में भी इसका टेस्ट किया जा चुका है ।
अब तक कई क्वालिटी के ड्रोन तैयार कर चुके हैं- चिराग बताते हैं कि वे अब तक कई तरह के ड्रोन बना चुके हैं ऐसे ड्रोन तैयार कर चुके हैं जो 40 किलोमीटर तक दुर्गम पहाड़ियों या स्थानों पर 4 किलोग्राम वजन तक का सामान डिलीवर कर सकता है। उन्होंने दो प्रोडक्ट पर काम किया है पहला हेलीकॉप्टर ड्रोन है जो कि 4 किलोग्राम वजन लेकर 2 घंटे की उड़ान भर सकता है यह ड्रोन ऐसा है जिसे कंट्रोल करने की जरूरत नहीं बस लोकेशन फिट करिए, बटन दबाएं और वह अपना काम करके वापस आ जाएगा ।
इमरजेंसी डिलीवरी में काम आने वाला – यह दुर्गम क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाने के लिए काम आता है इसके लिए रनवे की जरूरत नहीं होती है । यह 5 किलो तक वजन उठा सकता है, और काफी तेज उड़ता है। यह 120 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलता है यह ड्रोन केवल कस्टमर को सर्विस नहीं देता बल्कि कंपनी के एक वेयरहाउस से दूसरे वेयरहाउस तक इमरजेंसी डिलीवरी के काम आता है इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन, ब्लड की इमरजेंसी डिलीवरी के लिए भी यह ड्रोन कारगर है।
EndureAir अभी तक 25 से ज्यादा ड्रोन बना चुका है, जबकि 8 ड्रोन कमर्शियल सेल कर चुके हैं इस स्टार्टअप में बड़ी बात यह है कि इसमें R&D और मैन्युफैक्चरिंग का काम भारत में ही होता है इतना ही नहीं इसको मानव रहित बनाने की कंट्रोल प्रणाली का भी अविष्कार भी EndureAir के फाउंडर्स ने किया है।

यह बहुत बड़े गर्व की बात है – केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी इस की तारीफ कर चुके हैं। यह भारत हमारे देश के लिए बहुत बड़ी बात है। चार लोगों की छोटी सी टीम से शुरू किया स्टार्टअप में अब 20 लोग दिन-रात काम करते हैं चिराग बताते हैं कि जल्द ही हमारे यहां बनाए गए ड्रोन सिर्फ भारत की जरूरत को ही नहीं बल्कि बाकी देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी एक्सपोर्ट किए जाएंगे।
वर्तमान में CRPF, BSF IAF और ATS समेत अन्य सुरक्षा बलों ने इस ड्रोन को अपनी सेना में जोड़ने की इच्छा जताई है यह बहुत ही प्रशंसनीय हैं ।
मध्यप्रदेश के गुरु प्रसाद पंवार ने नौकरी छोड़कर खेती में हाथ आजमाया – महीने की लाखो में कमाई

Success story of Guru Prasad Panvar
ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिन्होंने अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ कर कृषि में हाथ आजमाया गुरु प्रसाद पवार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के छोटे से गांव बीजकवाड़ा के रहने वाले हैं यह पढ़ाई में बचपन से ही तेज थे पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पीटीआई (फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर ) किया और साल 2004 में शिक्षा कर्मी वर्ग 2 में नौकरी मिल गई तब उनकी सैलरी ₹5000 महीना थी उन्होंने 3 साल तक नौकरी की लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि इतने कम पैसों में परिवार का खर्चा नहीं निकल पाएगा तो उन्होंने नौकरी के साथ खेती में भी काम करना शुरू किया।
बैंक से लिया लोन और खेती स्टार्ट की
शुरुआत में उन्होंने अपनी 6 एकड़ पैतृक जमीन पर लहसुन की खेती की। इस खेती को करने के लिए अधिक पैसों की जरूरत थी जो कि उनके पास नहीं थे ऐसे में उन्होंने बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाया और डेढ़ लाख रुपए का लोन लिया अब उन्होंने ठीक तरीके से काम शुरू करना शुरू किया करीब साढे 4 महीने में लहसुन की फसल तैयार हुई और इसे बेचकर गुरु को ₹10 लाख का फायदा हुआ। https://wp.me/p9wTOX-3a
पहली बार उन्हें इतना बड़ा फायदा हुआ जिससे उनकी खेती में और रुचि बढ़ी और उन्होंने लहसुन में जो फायदा हुआ उससे 6 एकड़ खेत और भी खरीद लिया तब खेती का दाम 80 हजार से 1लाख रुपए एकड़ था, ऐसे ही वह हर साल थोड़ी-थोड़ी जमीन खरीदते रहे और उनके पास 50 एकड़ जमीन है साल 2007 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह खेती करने लगे आज उनके पास 50 एकड़ जमीन है जिससे उन्हें करीब 55 लाख रुपए की कमाई होती है।
पानी की कमी होने के बावजूद नए – नए तरीके अपनाकर की खेती –

