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ग्राम भौंरा में 2 सालो के बाद भव्य मैले (जत्रा) का आयोजन किया गया :-

इलाही माता मंदिर में तेल चढ़ाने का कार्यक्रम –

यह कार्यक्रम नवमी (श्रीराम नवमी)के दिन शाम से शुरू होता है, जो की दशमी, एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), तेरस के दिन तक चढ़ता है । इस तरह माई के दरबार में पूरे पांच दिन तक तेल चढ़ाने (बाने बिठाने) का कार्यक्रम चलता है। इस कार्यक्रम में सभी गांव की लड़कियां एवं महिलाएं शाम के समय तेल चढ़ाने जाती हैं और वहीं तेल चढ़ाने के बाद नाचती गाती हैं, और सभी बड़े ही धूम – धाम से इस अवसर का आनंद लेती हैं। इस कार्यक्रम के दौरान मैय्या के दरबार को लाइट और सजावट से बड़ा ही सुन्दर सजाया जाता है वह नजारा मन को प्रफुल्लित करता है, साथ ही नचाई के लिए तीन से चार ढोल रहते है।

तेरस के दिन शाम को मेला लगता है और यह दो दिनों तक रहता है, चतुर्दशी (चौदस) के दिन सुबह के समय माता मंदिर में महाआरती का आयोजन होता है चवदश कि सुबह 5 बजे भंवरा ईलाई माता को पूजा चढ़ाई जाती है जिसमें पूरे गांव का हर व्यक्ति शामिल होता है 🙏🙏🙏 जिसमे सभी महिलाएं दीपक और पूजा की थाल सजाकर ले जाती हैं और बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ आरती का कार्यक्रम पूरा होता है । पूजा चढ़ाते वक्त सभी देवी देवताओं का जयकारा लगाया जाता हैं । सभी महिलाओं से पूजा एकत्रित करके बड़े थाल में लेकर मैय्या की पूजा की जाती हैं या मैय्या के पास चढ़ाया जाता हैं, यह प्रक्रिया आप वीडियो में dekh सकते है।

मैय्या के दरबार में पूजा चढ़ाई गई।
मैय्या का दरबार

मेला (जत्रा ) :-

ग्राम भौंरा में 2 साल के बाद मेला लगा जिसमे सभी लोगो ने खरीददारी की, झूले झूले और साथ ही खाने के लिए आइसक्रीम, बर्फ, लस्सी, मिठाई और तरह तरह के समान थे । मेले में हर तरह के समान के दुकानें थी चूड़ियां, कपड़े, चप्पल जुतिया, बच्चो लिए गुब्बारे, गुड़िया, छोटे छोटे खिलौने, तरह तरह की तस्वीरे और मेकअप , गले के हार, ईयरिंग सभी तरह के दुकानें लगाई गई। हर तरह की दुकानें देखने को मिली।

जुतिया
रात के समय जत्रा

मैले में दिन और रात दोनो समय काफी भीड़ दिखाई दी । सभी लोगो ने मैले का बहुत आनंद लिया और बच्चो ने भी खूब सारी मस्ती की । बच्चो के लिए भी ढेर सारी दुकानें थी जैसे खिलौने, गुब्बारे और झूले आदि।

भंवरा इलाही माता मंदिर महाआरती लाइव फोटोज विडियोज – 14th October, 2021

 

यहां हर वर्ष नवमी के दिन महा आरती का आयोजन किया जाता है नवरात्रि के समय में नवरात्र पर्व पर माता के मंदिर में भक्तों का भारी मात्रा में तांता लगा रहता है। श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं नवरात्रि के समय में हर रोज माता के मंदिर में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए व अपनी मन्नत पूरी होने के लिए पहुंचते रहते हैं। यहां पर नवमी के दिन भारी मात्रा में भीड़ रहती है इसी वजह से नवरात्री के दिनों में मन्दिर में भक्तों चहल – पहल लगी रहती हैं। नवरात्रि कि हर दिन श्रद्धालु 4:00 बजे से मंदिर में पहुंच जाते हैं, सुबह 4:00 बजे ओम नमः शिवाय के मंत्रों के जाप के साथ पूरे गांव में प्रभात फेरी निकाली जाती है, उसके बाद 5 बजे मंदिर में आरती उतारी जाती है आरती में बड़ी मात्रा में भीड़ होती है आसपास के गांव के सभी लोग आरती में आते हैं।

 

मां के मन्दिर में आरती ।
इलाई माता मन्दिर में महाआरती का आयोजन
मंदिर में भक्तो का आना जाना हर समय लगा रहता है।

महानवमी के दिन मंदिर में विशेष पूजन विधि के साथ महा आरती का आयोजन – इस दिन पूरे मन्दिर दीपो से सजाया जाता है साथ ही लाइट भी लगाई जाती है इस सजावट के कारण मंदिर का भव्य रूप देखने लायक होता है। इस दिन सुबह – सुबह के समय महिलाएं आरती का थाल सजाकर वह पूजन का थाल लेकर मंदिर में पहुंचती है। हर वर्ष नवरात्रि के नवमी में मंदिर में महाआरती का आयोजन किया जाता है तथा विशेष हवन पूजन विधि भी की जाती है और साथ ही मातारानी का आलौकिक श्रृंगार किया जाता हैं तथा 56 भोग लगाया जाता हैं। इन सबके साथ मंदिर में आरती के बाद भजन कीर्तन भी होता है जिसका सभी भक्त आनंद लेते हैं और इस महाआरती में आसपास के गांव से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं । सभी की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

मां इलाही धाम भौंरा
Mandir ki sajavat
मां इलाई के दरबार में अखंड ज्योति जलती है जिसमे करंज का तेल चढ़ता है।

माता के दरबार में चुनरी यात्रा –

ग्राम भंवरा में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है, दुर्गा अष्टमी या महा अष्टमी का दिन –

दुर्गा अष्टमी का दिन नवरात्रा के 9 दिनों में से सबसे बड़ा दिन माना जाता है इस दिन भक्त मां दुर्गा की पूजा करते हैं मां दुर्गा के अस्त्र-शस्त्र की पूजा भी करते हैं। अस्त्र – शस्त्र की पूजा के कारण इस दिन को वीराअष्टमी भी कहा जाता हैं। सभी लोग अष्टमी का व्रत रखते हैं तथा दुर्गा मां के लिए पूजा करते हैं इस पूजा में बीच में मिट्टी के 9 घड़े रखे जाते हैं और उन घड़ों में मां के नौ शक्तियों का आवाहन किया जाता है।

सभी लोग इस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं और अष्टमी के कुछ दिन पहले अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं अपना सारा काम जल्दी से जल्दी समाप्त करने के बाद पूजा की तैयारी की जाती हैं इस दिन भक्त उपवास भी रखते हैं इसमें कुछ लोग निर्जल उपवास रखते हैं तो कुछ लोग जल, दूध का सेवन करके भी उपवास रखते हैं, उपवास में चावल, दाल, गेहूं जैसे चीजों का सेवन नहीं किया जाता है। सभी लोग सुबह – सुबह स्नान करने के पश्चात मंदिर में मां दुर्गा के दर्शन के लिए जाते हैं उसके बाद घर पर संध्या के समय मां दुर्गा की पूजा की तैयारी की जाती है। विशेष दिन के लिए सभी लोग जो अपने घरों से दूर रहते हैं वे कुछ लोग तो अपने काम से छुट्टियां लेकर अपने गांव और घर को वापस आ जाते हैं जो छात्र पढ़ने के लिए बाहर जाते हैं वह भी इस विशेष दिन को मनाने के लिए, पूजा करने के लिए अपने घर आते हैं और बड़े ही भक्ति भाव के साथ इस दिन को मनाते हैं।

मां दुर्गा के भव्य रूप के दर्शन ।

यह पूजा शक्ति , साहस, सफलता और समृद्धि के लिए देवी दुर्गा की पूजा की जाती है वह शक्ति, नैतिकता और सुरक्षा का प्रतीक है लाभ में रोगों से सुरक्षा और राहत उपयुक्त परिणामों का आकर्षण, साहस का दुर्गा का आशीर्वाद शामिल है दुर्गा अष्टमी का व्रत देवी दुर्गा की कृपा पाने के लिए किया जाता है।

लाइव …ग्राम भवरा के आनंद चौदस झाकियों की लाइव फोटोज वीडियोस | अनंत चतुर्दसी महोत्सव , 2021 , ऐतिहासिक समारोह !

झांकियो की लाइव तश्वीरे और वीडियोस

आनंद चौदस झांकी २०२१ समारोह / सेलिब्रेशन की लाइव तश्वीरे और वीडियोस आप सभी के लिए लेकर आये हे , २ साल आनंद चौदस की झांकी निकली , गांव के सभी लोगो ने बहुत आनंद लिया और बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। झांकिया माताजी के चौक से सुरु होती हे क्रम वॉर और पंचायत भवन से होते हुए, चंपावली बखुल, टाला का लीम, स्कूल चौराहे  से होते हुए, स्कूल मोहल्ले, बड़ा मंदिर, पेला साथ , पाठा से होते हुए विषर्जन के लिए जाती हे !

 

 

हर एक मंदिर की एक झांकी होती हे , उसके साथ ट्रेक्टर पर बने मंच पर नृत्य एवं संगीत से भरपूर भजन गाने होते हे जसमे गांव के हर एक वर्ग के लोग आनंद उठाते हे ! आनंद चौदस भवरा गांव का बहुत बड़ा त्यौहार होता हे ! १० दिन गणेश जी पूजा अर्चना और आरती करने के बाद चौदस के दिन गणेश विषर्जन झांकियो के साथ होता हे !