गांव में पानी की कमी थी ऐसे में खेतों में पानी दिए बिना फसल तैयार करना मुमकिन नहीं था इस पानी की परेशानी से निजात पाने के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से बात की और खेतों की सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया और ऐसे तरीके से खेती की जिससे कि 1 साल के अंदर रवि और खरीफ दोनों फसलों की अधिकतम पैदावार मिल सके। और उन्होंने रबी और खरीफ की फसलों के बीच भी ऐसी फसल उगाना शुरू करने की सूची जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता कम ना हो और फसल अच्छी हो। कम पानी में सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का सहारा लिया इससे उन्हें फायदा तो हुआ ही साथ में खेत में लेबर चार्ज की भी कमी आई।http://topsuccessstory.com/hindi/
फसलों के बारे में जानकारी दी
गुरु ने बताया कि पानी की परेशानी से निजात पाने के बाद खेती में 1 साल के अंदर तीन फसल तैयार करते थे यह सब नकदी फसलें होती है। इसमें वे बताते हैं कि शुरू में सितंबर से अक्टूबर में लहसुन लगाते थे जो कि फरवरी-मार्च में तैयार हो जाती थी इसके बाद गोभी लगाते थे जो कि मई से जून में तैयार हो जाती थी इसके बाद स्वीटकॉर्न लगा देते थे गोभी और स्वीट कॉर्न की फसल 60 से 65 दिन में तैयार हो जाती थी यह प्रक्रिया साल 2012 के बाद तक चलती रही।
खेती करने के तरीके में बदलाव करते हुए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के चलते गोभी की जगह आलू की खेती करने लगे जो कि दिसंबर तक तैयार हो जाती। इसके बाद जनवरी – फरवरी में खेतों में सब्जी लगाते हैं अभी 30 एकड़ में फूलगोभी लगी और 20 एकड़ में तरबूज – खरबूज लगे। बाकी हिस्से में गेहूं की खेती करते जो कि खुद के लिए होता है इसे वे बेचते नहीं है। जब अप्रैल-मई में खेत खाली हो जाता है तो उसमें स्वीट कॉर्न लगाते हैं जो कि महाराष्ट्र और जबलपुर जाता है इसके लिए व्यापारी खुद खेतों में आते हैं और कीमत तय करके जाते हैं और खुद ही माल ले जाते हैं।

पेप्सीको के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे
गुरु कहते हैं कि जो किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं करते उनसे हमारी स्थिति काफी बेहतर है इसमें यह किसान पर निर्भर करता है कि वह उन्हें पूरी फसल दे या ना दे। इसके अलावा कंपनी अच्छी गुणवत्ता के बीज कम दाम में उपलब्ध कराती है। कंपनी के लोग खेतों में आकर उन्हें यह भी बताते हैं कि कौन सी खाद का छिड़काव करना है और भी जानकारी देते हैं। इन सब के बावजूद फसल के दाम मार्केट में फिक्स रेट से ज्यादा होता है तो कंपनी उनकी फसल का रेट भी बढ़ा कर देती है।
गुरु और भी कंपनी के फायदे बताते हुए कहते हैं कि पिछले साल का उदाहरण देते हुए कि कंपनी ने 27.70 रुपए प्रति किलो की दर से हमें सीट दिया था। वही जिस रेट पर आलू खरीद नाते हुआ था उसके तहत 30 नवंबर तक 16 .64 रुपे, 1 से 15 दिसंबर तक 15.29 रुपे और 15 से 31 दिसंबर तक 14.9 रुपए का रेट तय था लेकिन आलू का मार्केट में दाम ज्यादा रहा इस कारण कंपनी ने हमसे दिसंबर में ₹24 प्रति किलो हिसाब से आलू खरीदा वहीं 30 जून तक जो आलू गया वह भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के रेट से ₹3 ज्यादा पर किसानों से खरीदा गया। इसके जरिए वे यह बताना चाहते है कि किसानों को कम्पनी कभी भी घाटे में नहीं जाने देती है।
आज छिंदवाड़ा के 500 से ज्यादा किसान पेप्सिको के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रहे हैं। जो किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं कर रहे हैं उनसे इन किसानों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। यह बात है कि छिंदवाड़ा जिले के किसान तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करना चाहते हैं लेकिन कंपनी का अपना टारगेट होता है कि उन्हें साल भर में कितना आलू खरीदना है।http://topsuccessstory.com/hindi/
खेती करने पर गुरु के विचार
गुरु बताते हैं कि वह अपनी किसानी से संतुष्ट और प्रसन्न है। वे बताते हैं कि अगर वह सिर्फ सरकारी नौकरी करते तो उनके पास मोटरसाइकिल होती लेकिन आज उनके पास बड़ा घर, गाड़ियां और जिले का सबसे बड़ा ट्रेक्टर है यह सब शायद वह अपनी नौकरी से नहीं पा सकते थे। वे कहते हैं कि लोगों को लगता है खेती, किसानी कमाने का अच्छा साधन नहीं है लेकिन वह कहते हैं इसे करते समय पारंपरिक तौर तरीके बदलने की जरूरत है आधुनिक तरीके से खेती करने की जरूरत है अगर वे ऐसा करेंगे तो मुनाफा मिलेगा।
सन 2019 में गुरु प्रसाद पवार को जिला व राज्य स्तर पर प्रगतिशील कृषक के तौर पर सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए भी अपनी और अन्य किसानों की आय बढ़ाने के लिए भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। https://wp.me/p9wTOX-3a
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मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वातारोही , छोटे से गांव में पली बढ़ी , किसान की बेटी – मेघा परमार के संघर्ष की कहानी !
मेघा परमार – किसान की बेटी | Megha Parmar Success Story
जी हां मेघा एक ऐसी लड़की है जिसने अपने गांव का नाम अपने कठिन परिश्रम से पूरे देश मे रोशन किया

मध्य प्रदेश की पहली बेटी जिसने ऐसा काम कर दिखाया जो अभी तक किसी ने नहीं किया । उन्होंने अपने कठिन परिश्रम और अपने सपने के प्रति लगन से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की फतह हासिल ।
मेघा एक छोटे से गांव से है यह गांव मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कुछ ही दूर सिहोर जिले से कुछ ही दूर है छोटा सा गांव भोजनगर । भोजनगर एक ऐसा गांव है जहां की आबादी महज 100 घरों में 1500 लोगो के बीच है ।