झांकियो की लाइव तश्वीरे और वीडियोस

ग्राम भंवरा में अनंत चतुर्दशी की झांकियों की पूरी तैयारी बारिश बंद होने का इंतजार

इस वर्ष 19 September 2021 का दिन विशेष है । इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी का श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ विसर्जन किया जाएगा। कोरोना के कारण पूरे 2 साल बाद इस बार वापस से अनंत चतुर्दशी की झांकी निकालने का मौका मिल रहा है।

आनन्द चौदस की लाइव झांकी pics and videos

लाइव …ग्राम भवरा के आनंद चौदस झाकियों की लाइव फोटोज वीडियोस | अनंत चतुर्दसी महोत्सव , 2021 , ऐतिहासिक समारोह !

गणेश विसर्जन जुलूस – ग्राम भंवरा में बड़े ही हर्ष, उल्लास और श्रृद्धा पूर्वक भगवान गणेश जी के विषर्जन की तैयारी की जाती हैं । यहां पर सब लोग विसर्जन के दो-चार दिन पहले एकत्रित होकर मंदिर में सभा बुलाकर निर्णय लेते है और अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाए जाते हैं । गणेश उत्सव झाँकि पथ संचलन के लिए मीटिंग रखी जाती हैं। बड़े ही सुंदर तरीके से झांकियां बनाई जाती है और ढोल – नगाड़ों के साथ झांकियों में भगवान गणेश जी को बिठाकर सारे गांव में जुलूस निकाला जाता है आसपास के गांव के लोग थे जुलूस देखने आते हैं। बड़ी संख्या में लोग उपस्थित होते हैं और जुलूस का आनंद लेते हैं।
इस वर्ष प्रत्येक मंडली का पथ संचलन कुछ इस प्रकार रहेगा-
1. *श्री राम कृष्ण मंदिर समिति*
2. *श्री बजरंग मंडल समिति*
3. *श्री दुर्गा शंकर समिति*
4. *श्री बालमण्डल समिति*
5. *श्री अयोध्या मंडल समिति*
6.*श्री राम मंदिर बड़ा समिति*

https://youtube.com/shorts/mpHdvrgiyjs?feature=share

https://youtube.com/shorts/mpHdvrgiyjs

सारे गांव में जुलूस निकालने के बाद गणेश जी को विसर्जित करने के लिए नदी या तालाब पर ले जाया जाता है और वहां पूजा पूजन करने के पश्चात गणेश विसर्जन किया जाता है। गणेश चतुर्थी के साथ ही गणेश स्थापना का सिलसिला शुरू हो जाता है और फिर धूमधाम से उनका विसर्जन होता है। जिस स्थान पर बप्पा का विसर्जन करना है, वहां पहुंचकर सर्वप्रथम कपूर जलाकर आरती करें। गणेश जी के समक्ष प्रार्थना करते हुए उनसे आशीर्वाद लें और बप्पा से क्षमा मांगे और खुशी-खुशी जयकारों के साथ बप्पा को विदा कर दें। गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित करते समय ऐसे ही पानी में नहीं डालना चाहिए। उन्हें बहुत सम्मान के साथ धीरे-धीर विसर्जित करना चाहिए।


कैसे करें गणपति बप्पा का विसर्जन वैसे तो अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन किया जाता है लेकिन कुछ लोग 5, 7, 9 दिनों में भी विसर्जन करते हैं.इसलिए जितने दिन तक बप्पा को अपने घर स्थापित करने का संकल्प आपने लिया हो उसी तिथि को बप्पा का विसर्जन करें। भगवान गणेश के विसर्जन वाले दिन भी बप्पा की विधि पूर्वक पूजा करें जैसे प्रतिदिन करते हैं। बप्पा को भोग अर्पित करें।


उसके बाद एक लकड़ी का साफ-सुथरा पाटा लेकर उस पर गंगाजल डालकर पवित्र कर दें। उस पाटे पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाएं, उस पर अक्षत अर्पित करें और लाल या पीले रंग का कपड़ा पाटे पर बिछाएं। कपड़े के चारों कोनों पर पूजा की सुपारी रखें, गुलाब के फूलों और पंखुड़ियों को पाटे पर बिखेर दें। गणेश जी के जयकारों के साथ सावधानी से गणेश जी की प्रतिमा को उठाकर पाटे पर रखें, और साथ में गणेश जी के प्रिय मोदक, फल, फूल कुमकुम और वस्त्र, आदि भी रखें।

बड़े हर्ष उल्लास के साथ ग्राम भंवरा में मनाया गया वामन ग्यारस, जयंती एकादशी एवं परिवर्तिनी एकादशी का पर्व-

भादो शुक्ल पक्ष के 11 दिन बाद यह ग्यारस मनाई जाती है इस वर्ष 17 सितंबर 2021 को डोल ग्यारस का आयोजन किया गया ।

ग्राम भंवरा में एकादशी का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया गया, कहते हैं कि बाल रूप में श्री कृष्ण जी पहली बार इस दिन माता यशोदा और पिता नंद के साथ नगर भ्रमण के लिए निकले थे इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न हुआ था, उसी प्रकार आज तक इस दिन को मनाया जाता है। झांकियों का आयोजन किया जाता है, माता यशोदा की गोद भी भरी जाती है। कृष्ण भगवान को डोल में बिठाकर झांकियां सजाई जाती है, इसी अवसर पर डोल को बहुत ही सुंदर भव्य रुप में झांकी की तरह सजाया जाता है, फिर एक बड़े जुलूस के साथ पूरे गांव में ढोल- नगाड़े, नाच – गाने, के साथ इनकी यात्रा निकाली जाती है यात्रा में सभी लोग गम्मत करते हुए जाते हैं ।

इस तरह से झाकियां को बड़े ही सुन्दर भव्य रूप से सजाई जाती हैं और पूजा की जाती है ।

सारे गांव में यात्रा/भ्रमण करने के बाद जिस स्थान पर नदी या तालाब हो वह ढोल लेकर जा कर पूजा की जाती है पूरे गांव में भ्रमण व नदी के भ्रमण के बाद कृष्ण जी को वापस मंदिर में लाकर स्थापित करने के बाद पूजन व आरती की जाती है।

इस तरह से सारे गांव में यात्रा निकाली जाती हैं और साथ में सब लोग भजन करते हुए जाते हैं ।

एकादसी व्रत का महत्व – भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की एकादशी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक माना जाता है इस दिन सभी लोग व्रत रखते हैं इस व्रत से पापो की मुक्ति व सुखद अंत के लिए प्रार्थना की जाती है सभी लोग एकादशी व्रत का पालन करते हैं। व्रत का वेज्ञानिक तरीके से भी देखा जाए तो बहुत लाभ है , इसे एकादशी में वर्ष की सबसे बड़ी एकादशी भी कहा जाता हैं।

इस एकादशी को डोल ग्यारस या परिवर्तिनी एकादशी क्यों कहा जाता हैं – इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था अर्थात सूरज पूजा इस दिन माता यशोदा ने अपने कृष्ण को सूरज देवता के दर्शन करवा कर उन्हें नए कपड़े पहनाती है और उन्हें शुद्ध धार्मिक कार्यों में सम्मिलित किया इस प्रकार से डोल ग्यारस भी कहा जाता है और ऐसा भी कहा जाता हैं कि देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में गए भगवान विष्णु इस दिन निद्रा में करवट लेते हैं भगवान के करवट बदलने का समय भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है इसलिए इस एकादशी को परिवर्तीनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

पर्यटन मंत्री उषा ठाकुर जी ग्राम भवरा स्थित इलाही माता मंदिर पहुंची , ग्रामीणों ने किया स्वागत

आज दिनांक 15 सितंबर 2021 को मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट पर्यटन मंत्री माननीय उषा ठाकुर जी सीहोर जिले आष्टा तहसील ग्राम भौंरा पहुंची तथा प्राचीन मंदिर मां इलाही धाम मैं माताजी के दर्शन किए एवं पूजा अर्चना की। माननीय मंत्री जी का स्वागत क्षेत्र के सांसद महेंद्र सिंह सोलंकी, आष्टा विधायक रघुनाथ सिंह जी एवं अन्य भाजपा सदस्य तथा वरिष्ठ ग्रामीण जनों ने स्नेह से किया।कार्यक्रम के दौरान माननीय मंत्री जी ने शिवराज सिंह सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में बताया तथा केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं का लाभ लेने के लिए प्रोत्साहित किया। माननीय मंत्री जी ने मंदिर के लिए रिटर्निंग वाल की घोषणा की तथा आष्टा को उज्जैन कुम्भ से जोड़ने के बारे में आश्वासन दिया !