मेघा एक छोटे से गांव भोजनगर के साधारण से परिवार से है मेघा के पापा का नाम दामोदर परमार और मां का नाम मंजू परमार है उसके पापा किसान है और मां ग्रहणी है। वो कहती हैं कि मुझे गर्व है कि में एक किसान कि बेटी हूं। लेकिन मेघा के सपने साधारण नहीं थे और उसके सपने की तरह उसके हौसले भी बहुत बड़े थे । उसका लक्ष्य ऐवरेस्ट की चोंटि तक पहुंचना था तो इरादा भी एवरेस्ट की तरह मजबूत था । फिर भी यह सब इतना आसान नहीं था।लेकिन मेघा कि जिद और जुनून के कारण वह एवरेस्ट की चोटी पर फतह हासिल कर चुकी है उसने अपने सपने को भी पूरा किया और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराया ।मेघा ने बुधवार सुबह 10 बजकर 45 मिनिट पर माउंट एवरेस्ट की चोटी (जो कि 29 हजार 29 फिट ऊंची है) पर तिरंगा लहराया ओर साथ ही सीहोर कि मिट्टी और पत्थर भी वहां रख दिया ।
कैसे आया आयडिया- तो मेघा बताती है कि घर में परवरिश के समय भाई को ज्यादा अच्छे से रखते उन्हे रोटियो पर घी लगाकर दिया जाता था और लड़कियों को बिना घी के दी जाती है और पूछने पर कहा जाता था कि तुम क्या करोगी, क्या नाम रोशन करोगी तुम तो लड़की हो एक दिन ससुराल चली जाओगी ।तो मेघा ने सोचा कि में ये अंतर हटा कर रहूंगी। ऐसे में मेघा ने सोंचा की में भी कुछ करके दिखाऊंगी अपने पापा का और अपने गांव का नाम रोशन करूंगी। ऐसे में उसके भाई सीहोर रहते थे तो उन्हे कामवाली के हाथ कि रोटियां अच्छी नहीं लगती थी तो मेघा को 12वीं के बाद रोटी बनाने के लिए सीहोर छोड़ दिया और साथ में कॉलेज भी कर रही थी ऐसे में उन्होंने अखबार में देखा कि दो लडको ने माउंट एवरेस्ट फतह किया तो मेघा सोंचा की अभी तक मध्य प्रदेश कि कोई भी लड़की टॉप ऑफ द वर्ल्ड पर नहीं गई, किसी लड़की ने ऐसा नहीं किया क्यों ना मै ये करूं। और मेघा कॉलेज में हर क्षेत्र में हिस्सा लेती थी और वो यह चाहती थी कि में स्टूडेंट ऑफ द ईयर बनु तभी उसे एवरेस्ट पर चढ़ने का आयडिया आया।

शुरुवात कैसे हुई – सिहोर आने के बाद मेघा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कि शुरुवात में तो किसी ने भी पूरी जानकारी नहीं दी बाद में धीरे – धीरे उसे पूरी जानकारी प्राप्त हुई ।पहली बार मेघा ने बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स अटल बिहारी इंस्टीट्यूट से ट्रेनिंग शुरू कि और यह 28 दिन का होता है वहां हर चुनौती से कैसे लड़ना है यह सीखाते है उसके बाद दो और एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स और 6 थाउजेंड की दो माउंटेन शाइन करना कंपल्सरी होता हैं ये सब करने के बाद अब बारी आती है 25लाख रुपए की तो किसी ने उसे बताया कि जो सोनी लोग होते हैं उनके पास बहुत पैसे होते है वो शायद कुछ मदद कर दे तो मेघा ने 500 ऐसे लोगो कि लिस्ट बनाई और उनके पास गई और बोली आप मेरी मदद कर दो जब ने एमपी कि पहली महिला बन जाऊंगी तो तो आपने नाम होगा और आपकी ब्रांड भी पापुलर ही जाएगी लेकिन ऐसे में बस उसे 15हजार रुपए ही मिले ।वल्लभ भवन और कहीं जगह गई वहीं से एक अधिकारी की नजर उस पर पड़ी तो उससे पूछा कि तुम यहां वहां क्यों जाती हो तो मेघा ने बताया कि मुझे एवरेस्ट की चढ़ाई करनी है फिर उसे मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से मदद मिली
24 साल की मेघा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं थी लेकिन उन्होंने हार न मानते हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया और मदद के लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एसआर मोहंती के पास पहुंची तो वे चोक गए कि मध्य प्रदेश के छोटे से गांव कि लडकी इस बारे में भी सोच सकती हैं और इतने बड़े सपने रखती है । उन्होने मेघा के हौसले, जिद और सपने के प्रति लगन को देखकर उसकी मदद की और मेघा को एनसीसी के अधिकारियों के पास भेजा ।मेघा ने अब पीछे मुड़कर नहीं देखा अपने सपने को पाने के लिए मेहनत करने लगी लेकिन यहां एक ओर चुनौती उसके सामने आई पैसे की । इस चुनौती में भी आईएएस मोहंती ने मेघा को एक फंड का सुझाव दिया और अनुमति दिलाने से लेकर पैसे दिलाने तक मोहंती जी ने उसकी बहुत बड़ी मदद की । इसलिए मेघा ने एवरेस्ट फतह करने के बाद सबसे ज्यादा आईएएस मोहंती को याद किया धन्यवाद दीया । मेघा की इस सफलता में एसआर मोहंती जी की बहुत बड़ी भागीदारी रही ।मेघा अपने साथ आईएएस मोहंती ओर उनकी पत्नी की फोटो भी ले गई थी एवरेस्ट की चोटी को छूने के बाद मेघा ने उनके तस्वीर के साथ फोटो क्लिक कर शेयर की ।
अब वो भोपाल से मनाली गई वहां भी उसके सामने एक चुनौती थी कि कोई सीट खाली नहीं थी वो वेटिंग में थी बाद में एक व्यक्ति नहीं आया और उसे सीट मिल गई। फिर बाद में वहा के टीचर्स ने पूछा कि तुम यह इतनी दूर क्यों आती जबकि कोई सीट खाली नहीं थी हम तुम्हे वापस जाने को भी कह सकते थे तो मेघा ने उन्हें बताया कि में यह काम करके ट्रेनिंग ले लेती लेकिन कुछ भी करके में कोर्स कर लेती ।
2018 में अधिकारी ने मदद की ओर माउंट एवरेस्ट के लिए गई और कहते हैं ना कि पहाड़ों में दर्द कहा नहीं जाता सहा जाता है चुनौतियां बहुत अलग हो जाती है वहां जूते भी 2-2 किलो के होते हैं और बेग 25 – 25 किलो के होते है हर क्षेत्र पर हार्ट पंप करने लगता है चार के होते हैं एक पर बर्फ पिघलाकर पानी पीते हैं और ड्राई फ्रूट वगैरह कुछ नहीं पच पाता है तो वहां सिर्फ जूस पीकर ही चढ़ाई करते हैं कैंप 370 डिग्री का ग्रेडियन होता है 7900 मीटर के बाद ऑक्सीजन बिल्कुल खत्म हो जाता है वहां से डेथ जॉन (death zone start) हो जाता है । सबसे बड़ी चीज होती है कि ग्लेशियर में डेड बॉडी तभी हुई होती है और ग्लेशियर के मूवमेंट करने पर डेड बॉडीज निकल के बाहर आ जाती है कहीं दफा डेड बॉडी के बगल से निकलना पड़ता है और कई दफा ऊपर से निकलना पड़ता है तब कैंप 4 पर पहुंचते हैं यदि वहां लिमिटेड ऑक्सीजन होती है तो तू सक्सेसफुल होगा वरना हो सकता है कि आप कभी वापस भी ना आए इन सब चुनौतियों के बाद भी 2018 में मेघा का मात्र 700 मीटर माउंट एवरेस्ट रह गया। वापिस आ गई क्योंकि उन्हें शेरपा ने बोला था की जिंदगी रही तो पहाड़ वही है हम दोबारा आ जाएंगे।लेकिन मैंने हार नहीं मानी फिर से मनाली इंस्टिट्यूट गई 1 जुलाई को उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था मेघा ने बताया कि जिंदगी का सबसे दर्द भरा सफर मनाली से दिल्ली और दिल्ली से भोपाल तक का रहा इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुआ होगा। घर पर फोन किया स्टेशन से तो पापा ने कहा घर मत आना ऐसे में उन्हें अपने टीचर के घर रहना पड़ा जब वो फ्रैक्चर से पीड़ित थी तो उनके टीचर मूवी लगा कर चले जाते थे और मेघा मूवी देखा करती थी वह बताती है कि हमेशा अच्छा देखना, अच्छा सुनना चाहिए जैसा हम सुनते हैं, देखते हैं, वैसा ही करते हैं “चक दे इंडिया” मूवी के डायलॉग को उन्होंने याद रखा और “मांझी: द माउंटेन मैन” की मूवी का डायलॉग “जब तक तोडूंगा नहीं, तब तक छोडूंगा नहीं”(Untill I break it….. Till then I won’t leave it…) उन्होंने अपना डायलॉग बनाया “जब तक चढ़ूंगी नहीं, तब तक छोडूंगी नहीं” इसी दौरान उसके पास उसके कोच सर मिलने आए और पूछा क्या तुम अब भी चढ़ाई करना चाहती हो तो मेघा बोला मैं छोडूंगी नहीं में करूंगी।
मेघा को बस अपने लक्ष्य पर ध्यान देना था अपने मोबाइल में तीन नंबर थे और ना कोई त्योहार मनाया ना दिवाली, ना होली फोकस मतलब फोकस । ग्राउंड, नौकरी और शाम की ट्रेनिंग और खाना बनाने के बाद सो जाती थी पुरानी चुनौतियों के साथ इस बार फाइनली 22 मई सुबह 5:00 बजे 2019 में माउंट एवरेस्ट टॉप पर थी । अब भी मेघा कि चुनौतियां कम नहीं हुई थी उसका जो चश्मा था (सनग्लास) धक्का-मुक्की में गिर गया था ऐसे में माउंट एवरेस्ट पर होते हैं तो सूरज की किरणें बर्फ पर पड़ती है और रिफ्लेक्ट होता है जिसके कारण आंखों की रेटिना झुलस जाती है जिसमें जिंदगी भर के लिए अंधे हो सकते हैं या 4 या 1 दिन के लिए भी आंखों की रोशनी जा सकती है । मेघा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ आंखों से पानी निकल रहा था और गाइड ने कहा बहन हमें बिना रुके जल्दी – जल्दी चलना होगा क्योंकि अक्सीजन लिमिटेड बची थी कैंप 4 में पहुंचे तो शाम हो चुकी थी तो उन्हें केंप 4 में रुकना पड़ा। डेथ जॉन वहां बहुत डेड बॉडी होती है । कैंप 3 और 4 के बीच में मेघा के पास ऑक्सीजन खत्म हो चुकी थी ऐसे में मेघा के गाइड ने मदद मांगी और वहां गाइड के दोस्त के साथी कि मौत हो चुकी थीं तो उनका आक्सीजन सिलेंडर मेघा को दे देते है और सिलेंडर चेंज करते हैं । ये रही मेघा के सबसे कठिन परिश्रम की कहानी ।