माननीय मंत्री जी ने प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए उचित राशि तथा पुरातात्विक विभाग में जोड़ने के बारे में आश्वासन दिया।
हम आपको बता दें कि ग्राम भौंरा में स्थित इलाई माता मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है जहां पर हजारों सालों से अखंड जोत या दीपक जलते आ रहे हैं मंदिर के बगल में बहुत ही पुरानी बावड़ी है जो पूरी तरह पत्थरों से बनी है आसपास के गांव से हर रोज श्रद्धालु माता जी के दर्शन करने आते हैं, माननीय मंत्री जी ने भी मंदिर में पूजा अर्चना की तथा ग्रामीणों की समस्याओं के बारे में भी विस्तार से सुना।

गांव के वरिष्ठ जनों ने समय-समय पर जनप्रतिनिधियों से निवेदन किया है कि माता इलाही मंदिर पुरातात्विक धरोहर है तथा उसे पर्यटन विभाग में जोड़ें। उसी कड़ी में आज माननीय मंत्री जी भंवरा ग्राम पहुंची एवं मंदिर, बावड़ी और अन्य पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण किया तथा जीर्णोधार एवं अन्य जरूरतों के लिए उचित राशि प्रदान करने का आश्वासन दिया।

 

 

कार्यक्रम के पश्चात माननीय मंत्री जी ने अपने निज आवास इंदौर के लिए रवाना हो गई।

पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए गांव के सरपंच श्रीहरीकुंवर मालवीय जी ने सभी कार्यकर्ता एंड ग्रामीण लोगो का धन्यवाद ज्ञापन किया।

 

Success story of IAS Nagarjun B Gowda – आर्थिक तंगी के कारण नौकरी के साथ ही 6 – 8 घंटे पढ़ाई की रणनीति बनाकर दुसरे प्रयास में बन गए आईएएस अधिकारी

आईएएस अधिकारी Dr.Nagarjun B Gowda

आइए जानते हैं नागार्जुन गौड़ा के बारे में – नागार्जुन गौड़ा का जन्म कर्नाटक के गांव में हुआ था, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। इन सब कठिनाइयों के चलते उन्होंने कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई की, इंटरमीडिएट के बाद उन्होंने एमबीबीएस का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया इसके बाद उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली। एमबीबीएस के बाद उन्होंने एक हॉस्पिटल में नौकरी ज्वाइन कर ली।

यूपीएससी की तैयारी में आई कठिनाइयां – परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण यूपीएससी की तैयारी पहले ना कर पाए, पहले उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की तथा हॉस्पिटल में नौकरी ज्वाइन की। एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के लिए उन्हें बहुत संघर्ष और कठिन परिश्रम करना पड़ा। लगातार मेहनत करते हुए हॉस्पिटल में जॉब करने के साथ उन्होंने यूपीएससी की तैयारी करने का मन बनाया और नौकरी के साथ ही तैयारी शुरू की।

प्रत्येक दिन 6 – 8 घंटे पढ़ाई को दिया :- नागार्जुन गौड़ा ने नौकरी के साथ हर दिन करीब 6 से 8 घंटे निकालकर पढ़ाई की। नागार्जुन गौड़ा का मानना है कि अगर हर चीज शेड्यूल के अनुसार तय करें और समझदारी के साथ प्लान करें तो लगातार कोशिश के कारण सिलेबस कंप्लीट होने के बाद ज्यादा से ज्यादा रिवीजन हो सके। इसके साथ ही समय प्रबंधन करना बहुत जरूरी है।

कठिन परिश्रम और लगातार कोशिशों नागार्जुन गौड़ा दुसरे प्रयास में UPSC exam में Rank – 418 UPSC CSE 2018 में आईएएस अधिकारी बन गए।

अन्य कैंडीडेट्स को नागार्जुन की सलाह – नागार्जुन गौड़ा का मानना है कि अगर आप एक अच्छी रणनीति के साथ हर दिन 6 – 8 घंटे पढ़ाई के लिए निकाल लेंगे तो नौकरी के साथ भी परीक्षा पास कर सकते हैं और वे कहते हैं कि अगर तैयारी करना चाहते हो तो बहाना बनाना बंद करें और संसाधनों का रोना रोना बंद करें जैसे भी पॉसिबल हो अपनी तैयारी करते रहे। जॉब करने के साथ भी आप तैयारी कर सकते हैं और कोचिंग के बिना भी सफलता प्राप्त की जा सकती है अगर आप स्मार्ट वर्क, हार्ड वर्क और धैर्य के साथ तैयारी करेंगे तो निश्चित रूप से यह सफलता प्राप्त कर सकते हैं।

वे बताते हैं कि इसके लिए आपको monthly, weekly, and daily का टाइम टेबल आवश्यक है। आपको हर एक सब्जेक्ट के लिए टाइम टेबल में समय देना है और समय समय पर अपना कार्य पूर्ण करना है आप समय डिवाइड कर सकते हैं

  1. Monthly to weekly,
  2. weekly to daily,
  3. daily to hourly,
  4. इस तरीके से आप का सिलेबस कंप्लीट हो जाएगा इसके साथ आपका हर दिन का एक टारगेट होना चाहिए और टारगेट पूरा करना चाहिए और साथ ही (time management) समय प्रबंधन करना चाहिए।
  5. यदि आप 1 घंटे के लिए पढ़ते हैं तो 5 – 10 मिनट का ब्रेक और आधे घंटे के लिए पढ़ते हैं तो 5 मिनट का ब्रेक ले सकते हैं।
  6. कोचिंग करना इतना इंपोर्टेंट नहीं है अगर आपको टॉपिक्स को समझने में कठिनाई आती है तो आप कोचिंग कर सकते हैं यदि आपको अच्छे से समझ आ रहे हैं और आप अपनी पढ़ाई ठीक से कर रहे हैं तो कुछ ना करें सेल्फ स्टडी करके भी यूपीएससी के एग्जाम की तैयारी कि जा सकती है।

तरिषी जैन ने घर से शुरू की कंपनी – २ करोड़ का टर्नओवर

महिला चाहे तो क्या नहीं कर सकती,इसका एक बेहतरीन उदाहरण है- तरिषी जैन।जी हा हम बात कर रहे है,एक उभरते सितारे की,जो अपनी जगमगाहट से सबको रोशन कर रहा है। तरिषी जैन- कोई आम महिला नही,वो एक जीती जागती मिशाल है।

सोनीपत मे रहने वाली तरिषी जैन के सपने भी आज के उभरते युवाओं से ही थे,आर्किटेक्ट से अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद तरिषी ने 2011 मे अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी की।तरिषी 2012 मे निवेश आनंद अरोरा से शादी की ओर यहाँ से अपने पति के साथ आगे बढ़ते हुए कदमो को रफ्तार दी।

प्रतिभा की धनी तरिषी ने 2013 मे MA आर्किटेक्ट मे Sr.architect का पदभार सम्भाला।कुछ अलग करने का जज्बा रखने वाली तरिषी यहाँ पर ही नही रुकी,वो कुछ अलग करने का जज्बा मानो रोके नही रुकता था।

2015 मे जब उनकी बेटी का जन्म हुआ,देश की हर दादी -नानी की तरह ,पोती के आगमन से तरिषी की सास बहुत प्रसन्न हुई।उन्होंने अपने हाथों से अपनी पोती के लिए ड्रेस बनाई।ड्रेस जो की बहुत ही खूबसूरत और यूनिक थी।तरिषी ने अपनी सास की बनाई हुई ड्रेस का फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड किया……..ये फोटो तरिषी की जिंदगी बदल देगा ,ये किसको पता था?वो लुभावनी ड्रेस ….तरिषी के फ़्रेंड्स को ही नही वरन रिस्तेदारो को भी बहुत पसंद आई।और यही से तरिषी ने जिंदगी के नए आयाम गढ़ने शूरु कर दिए।तीव्र बुद्धि तरिषी इसे ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया और अपनी सास से बच्चो के ऊनि कपड़े ,नए नए डिज़ाइन सीखने प्रारंभ किये।लेकिन कपड़ो की अच्छी- खासी मांग होने के कारण सिर्फ दो लोगो का काम करना पर्याप्त नही था।तरिषी ने अपने साथ ओर भी महिलाओ को जोड़ा,ओर जिंदगी मे आगे बढ़ी।

महिला को उसके पति का साथ मिल जाये तो भई क्या कहने,ऐसा ही कुछ तरिषी के साथ भी हुआ।तरिषी के पति ने उनका पूरा पूरा सहयोग किया।

आज की तारीख मे देखा जाए तो मात्र 500 रुपये से शूरूआत करने वाली तरिषी का टर्नओवर 2 करोड़ तक पहुँच गया है।

तरिषी अमेज़न ओर फ्लिपकार्ट जैसे जानी मानी ऑनलाइन शॉपिंग एप्प के जरिये भी अपने प्रोडक्ट बेचती है।वो Ajooba.in की फाउंडर और CEO है।तरिषी के पति ने भी 2019 मे अपनी नोकरी छोड़ तरिषी का हाथ बटाना शूरु किया।इनका हेड ऑफिस हरियाणा मे स्थित है।अब तरिषी की कंपनी ने हैंड मेड ( होम डेकोरेशन) के आइटम्स भी बेचना शुरू किया….इसमें भी उनको तरक्की ही हाथ लगी।

तरिषी की तरक्की का मुख्य श्रेय सोशल मीडिया और उनकी लगन को जाता है।वो अपने प्रोडक्ट के फोटो और वीडियो भी शेयर करती है,आज उन्हें लगभग 200-300 प्रतिदिन आर्डर मिल जाते है।आगे.. उनकी अपने बिजनेस को बढ़ाने के लिए …कनाडा मे अपनी एक ओर कंपनी डालने का प्लान है।

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ग्राम मुल्लानी की बहन रितिका एवं प्रीति को रनिंग के लिए Rs 5000 प्रोत्साहन राशि सुनील परमार भंवरा ग्रामीण मंडल अध्यक्ष द्वारा सप्रेम भेंट।

ग्राम मुल्लानी की बहन रितिका एवं प्रीति को रनिंग के लिए Rs 5000 प्रोत्साहन राशि सुनील परमार भंवरा ग्रामीण मंडल अध्यक्ष द्वारा सप्रेम भेंट।

जैसा कि आप सभी को विदित है ग्राम मुल्लानी मैं बहन रितिका एवं प्रीति जिनकी उम्र क्रमशः 10 और 8 वर्ष हैं, मुल्लानी से भंवरा रनिंग करते हुए आई थी , उनको रनिंग के लिए जरूरी सामान जैसे shoes, ट्रैकसुट इत्यादि सामग्री खरीदने हेतु माननीय सुनील जी ने सहायता राशि उपलब्ध कराई। आपके इस प्रयास के लिए सुनील जी का बहुत बहुत धन्यवाद। ग्राम के बाकी युवाओं ने भी दोनो बहनों का स्वागत सत्कार किया था।

दोनो बहनों ने महिला दिवस पर कोटरी से आष्टा तक की 15 km ki रनिंग की थी। दोनो बहनों ने आष्टा एवं आसपास के एरिया में रनिंग के प्रति जागरूकता एवं खासकर लड़कियों महिलाओं को आगे बड़ने के लिए प्रोत्साहित कर रही है, समय समय पर mullani के आसपास के गावों और बहुत सारे कार्यक्रम में हिस्सा लेकर युवा पीढ़ी को आगे बड़ने का जज्बा और होशला प्रदान करती है।

ग्राम भंवरा के सभी युवा लोग दोनो बहनों के मंगल भविष्य की कामना करते है ।

खबर सीधे खेत से – सोयाबीन के प्रति किसानों का घटता झुकाव, खरीफ की बोनी 90 % पूर्ण।

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको सीधे ले चलते किसान भाइयों के साथ खेत पर जहा से आपको बताएंगे कैसे सोयाबीन के प्रति किसान भाई उदासीन he । हमने आष्टा इछावर सीहोर शुजालपुर के किसानों से बातचीत करके ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की है, हम आपको बताएंगे कि कैसे किसानों ने समय रहते खरीफ की बुवाई पूरी कर ली हैं। ज्यादातर किसान भाइयों ने सोयाबीन मक्के की फसल को प्राथमिकता दी है।

सोयाबीन के प्रति घटता झुकाव

जैसा की आप सभी को पता ही है कि पिछले साल सोयाबीन की फसल ना के बराबर हुई थी इस कारण इस साल किसानों को सोयाबीन के बीज की भारी किल्लत झेलनी पड़ी जो सोयाबीन सीजन के समय में 3000 से 4000 के रुपए प्रति क्विंटल बिका था आज वही बोनी के टाइम पर 8000 से ₹9000 प्रति क्विंटल मिल रहा है। इतने महंगे बीच के दामों के कारण ज्यादातर किसान भाइयों ने इस बार सोयाबीन के साथ-साथ दूसरी फसल जैसे मक्का उड़द ज्वार इत्यादि फसलों को भी अपने खेत में बोया है सोयाबीन पिछले दो-तीन सालों से किसानों को अच्छा फायदा नहीं पहुंचा पा रहा है।

इस साल सोयाबीन की बोनी थोड़ी जल्दी हुई है हर साल हिंदी महीने के हिसाब से गंगा दशहरा के समय बोनी शुरू होती है लेकिन लेकिन मानसून के जल्दी आने से आष्टा एवं उसके आसपास के गांव में सभी किसान भाइयों ने अपने अपने खेतों में सोयाबीन की बोनी पूरी कर ली।

सोयाबीन के बीज का इंतजाम कैसे किया

चलिए अब हम आपको बता दें कि किस तरीके से इस बार किसान भाइयों ने सोयाबीन के बीज का इंतजाम किया है – लगभग 50 परसेंट किसान भाइयों ने सोयाबीन के बीज का इंतजाम नवंबर दिसंबर के महीने में ही कर लिया था क्योंकि उस समय सोयाबीन ₹5000 प्रति क्विंटल मिल रहा था ज्यादातर लोग सोयाबीन शाजापुर एरिया से लेकर आए या कुछ लोग मंदसौर नीमच से भी बीच लेकर आए हैं छोटे एवं बाकी किसान लोग जिन्होंने वक्त रहते बीज का इंतजाम नहीं किया था उन लोगों को अभी 8000 से 9000 के भाव में सोयाबीन खरीदना पड़ा।

सोयाबीन फसल की लागत के बारे में

चलिए एक बार सोयाबीन फसल की लागत के बारे में बात करते हैं सोयाबीन की फसल कैश क्रॉप के बाद के नाम से भी जानी जाती है मतलब किसान सोयाबीन सीधे बाजार में बेचने के लिए उगाता है सोयाबीन की फसल को बोने के बाद सबसे पहले खरपतवार के लिए चारा मार दवाई डालनी पड़ती है, उसके बाद सोयाबीन के पत्तों में इल्ली लग जाती है इसलिए इल्ली मार दवाई का छिड़काव वापस से किया जाता है। सोयाबीन की फसल 60 से 90 दिनों में आ जाती है यदि मौसम साफ रहता है तो मजदूर के माध्यम से या हार्वेस्टर से सोयाबीन को काट लिया जाता है एवं थ्रेसर से निकालकर सोयाबीन किसान भाई अपने घर ले आते हैं। सोयाबीन की पैदावार अलग-अलग प्रकार की जमीन में अलग-अलग होती है फिर भी यदि अच्छी फसल हुई हो तो 1 एकड़ में 3 से 4 क्विंटल पैदावार होती है जोकि लागत काटने के बाद किसान भाई को थोड़ा बहुत मुनाफा de jati he। जिन लोगों के पास पानी की व्यवस्था नहीं रहती है या जमीन असिंचित है वहां पर सोयाबीन ही मेन फसल है पिछले साल सोयाबीन नहीं हुई थी इसलिए इस साल ज्यादातर किसान भाई सोयाबीन की फसल को लेकर बहुत एतिहाद बरत रहे हैं।

सोयाबीन की फसल के ऊपर बढ़ती प्रकृति की मार

खेती का धंधा ज्यादातर प्रकृति के ऊपर पूरा निर्भर है बुवाई के टाइम से लेकर कटाई तक किसी भी वक्त ज्यादा बारिश खरपतवार इल्लियो के प्रकोप इत्यादि से पूरी फसल चौपट हो जाने का खतरा बना रहता है, पिछले साल सोयाबीन की फसल बहुत अच्छी थी सभी लोगों ने बहुत मेहनत की थी लेकिन फसल आने के 1 महीने पहले अचानक से हुई बारिश से सारे सोयाबीन बांझ हो गए, इस कारण सोयाबीन की फसल नहीं हो पाई।

हम सभी लोगों को खेती के धंधे के प्रति अच्छा भाव रखना चाहिए एवं ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए कि देश के अन्नदाता को प्रकृति की मार ना झेलना पड़े।

सरकार की मुआवजा राशि से किसान को राहत

सोयाबीन की फसल ना होने के कारण सरकार ने सभी किसान भाइयों को उचित मुआवजा राशि देकर काफी सहयोग दिया हालांकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत अभी भी फसल का नुकसान की भरपाई नहीं हो पाई है किसान भाइयों को इंतजार रहेगा कि जल्द से जल्द पिछले साल का फसल बीमा किसान भाइयों को मिले।

ग्राम भंवरा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया।

आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष में ग्राम भौंरा तहसील आष्टा जिला सीहोर, मैं सुबह-सुबह योगाभ्यास का आयोजन किया गया। गांव के युवा लोग एवं बड़े बुजुर्ग लोग सभी ने मिलकर योग किया।गांव के वरिष्ठ पंडित जी एवं शिक्षक श्री मनोहर लाल शर्मा जी ने योग के इतिहास के बारे में बताया एवं योग से कैसे शरीर और दिमाग दोनों को स्वस्थ रखा जा सकता है इस बारे में डिटेल में बताया, श्री शर्मा जी ने बहुत सारे योगा जैसे आलोम विलोम ब्रह्मास्त्र प्राणायाम सूर्य नमस्कार इन सभी के बारे में डिटेल में समझाया। वही गांव के युवा लोग जो कि पिछले 2 महीने से सुबह निरंतर योगा करते थे उनकी टीम ने भी पार्टिसिपेट किया इसमें मुख्य रूप से शिवचरण संतोष एवं बालमुकुंद जी ने सभी लोगों को सूर्य नमस्कार प्राणायाम का अभ्यास करवाया। आप सभी को बता दें कि हमारे गांव से श्री जितेंद्र परमार देवी अहिल्याबाई यूनिवर्सिटी इंदौर में योगा टीचर हैं उन्होंने लॉक डाउन के समय पर गांव के युवा लोगों का मार्गदर्शन किया था एवं योग के लिए प्रेरित किया था। योगा दिवस के उपलक्ष में ग्रामीण मंडल अध्यक्ष श्री सुनील परमार जी , गांव के सरपंच श्री हरिकुंवर जी ने सभी लोगों का दिल से धन्यवाद दिया एवं सभी को प्रेरित किया की योगा से शरीर और दिमाग दोनों स्वस्थ रह सकते हैं अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष में हम सभी लोगों को प्रण लेना चाहिए जब भी अपने व्यस्त शेड्यूल से टाइम मिले तब योगा जरूर करेंl

मंदिर के चढ़ावे में आने वाले फूलो के इस्तेमाल से निकाला अनूठा तरीका, फूलो से बना रहे अगरबत्ती और धूपबत्ती, स्टार्टअप से करोड़ों की कमाई ।