यह सबसे प्रेरित करने वाली कहानी है एक बार में नहीं हुआ तो मेघा ने फिर से कोशिश कि और पूरे देश मे अपने छोटे से गांव का नाम रोशन किया अब मेघा मध्यप्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही है और महिला एवं बाल विकास विभाग मध्यप्रदेश बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया । इसी कड़ी में मेघा ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ “trust me” (समाज बेटियों पर भरोसा करे, बेटियां असंभव कार्य को भी सफलतापूर्वक करती हैं) का संदेश प्रसारित किया।
धन्यवाद ।
लॉकडाउन की वजह से कई लोगो कि गई नोकरी जिनमें से कुछ लोगो ने अपना बिजनेस स्टार्ट किया –
आज हम जानेंगे एक ऐसे व्यक्ति की succes story के बारे में जिन्होंने लॉकडॉउन की वजह से अपनी नोकरी खो दी और अपनी खुद की कंपनी स्टार्ट की

प्रशांत महाराजगंज जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जमीन जायदाद ज्यादा नही है चार बहनों की शादी और कमाने वाले अकेले पापा इन्हीं सब कारणों को वजह से शहर आ गए और शुरू से ही आप्टिकल की कंपनी में काम किया । पचास हजार रुपए महीना सैलरी थी लगातार 16 साल कंपनी में काम किया और अब lockdown कि वजह से अपनी नोकरी खो दी
नौकरी चली गई थी अब परिवार को चलाने के लिए और बच्चो के भविष्य के लिए कुछ तो करना ही था ऐसे में उन्होंने खेती से जुड़े कुछ काम ( जैसे डेयरी फार्मिंग ) के बारे में भी सोंचा पर कुछ हासिल नहीं हुआ।
अब जिस कंपनी में वे काम कर रहे थे उस कंपनी में जो लोग उनके साथ काम कर रहे थे उन्हीं से उन्होंने चर्चा की तो उन लोगो ने अपना नजरिया बताया की आप्टिकल में ही कुछ न कुछ काम करना चाहिए क्योंकि उनके पास 16 साल का अनुभव भी था ऐसे में उन्होंने खुद को कंपनी खोलने का निर्णय लिया पर कंपनी स्टार्ट करने के लिए पैसे को जरूरत थी और साथ ही रिस्क लेने का डर भी था