सबसे पहले जानते हैं कैसे आया फूलों से अगरबत्ती बनाने का विचार – मकर सक्रांति का दिन था, सउस दिन अंकित अग्रवाल अपने एक चेक रिपब्लिक दोस्त के साथ गंगा नदी के किनारे बैठे थे, बैठे-बैठे दोनों वहां का दृश्य देख रहे थे। मकर सक्रांति का दिन था तो सैकड़ों लोग नदी में स्नान कर रहे थे, विदेशी दोस्त ने देखा कि लोग गंगा नदी के पानी में नहा रहे हैं जो की बहुत ही मटमेला हो रहा है तो परेशान होकर पूछा लोग इतने गंदे पानी में क्यों नहा रहे हैं इसे साफ क्यों नहीं करते तो अंकित सरकार और सिस्टम पर आरोप लगाते हुए टालने की कोशिश करने लगा, विदेशी दोस्त ने कहा तुम खुद कुछ क्यों नहीं करते। तभी चढ़ावे के फूलों से भरा एक टेंपो आकर रुका और अपना सारा कचरा गंगा जी में उड़ेल दिया, उसी समय अंकित के दिमाग में फूल स्टार्टअप का विचार आया।

चढ़ावे के फूलों को कचरे में जाने से रोका – अंकित अग्रवाल ने चढ़ावे के फूलों को कचरे में जाने से रोका और साथ ही गंगा का पानी भी खराब होने से बचाया। फूलों को इकट्ठा करके उनकी प्रोसेसिंग करके अगरबत्ती, धूपबत्ती और फ्लेदर (फूलों से बना लेदर) बनाते हैं। जिससे करोड़ों की कमाई तो होती ही है साथ ही सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है फुल स्टार्टअप के अंदर अंकित बताते हैं कि हम लोग रोजाना लगभग साढ़े तीन टन फूल कानपुर के मंदिरों और तिरुपति से उठाते हैं। इससे अगरबत्ती – धूपबत्ती बनाते हैं और उन्होंने ढाई साल की रिसर्च के बाद एक चमड़े का विकास किया है जो फूल से तैयार होता है।

IIT, IIM और अन्य संस्थानों की प्रतियोगिताओं में जाकर 20 लाख रुपए किए इकट्ठा – फुल का आईडिया आने के बाद अंकित ने रिसर्च करना शुरू किया। उन्हे phool से क्या – क्या बनाया जा सकता है इसकी कोई जानकारी नहीं थी। लगभग 2 महीने बाद होने समझ आया कि मंदिर में चढ़ाएं गए फूलों का कोई समाधान नहीं है बहुत कम लोग हैं जो इससे खाद वगैरह बनाते हैं लेकिन उससे कुछ खास कमाई नहीं होती।उन्होंने 2 किलो फूल और ₹72000 से शुरुआत की और अपनी आइडिया लेकर IIT,IIM और संस्थानों की प्रतियोगिताओं में जाने लगे। इन सब के जरिए उन्होंने 20 लाख रुपए इकठ्ठा कर लिए । अब उन्होने 1 साल बाद नौकरी छोड़कर पूरी तरह से स्टार्टअप में लग गए।

इसके बाद अंकित ने अपने दोस्त अपूर्व को स्टार्टअप मे अपने साथ जुड़ने के लिए राजी किया। अपूर्व उस समय बेंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग की नौकरी करते थे। अंकित कहते हैं कि, phool का आईडिया भले ही उनका था लेकीन इसे ब्रांड बनाने में अपूर्व का बहुत बड़ा योगदान है।

लोगों ने फूल देने से किया इनकार :- अब सबसे बडी समस्या यह थी कि लोग फूल देने के लिए तैयार नहीं थे वे फूल पानी में फेंकना चाहते थे लेकिन अंकित ने लोगों को बहुत समझाया और बताया कि हम ‘तेरा तुझको अर्पण’ कथा को आगे बढ़ा रहे हैं। यानी हम मंदिर के साथ के फूलों से अंगूठी और धूपबत्ती बना रहे हैं और साथ ही अगर फूल हमे देंगे तो गंगा नदी के पानी में ज्यादा कचरा नहीं होगा, तब जाकर लोग फूल देने के लिए तैयार हुए क्योंकि वह फूल किसी ना किसी तरह से भगवान को ही अर्पित होनी थी और लोगों की आस्था के साथ भी कोई खिलवाड़ नहीं होगा।

चढ़ावे के phool

कैसे बनाते हैं अगरबत्ती और धूपबत्ती पूरी प्रोसेस :- इस प्रोसेस के बारे में अपूर्व बताते हैं कि पहले तो हम मंदिरों में जाकर फूल इकट्ठा करके अपनी गाड़ियों से फैक्ट्री लाते हैं फिर उन फूलो से नमी को हटाया जाता हैं और उन्हें सुखाया जाता हैं नमी हटाने के बाद फूल के बीच का भाग और पत्तियां अलग – अलग कर लेते हैं क्योंकि दोनो का इस्तेमाल अलग – अलग होता है। फिर इसे मशीन की सहायता से पेस्टीसाइड वगैरा को अलग करते हैं। इन प्रक्रियाओं के बाद यह एक पाउडर बन जाता हैं । अब इस पाउडर को आटे की तरह गूंथ लिया जाता है और हाथों से अगरबत्ती या धूपबत्ती बनाई जाती हैं। इसके बाद प्राकृतिक खुशबू में डुबोकर पैकिंग कर दी जाती हैं। यही पूरी प्रोसेस जिससे की अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाई जाती हैं।

फूल के बीच का भाग और पत्तियों को अलग करते हुए

लॉकडाउन की वजह से आई कठिनाई :- phool से शुरुवात में सोशल अल्फा, DRK फाउंडेशन, आईआईटी कानपूर और कुछ अन्य संस्थाओं से 3.38 करोड़ रूपए के फंड जुटाए। इससे उनका काम ट्रैक पर आ गाया। कुछ समय बाद आया कोरोना का दौर। अपूर्व ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से कई परेशानियां आई ढाई महीने में कंपनी के पास कोई आमदनी नहीं थीं लेकिन खर्च वैसा का वैसा ही था। मैनेगमेंट टीम ने ढाई महीने तक कोइ सैलेरी नहीं ली। उनके पास सिर्फ 4 महीने कम्पनी चलाने के पैसे शेष थे।

उसके बाद अगस्त 2020 में phool का IAN फंड (स्टार्टअप को फंड देने वाली संस्था ) और सैन फ्रांसिस्को को ड्रैपर रिचर्ड्स कपलान फाउंडेशन ने मिलकर 10.40 करोड़ रुपए की फंडिंग दी है । कम्पनी का कहना हैं कि रूटीन खर्च के लिए वो अपने प्रोडक्ट से कमाई कर लेते हैं। इस फंडिंग का इस्तेमाल सिर्फ रिसर्च एंड डवलपमेंट के काम में किया जाएगा।

इस कॉन्सेप्ट को दुनिया भर मे ले जाने का प्रयास:- इस स्टार्टअप को दुनिया भर में ले जानें का लक्ष्य है अपूर्व बताते है कि सितंबर 2018 में हमने पहला प्रोडक्ट हमारी वेबसाइट से बेचा था। उस समय के दिनों मे उनके पास सिर्फ दिन के दो या तीन ऑर्डर आते थे। लेकिन आज उन्हें रोजाना 1 हजार ऑर्डर मिलते हैं। इसके आगे का उनका प्रयास होगा कि वे इस कॉन्सेप्ट को ग्लोबल लेवल तक लेकर जा सके। अगरबत्ती का मार्केट छोटा है इसलिए वे लेदर पर पूरा फोकस कर रहे हैं। उन्हे पता था कि बूरा क्या होगा यही की हम सक्सेस नही होंगे लेकिन इसकी अच्छी बात यह हैं कि इसकी कोई सीमा नहीं है। यह एक बहुत ही अच्छा तरीका है इससे फूलों से अगरबत्ती और धूपबत्ती तो बनती ही है साथ ही गंगा नदी के पानी में कचरा नहीं होगा जिससे की लोगो को भी परेशानी नहीं होगी । वहा के पानी गंदगी कम होगी। यह एक बहुत ही अच्छी पहल हैं अंकित अग्रवाल और अपूर्व के द्वारा की गई।

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कोरोना की वजह से नौकरी में प्रोब्लम आने पर स्ट्रॉबेरी की खेती शूरू की, खेती से लाखो का मुनाफा –

यह कहानी है वाराणसी के रहने वाले रमेश मिश्रा की। रमेश मिश्रा बनारस के पास ही एक गांव के निवासी हैं। BHU se ग्रेजुएट है और बास्केटबाल में इंटर युनिवर्सिटी लेवल तक खेल चुके है। वे एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे और 10 साल से ज्यादा का टीचिंग का ज्यादा अनुभव है सब सामान्य चल रहा था, लेकिन कोरोना की वजह से स्कूल की नौकरी में परेशानी आने लगी तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी। पर अब बड़ा सवाल यह था कि क्या किया जाए। रोजाना घंटों इंटरनेट पर सर्च करने के बाद भी कुछ काम नहीं मिल रहा था ऐसे में कुछ लोगों ने स्टोबेरी की खेती करने का सुझाव दिया।

रमेश के फ्रेंड मदन मोहन तिवारी का रेलवे में सप्लाई का काम था लेकिन कोरोना के कारण वह भी बंद हो गया था। फिर रमेश ने अपने फ्रेंड के सामने स्ट्रौबरी की खेती का प्रस्ताव रखा तो वह भी तैयार हो गया दोनों ने मिलकर स्ट्रौबरी की खेती का काम स्टार्ट किया।

स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की – स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त करने में शुरुआत में कठिनाई आई। आस पास कोई स्ट्रॉबरी के बारे में नहीं जानते थे बाद में इंटरनेट के द्वारा पता चला कि पुणे में स्ट्रॉबेरी की खेती होती है। वह स्ट्रौबरी के बारे में कई लोग जानते हैं फिर रमेश ने पुणे जाने का फैसला किया और वहीं कई हफ्ते रुककर स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। स्ट्रौबरी की खेती कैसे करते हैं? इसकी बारीकियों को समझा पौधों के रखरखाव, टपक की विधि से सिचाई जैसी कई विधियों को सीखा साथ ही इस बात का अनुभव भी हुआ कि इस खेती के लिए शुरुआत में कितनी जमीन चाहिए और इसमें कितना पैसा लगेगा।

पुणे से 15000 पौधे मंगवाए और स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की – खेती की शुरुआत करने में कुछ मुश्किलें आई। इसके लिए 2 एकड़ जमीन चाहिए थी, जो कि रमेश के पास नहीं थी फिर रमेश ने मदन को बताया तो मदन ने 3 एकड़ जमीन की व्यवस्था की जिसमें से 2 एकड़ में स्ट्रॉबेरी और 1 एकड़ में सब्जियां भी लगाई। खेती करने के लिए पहले जमीन और पानी की जांच करवाई । फिर पुणे से 15000 पौधे मंगवाए जो कि ₹15 का एक पौधा था। इसके अलावा दोनों ने स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर – डीपइरीगेशन के लिए सेटअप आदि की भी व्यवस्था की फिर दोनों ने ऑर्गेनिक तरीके से खेती शुरू की और आज दोनों मुनाफे में है ।

खेती करते समय ध्यान रखने की जरूरत – रमेश बताते हैं कि स्ट्रॉबेरी की खेती बहुत देखभाल की मांग करती है। इसमें हर छोटी- छोटी बात का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे स्ट्रॉबेरी के पौधों की देखभाल बच्चे की तरह करनी पड़ती है, साथ ही कड़ी मेहनत भी करनी पड़ती है रमेश बताते हैं कि हम दोनों सुबह – सुबह ही जल्दी उठकर खेतों पर चले जाते हैं और हर तरफ घूम कर हर पौधे को चेक करते हैं कि कोई पौधा मुरझा तो नहीं रहा, पौधे पर कहीं से भी मिट्टी जमा नहीं होना चाहिए, दिन भर में कई बार मिट्टी को साफ करना पड़ता है यह काम वह दोनों नहीं संभाल सकते थे इसलिए उन्होंने गांव की 7 महिला को काम पर रखा चिड़ियों और कीड़ों से बचाने के लिए ऑडियो टेप की रील को पौधों से 5 से 7 फीट ऊपर लटकाया जाता है ताकि यह सुरक्षित रहें। ऐसी हर छोटी-बड़ी बातों को ध्यान में रखकर स्ट्रॉबरी की खेती की जा सकती है।

पौधो का ध्यान रखने के लिए गांव से कुछ महिलाओं को काम पर रखा।

कैसे बेचते हैं स्ट्रॉबेरी – रमेश बताते है की पैदावार बेचने के लिए उन्होंने सन 2020 में दिल्ली माल भेजने के लिए बात की थी, लेकिन बाद में लोकल मार्केट से ही डिमांड आने लगी तो दोनों ने लोकल मार्केट में ही सप्लाई करने का निर्णय लिया और बनारस के और आसपास के क्षेत्र में स्ट्रॉबेरी के सप्लाई करने लगे। लोकल मार्केट में भी उन्हें अच्छा फायदा होता है लोकल मार्केट और आसपास के क्षेत्र में भी ₹300 प्रति किलो के हिसाब से स्ट्रौबरी की सप्लाई करते हैं। हर एक पौधे से 500 से 700 ग्राम तक स्ट्रौबरी की पैदावार होती है।

स्ट्रॉबेरी की खेती कैसे करें – रमेश और मदन दोनों इस खेती के बारे में जानकारी देते हुए बताते हैं कि इस स्ट्रॉबेरी खेती के लिए बलुई और दोमट मिट्टी अच्छी होती है। अगस्त – सितंबर के महीने में इसके पौधे लगाए जाते हैं। इसके लिए तापमान 30 डिग्री से ज्यादा नहीं होना चाहिए, अगर तापमान अधिक होता है तो फसल को नुकसान होता है इसलिए कम तापमान में ही यह खेती करनी चाहिए। हालांकि ज्यादा तापमान वाली जगह पर भी लोग इसकी खेती करने लगे स्ट्रॉबेरी की खेती करने में मेहनत और देखभाल बहुत जरूरी है इसलिए इसे ज्यादा जमीन पर नहीं करना चाहिए अगर ज्यादा जमीन पर खेती करेंगे तो देखभाल की कमी होने के कारण नुकसान का खतरा रहता है। बड़े पैमाने पर खेती करना हो तो पर्याप्त संसाधन की जरूरत है अगर पर्याप्त संसाधन हो तो स्ट्रौबरी की खेती ज्यादा जमीन पर की जा सकती है।

शुरुआत में कुछ कठिनाइयां आई लेकिन अब यह खेती लाखों रुपए का मुनाफा दे रही हैं। स्ट्रॉबेरी की फूड और कोमेस्टिक इंडस्ट्री में स्ट्रॉबेरी की काफी डिमांड है । वह दोनों बताते हैं कि लॉकडाउन की सबसे बड़ी सिख यही है कि नौकरी से किसी को भी कभी भी निकाला जा सकता है इसलिए कुछ अपना स्वयं का काम होना चाहिए।

अमेरिका से आई गोल्फ खिलाड़ी जिनकी है गायों की हाईटेक गौशाला और साथ ही कर रही है जैविक खेती –

यहां दिल्ली से ग्रेटर नोएडा एक फार्म है जिसका नाम है सोनी पाल में इसकी विशेषता यह है कि यहां देसी नस्ल गाय जैसे गीर साहिवाल थारपरकर जैसी गाय रखी गई है

वैष्णवी सिन्हा इस गौशाला की संचालक है, जो कि पिछले 20 सालों से गोल्फ की प्लेयर रही हैं। इन्होने देश में ही नहीं विदेशों में भी गोल्फ खेला है गोल्फ गेंद क्लब से खेले जाने वाला एक व्यक्तिगत खेल है जिसमें खिलाड़ी तरह-तरह के क्लाबो का प्रयोग करते हुए गोल्फ के मैदान में दूरी पर स्थित एक छेद में गेंद को डालने का प्रयत्न करते हैं।

फार्म का नाम शून्य कैसे पड़ा – इस फार्म का नाम शून्य इसलिए पड़ा क्योंकि वहां पर किसी प्रकार का केमिकल और रसायन इंपयोरिट का उपयोग नहीं करते लोगों को शुद्ध और बिना मिलावट की सामग्री उपलब्ध कराते। जिससे कि लोगों को भी अच्छी गुणवत्ता का दूध प्राप्त करने में परेशानी नहीं होती। यही कारण है कि फर्म का नाम शून्य फार्म रखा।

1960 में देसी गायों से थोड़ा दूर हुए जब व्हाइट रिवोल्यूशन आई। क्वालिटी के लिए देसी गायों से दूर है। जब लोगों ने कहा कि जर्सी गाय एचएफ गाय रखो और क्वांटिटी बढ़ाओ पर क्वांटिटी से कुछ नहीं हो सकता क्वालिटी भी जरूरी है, लाइफ ऑफ क्वालिटी खत्म हो गई इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना देसी गायों का फॉर्म खोला जाए और लोगों तक क्वालिटी का दूध पहुंचाया जाए।

गायों के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध – इस फॉर्म में गायों के लिए हर तरह की आरामदायक सुविधा रखी गई है। अधिकतर फॉर्म में गायों के लिए जगह कम होती है या गायों को बांधकर रखा जाता है, लेकिन इस फॉर्म में गायों को बांधकर नहीं रखा जाता तथा उन्हें अपने तरीके से जगह पर रहने के लिए सुविधा है। उनका पूरा प्रयास यही है कि गायों को नेचुरल वातावरण दे। जैसे की गायों के लिए पेड़ों की छाया तथा मिट्टी उपलब्ध है, जहां उन्हें बैठना हो वहां बैठ सकती है धूप में या छांव में कहीं भी बैठ सकती है। जब उन्हें खाना हो तब वह खा सकती है हमेशा हरा चारा उपलब्ध रहता है गायों के बगल में हमेशा उनके बछड़े रहते हैं, हमेशा पानी भी उपलब्ध रहता है, जब भी पानी खत्म होता है तो अपनेआप वाल सिस्टम के द्वारा आ जाता है पानी ठंडा रहता है साथ ही चुने की लेप भी हुई होती है, जिससे कि पानी में कैल्शियम की मात्रा भी बनी रहती है और पानी में कीटाणु भी नही होते।

यहां गयो के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध है सफेद रंग में थारपारकर गाय है ।

गायों के लिए ग्रूमिंग ब्रश भी उपलब्ध है, जिससे कि जब गायों को खुजली होती है तो वह उस ब्रश के पास जाती है जिससे कि वह अपने आप घूमने लगता है यह गायों के लिए बहुत ही अच्छी सुविधाएं हैं ।

गायों को बीमारी होने पर क्या करते हैं – जब भी गायों को बीमारी है कुछ भी होता है तो ज्यादातर देसी इलाज करते हैं जैसे हल्दी एंटीसेप्टिक नेचुरल तरीके से नीम गिलोय भी खिलाते हैं लिहाजा ज्यादा से ज्यादा उपयोग देसी इलाज का ही किया जाता है अगर ज्यादा इमरजेंसी होती है तो निश्चित ही एलोपैथिक पर आना पड़ता है तो भी फिर वे उस गाय का दूध अलग रखते हैं।