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने अपने बेटे को बिजनेस स्टार्ट करने के लिए प्रेरित किया और अपना रिटायरमेंट फंड भी प्रशांत को दे दिया
अब कंपनी स्टार्ट करने के लिए पैसो की जरूरत थी
पैसों के लिए FD तुड़वाई अपने पापा का रिटायरमेंट फंड भी लिया और अपनी पत्नी की सेविंग्स भी ली यहां तक कि उधार भी लिया तब जाकर कंपनी स्टार्ट की ।
कंपनी स्टार्ट करते वक्त कुछ लोगो ने डिमोटिवेट भी किया और कुछ ने कहा अभी कंपनी स्टार्ट मत करों पर प्रशांत ने ठान लिया था कि लॉकडाउन में कुछ तो करना है।
प्रशांत पहले की कंपनी में up बिजनेस हेड की भूमिका में काम करते थे उस समय 20 -22 लोगो ने उनके कहनें पर अलग अलग कंपनी से नौकरी छोड़कर अप्टिकल की कंपनी में काम किया।

यह कंपनी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनव में फैजाबाद रोड पर मटियारी गांव से पहले बालाजीपुरम कॉलोनी के टू बिएचके घर में आप्टिकल कंपनी का ऑफिस बना हुआ हैं ऑफिस अभी छोटा है लेकिन कंपनी के एमडी प्रशांत श्रीवास्तव से लेकर अकाउंटेंट तक बैठते हैं और वे कहते हैं कि कंपनी अभी छोटी है पर 2025 तक हर बड़े से बड़े शहर में ऑफिस खोलेंगे । अभी कंपनी में पूरे प्रदेश में 22 लोगों कि टीम काम कर रही हैं।
Company के बारे में जानकारी-
प्रशांत बताते हैं कि अलग अलग शहरों में अपने परिचित डाक्टरों से बात करके उनके हॉस्पिटल और क्लीनिक में अपना आउटलेट खोला लगभग आधा दर्जन शहरों में उनके आउटलेट है।
अब हर महीने लगभग 22 से 25 लाख की सेल चश्मे और लेंश की होती है। सबकी सैलरी , कम्पनी का फायदा और खर्चे निकालकर उनके पास सवा लाख रूपये बचते हैं
हर महीने 25 लाख रुपए की सेल और सवा लाख रुपए की बचत होती हैं यह एक बहुत बड़ी अचीवमेंट है।
आज हम बात करेंगे आईपीएस अधिकारी सचिन अतुलकर जी की सफलताओ के बारे में –
सचिन अतुलकर का जन्म 8 अगस्त 1984 में भागलपुर, भोपाल में हुआ था ।

उन्होंने स्नातक कि पढ़ाई वाणिज्य (बी कॉम) से उत्तीर्ण किया हैं
IPS बनने वाले विद्यार्थियों के लिए वे एक प्रेरणा स्रोत है
उन्होंने बताया कि उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद किया अटेंप्ट और पहली बार में ही सफल हुए।
सिविल सेवा परीक्षा 2006 में उन्होंने 258 रैंक प्राप्त की थी
मात्र 22 साल की उम्र में बने आईपीएस और वे पुलिस डिपार्टमेंट में बहुत ही जानेमाने अधिकारी बन चुके हैं


अपनी हैल्थ और बॉडी को लेकर वो अधिकतर चर्चा में रहते हैं आजकल के लड़के लड़की उनकी पर्सनालिटी के दीवाने हैं
वे अपनी हैल्थ को लेकर बहुत ही सजग रहते हैं और वे योगा भी करते हैं ताकि उनका दिमाग स्वस्थ रहें और सभी लोगो को भी योग करने के लिए जागरूक करते हैं



सिर्फ सिविल सेवा में ही नहीं उन्होंने खेल जगत में भी बहुत से 🏅 गोल्ड मेडल प्राप्त किए हैं
नेशनल लेवल के क्रिकेट प्लेयर भी रह चुके हैं उन्होंने 1999 में इन्होंने नेशनल लेवल पर क्रिकेट खेला और गोल्ड मेडल भी जीता था।
यही तक नहीं सचिन घुड़सवारी यानी horse riding का भी शौक रखते हैं घुड़सवारी में भी उन्होंने गोल्ड मेडल प्राप्त किया है।
सचिन अतुलकर के पिता फॉरेस्ट सर्विस (भारतीय वन सेवा अधिकार) से रिटायर है ओर उनके भाई भारतीय सैना में पदस्थ है।
सचिन अतुलकर युवाओ के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है इनसे प्रेरणा लेकर अधिकतर युवा सिविल सेवा में अपना योगदान देंगे।