खाने के लिए गायों को हर दिन हरा चारा और साथ में भूसा भी दिया जाता है। प्रत्येक गाय 20 – 20 kg हरा चारा खाती है दाना में चौकर, चूरी, जौ, खल, चना और पौष्टिक चीजें दी जाती है गायों के खान-पान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।

गायों की पहचान कैसे करें – गिर गायों की पहचान काफी आसान होती है इनके सिंह सीधे नीचे जाते हैं बाकी गायों में सिंग ऊपर जाते हैं। उनके कान नीचे जाकर मिलते हैं, गिर गायों के कान पर सिक्का भी रख सकते हैं। इनका सिर (माथा) उल्टा तवे के शेप का होता है। तथा गलकंबल ढीला होता है जिससे गर्मी बर्दाश्त कर सकते हैं गीर गाय काली, कबरी (सफेद धब्बे होते हैं), रेड और शुद्ध सफेद रंग की भी होती है।

कुछ ऐसी दिखती हैं गिर गाय ।

कैसे आया फॉर्म का आईडिया – वैष्णवी सिन्हा बताती है कि उन्होंने अपने नाना को देखा वह 81 साल के हैं वह उनके साथ घूमते हैं सारी एक्टिविटी करते हैं फुल ऑफ एनर्जी में रहते हैं जब वह अपने नाना से पूछती हैं कि इतना एनर्जेटिक रहने का क्या राज है तो वे बताते हैं, कि उन्होंने बचपन में जो खाया – पिया उसकी वजह से वह एनर्जेटिक रहते हैं। जो पहले मिलता था और जो अब मार्केट में मिलता है उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। यही वैष्णवी जी को बड़ा चुभता था। फिर सोचती थी कि फिर आगे उनकी जनरेशन या ओल्डेज कैसी रहेगी। आजकल की जनरेशन जो खा रही है उनका फ्यूचर कैसा होगा। यह सोचकर उन्होंने फॉर्म करने का सोचा और इसलिए वे इस फील्ड में आई।

फॉर्म खोलते वक्त आई कठिनाइयां – नाना – नानी को फॉर्म के बारे में पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुए, उनको ऐसा लगता था कि यह उन्नति के खिलाफ है क्योंकि उन्हें लगता था कि वह गांव से पढ़ लिखकर शहर आए बच्चों को पढ़ाया और पोते पोतियो को पढ़ाया और वह फिर से गांव में ही जा रहे हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। लेकिन जब वैष्णवी सिंह के फॉर्म में इतना कुछ बदलाव हुआ और वह सक्सेस हुई तो उन्हें अच्छा लगा और अब वह फॉर्म आते हैं तो कहते हैं, यही सही तरीका है यह बहुत जरूरी भी है यह बहुत सी ऐसी परेशानियों से भरा रहा क्योंकि अब अच्छी गाय ढूंढने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। साहिवाल गाय ढूंढने के लिए उन्हें ढाई साल लगे और फिर गिर गाय भी ढूंढने में भी कठिनाई हुई ।

वैष्णवी सिन्हा बताती है कि अगर देसी गाय चाहिए तो पॉपुलर या फेमस जगह पर मत जाइएगा। जब गाय लेने जाते हैं तो बहुत से व्यापारी धोखा दे देते हैं तो उसमें उन्होंने बताया अब वे जागरूक हो गई है। आपको 10 से 15 दिन लगेंगे किसानों के एक-एक घर जाइए और पता कीजिए कि उनके पास देसी गाय मिलेगी या नहीं अगर उनके पास गाय नहीं होगी तो किसी और के बारे में बताएंगे कि उनके पास अच्छी क्वालिटी की गाय मिल जाएगी और वे यह भी बताती है कि बल्क से गाय नहीं लेनी चाहिए।

पैकेट और गाय के दूध में अंतर – वैष्णवी जी ने बताया कि गाय के दूध मैं एक अलग ही टेस्ट होता है जो कि पैकेट के दूध में नहीं होता। गाय के दूध का टेस्ट करने पर मीठा लगता है, वैष्णवी जी कहती है कि जब मैं दूध टेस्ट करती हूं तो मुझे लगता है जैसे दूध में चीनी मिली है जबकि सामने ही दूध निकाला जाता है पैकेट के दूध में और गाय के दूध में सबसे बड़ा डिफरेंस स्वाद का होता है। देसी गायों के दूध में फैट ज्यादा होता है दूध क्रीमी होता है जब कि विदेशी गायों के दूध में नहीं होता। ग्राहक की बहुत डिमांड होती है एक बार ट्राई करने के बाद ग्राहक उनके पास ही आते हैं, काफी पेशेंट्स भी आते हैं कि उन्हें देसी गाय का दूध चाहिए कुछ तो ऐसे भी ग्राहक आते हैं कि उन्हें केवल काली कपिला गाय का दूध चाहिए।

गाय के गोबर और गोमूत्र से भी बनाए प्रोडक्ट – गोबर और गोमूत्र को वेस्ट में नहीं जाने देते, उससे जीवामृत, ब्रह्मास्त्र, निमास्त्र, बीजामृत बनाते हैं जैसे कि गोअर्क इनकी भी काफी डिमांड होती है लेकिन अभी वह सेल नहीं करते।

वैष्णवी सिन्हा का लोगों के लिए संदेश – वे बताती हैं कि अगर आप इस फील्ड में आना चाहते हैं तो धीरे-धीरे शुरुआत करें। पहली बार में बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट ना करें और ऑर्गेनिक फार्मिंग से जरूर जुड़े केवल डेरी ना करें। इससे फार्मिंग में गाय के अपशिष्ट से काफी फायदा होगा। धीरे-धीरे करके गाय खरीदे, सोच समझकर गाय लेना चाहिए ना कि जल्दबाजी करें। दूध को बायप्रोडक्ट ट्रीट करें ना कि मैन प्रोडक्ट ट्रीट करें। वह बताती हैं कि इस फॉर्म में फायदा तो बहुत है, लेकिन पूरे मन से काम करना पड़ेगा मेहनत करनी पड़ेगी तभी फायदा होगा इस काम में बहुत ज्यादा स्कोप है। लोगों को यह भी कहना चाहती हैं कि A1 मिल्क पर ही डिपेंड ना रहे A2 मिल्क को भी एक बार ट्राई करें A2 मिल्क हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है।

डेरी के साथ (जैविक खेती) ऑर्गेनिक फार्मिंग की भी शुरुआत – जैविक खेती हमारे यहां बहुत पुरानी पद्धति है। वैष्णवी सिन्हा जी को खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी उनका खेती का बैकग्राउंड नहीं था। लेकिन वे बहुत सारे फॉर्म साइट्स पर गई और जानकारी ली, 2 से 3 महीने में उन्होंने गायों और फार्मिंग के बारे में जानकारी प्राप्त की। गाय के अपशिष्ट से बायोमेट्रिक द्वारा जीवामृत, नीमस्त्र, ब्रह्मास्त्र, बीजामृतबनाया जाता है जिससे खेती होती है। उनके पास 40 से 50 तरीके के फल और पेड़ है, जिसमें औषधि वाले पौधे तथा सब्जियां भी है बहुत कुछ है वहां। कस्टमर जो होते हैं, जो फॉर्म के फल या सब्जी खाते हैं वह तो वह कहते हैं कि “यहां के फल वा सब्जी खाने से तो गांव की याद आ गई या बहुत सालों के बाद यह स्वाद मिला” यह बहुत अच्छा कमेंट होता है। ग्राहकों को केमिकल खेती के बारे में वह कहती हैं कि हमें यह नहीं करना चाहिए, इससे प्राप्त होने वाले फल सब्जी देखने में अच्छे लगते हैं लेकिन हेल्थ के लिए ठीक नहीं होते। यहां पर केला, पपीता और साथ ही 8 तरह के आम भी है जैसे लंगड़ा, दशहरी, जोश, मल्लिका, हुस्नारा, वह चाहती है कि किसान वहां आए और वहां उन्हें अच्छी नस्ल के पौधे ले सके।

यह एक बहुत ही अच्छी पहल है । युवाओं के द्वारा खेती करने के तरीके में बदलाव करना तथा लोगों को जागरूक करना एक बहुत ही अच्छी सोच को प्रेरित करता है और इससे लोगों का भी मनोबल बढ़ेगा । जहां लोग खेती को छोड़कर शहरों में जा रहे हैं वहां वैष्णवी सिन्हा जैसे युवा को देखकर लोग भी खेती के लिए प्रेरित होंगे।इससे हमें या लोगों को देसी और शुद्ध सब्जी फल दूध और बहुत सारे लाभकारी प्रोडक्ट्स प्राप्त हो सकेंगे।

आधुनिक तरीके से जैविक खेती ।

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आपदाओं में काम आने वाले ड्रोन बनाने के लिए स्टार्टअप शूरू किया, जिसके लिए प्लेसमेंट और US के कॉलेज की सीट भी छोड़ी –

आइऐ जानते हैं चिराग के बारे में – मध्य प्रदेश के भोपाल में के रहने वाले हैं चिराग जैन आईआईटी ग्रैजुएट है उनकी उम्र 26 साल है उनका इंजीनियरिंग में भी स्पेशल इंटरेस्ट एयरोस्पेस में था हवा में उड़ने वाले सेटेलाइट और अंतरिक्ष में भेजे जाने वाले रॉकेट में उनका हमेशा इंटरेस्ट रहा। कॉलेज के साथ ही उन्होंने ड्रोन का काम शुरू किया उन्हें एयरोस्पेस में ही रिसर्च करनी थी क्योंकि यह बहुत ही क्रिटिकल टेक्नोलॉजी होती है इसका एक मुख्य कारण यह भी रहा कि यह देश के विकास में भी अहम रोल निभाती है।

आईआईटी ग्रैजुएट चिराग जैन

बी.टेक समय ही जब केंपस प्लेसमेंट हुआ तो वह उसमें भी गए (बैठे) दो उन कंपनियों में उनका सिलेक्शन भी हो गया लेकिन उन्होंने ₹10 लाख के सालाना पैकेज वाली नौकरी के ऑफर को छोड़ दिया।

नौकरी छोड़ने का कारण – चिराग बताते हैं कि उन्हें सिर्फ एक डिग्री लेकर किसी कंपनी में जॉब करने में इंटरेस्ट नहीं था वह यूएस (US) जाकर इसी फील्ड में मास्टर और पीएचडी करना चाहते थे और साथ ही इसके बारे में और भी जानकारी लेना चाहते थे, फिर वापस भारत आ कर अपना खुद का बिजनेस करने का प्लान था लेकिन इन सबके बीच उन्होंने सीखने के उद्देश्य से आईआईटी (IIT) कानपुर के हेलीकॉप्टर लैब ज्वाइन की इस दौरान भी आईआईटी कानपुर के कुछ प्रोफेसर से मिले और बातचीत की तभी उन्हें लगा कि वह प्रोफेसर भी चाहते हैं कि इंडिया में अपना एयरोस्पेस कंपनी स्टैबलिश्ड करें।

यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड की इंजीनियरिंग की सीट छोड़ी और स्टार्टअप की शुरुआत की

चिराग बताते हैं कि उन्हें यूएसए ( USA) की यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड से मास्टर में सिलेक्शन हो गया , लेकिन उन्होंने सोचा कि बाहर जाने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि बाहर जाकर पढ़ाई करते तो जो काम वह अभी स्टार्ट करते है उसी काम को वह 6 साल बाद शुरू करते इससे उन्होंने सोचा बाहर ना जाकर अभी काम शुरू करू। लिहाजा उन्होंने यूनिवर्सिटी आफ मैरीलैंड इंजीनियरिंग की सीट छोड़ दी और 2018 में आईआईटी कानपुर में ही मास्टर्स में एडमिशन ले लिया और साथ ही अपनी कॉलेज के दो एसोसिएट प्रोफेसर और एक और साथी के साथ मिलकर EndureAir स्टार्टअप की शुरुआत की। फिर साल 2019 में उनके स्टार्टअप को आईआईटी कानपुर के एंक्यूबेशन सेंटर में भी जगह मिल गई ।

AndureAir में उनके साथ तीन ओर को – फाउंडर है,इसमें डॉ अभिषेक और डॉक्टर मंगल कोठारी दोनों आईआईटी कानपुर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं जबकि रामा कृष्णा आईआईटी कानपुर से पोस्ट ग्रेजुएट है ।

आपदाओं में काम आने वाले तथा देश के हित में काम आने वाले ड्रोन – यह ड्रोन आपदाओं के समय काम आते हैं एक तरह से बोला जाए तो देश के सैनिकों के लिए बहुत उपयोगी है। उत्तराखंड के चमोली में आई आपदा के दौरान भी बचाव के लिए ड्रोन की मदद ली गई डीआरडीओ(DRDO) जैन टेक्नोलॉजी (zen Technologies) Delhivery के जैसी नामी कंपनियों के लिए ड्रोन बनाकर यह स्टार्टअप साल 2019 – 20 में एक करोड़ रुपए का रेवेन्यू जेनरेट कर चुका है। ग्लेशियर फटने के बाद आई आपदा में एनडीआरएफ (NDRF) के बचाव कार्य में एंडयोर एयर कि ड्रोन की मदद से ही सर्च ऑपरेशन किया गया। आपदा में सैकड़ों लोग सुरंग में फस गए थे, सुरंग के रास्ते संकरे होने के कारण एनडीआरएफ के जवानों को सुरंग के अंदर व पानी के नीचे के लोगों की जानकारी जुटाने में परेशानी हो रही थी, कितने लोग फंसे हुए हैं यह पता नहीं चल पा रहा था।

ऐसे में उन्हें प्रधानमंत्री विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद के अधीन अग्नि कार्यालय और एनडीआरएफ की ओर से बुलाया गया था। उसके बाद उनकी टीम कई ड्रोन के साथ उत्तराखंड पहुंची और सबसे पहले सुरंग में सबसे छोटा ड्रोन भेजा और लोकेशन के साथ फोटो कंट्रोल रूम में आती गई, इसकी मदद से एनडीआरएफ की टीम रेस्क्यू ऑपरेशन चलाती रही।

एक्सपो के दौरान हुआ परिचय – EndureAir के को -फाउंडर चिराग जैन कहते हैं कि इसी साल जनवरी में आपदा के दौरान नई टेक्नालॉजी के उपयोग को लेकर गाजियाबाद में एक एक्स्पो हुआ था, इसी दौरान उनके ड्रोन के बारे में एनडीआरएफ(NDRF) और अग्नि कार्यालय के सदस्य ने टेक्नोलॉजी देखी थी इसी कारण उन्हें उत्तराखंड त्रासदी के दौरान अप्रोच किया ।

गाजियाबाद में एक्सपो के दौरान हुआ परिचय ।

उनका कहना है कि स्टार्टअप हर तरह के ड्रोन तैयार कर रहे हैं जो सेना और आपदा में विशेष रुप से मददगार साबित होंगे यह ड्रोन 5 किलोग्राम तक का वजन उठाकर 100 किलोमीटर तक की दूरी तय कर सकता है मुश्किल हालातों में इस ड्रोन को परखने के लिए लद्दाख और पोखरण में भी इसका टेस्ट किया जा चुका है ।

अब तक कई क्वालिटी के ड्रोन तैयार कर चुके हैं- चिराग बताते हैं कि वे अब तक कई तरह के ड्रोन बना चुके हैं ऐसे ड्रोन तैयार कर चुके हैं जो 40 किलोमीटर तक दुर्गम पहाड़ियों या स्थानों पर 4 किलोग्राम वजन तक का सामान डिलीवर कर सकता है। उन्होंने दो प्रोडक्ट पर काम किया है पहला हेलीकॉप्टर ड्रोन है जो कि 4 किलोग्राम वजन लेकर 2 घंटे की उड़ान भर सकता है यह ड्रोन ऐसा है जिसे कंट्रोल करने की जरूरत नहीं बस लोकेशन फिट करिए, बटन दबाएं और वह अपना काम करके वापस आ जाएगा ।

इमरजेंसी डिलीवरी में काम आने वाला – यह दुर्गम क्षेत्र में राहत सामग्री पहुंचाने के लिए काम आता है इसके लिए रनवे की जरूरत नहीं होती है । यह 5 किलो तक वजन उठा सकता है, और काफी तेज उड़ता है। यह 120 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलता है यह ड्रोन केवल कस्टमर को सर्विस नहीं देता बल्कि कंपनी के एक वेयरहाउस से दूसरे वेयरहाउस तक इमरजेंसी डिलीवरी के काम आता है इतना ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन, ब्लड की इमरजेंसी डिलीवरी के लिए भी यह ड्रोन कारगर है।

EndureAir अभी तक 25 से ज्यादा ड्रोन बना चुका है, जबकि 8 ड्रोन कमर्शियल सेल कर चुके हैं इस स्टार्टअप में बड़ी बात यह है कि इसमें R&D और मैन्युफैक्चरिंग का काम भारत में ही होता है इतना ही नहीं इसको मानव रहित बनाने की कंट्रोल प्रणाली का भी अविष्कार भी EndureAir के फाउंडर्स ने किया है।

यह बहुत बड़े गर्व की बात है – केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी इस की तारीफ कर चुके हैं। यह भारत हमारे देश के लिए बहुत बड़ी बात है। चार लोगों की छोटी सी टीम से शुरू किया स्टार्टअप में अब 20 लोग दिन-रात काम करते हैं चिराग बताते हैं कि जल्द ही हमारे यहां बनाए गए ड्रोन सिर्फ भारत की जरूरत को ही नहीं बल्कि बाकी देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए भी एक्सपोर्ट किए जाएंगे।

वर्तमान में CRPF, BSF IAF और ATS समेत अन्य सुरक्षा बलों ने इस ड्रोन को अपनी सेना में जोड़ने की इच्छा जताई है यह बहुत ही प्रशंसनीय हैं

मल्टीनेशनल कंपनियों में रह चुकी सॉफ्टवेयर इंजीनियर जो अब गन्ने के वेस्ट प्रोडक्टस से बना रही है क्रॉकरी। हर महीने मिल रहे 200 से ज्यादा ऑर्डर ।

Success story of Vijay Lakshmi

आखिर कौन हैं सॉफ्टवेयर इंजीनिय – हम आपको बताते हैं कि ये सॉफ्टवेयर इंजीनियर जिनका नाम है विजयलक्ष्मी और वे 53 साल कि है। ये विशाखापट्टनम कि रहने वाली है और पैसे से सोफ्टवेयर इंजिनियर है 20 साल तक उन्होंने प्रथक प्रथक मल्टीनेशनल कंपनियों में काम किया। बीते हुए 2 साल से वे नौकरी छोड़कर गन्ने के वेस्ट से इकोफ्रेंडली क्रॉकरी प्रोडक्ट्स तैयार कर मार्केट में सप्लाई कर रही हैं क्रॉकरी प्रोडक्ट्स और खुद का स्टार्टअप चला रही है हर महीने 200 से भी ज्यादा ऑर्डर उन्हें मिल रहे हैं कई बड़ी – बड़ी होटलों में भी प्रोडक्ट्स जाते हैं इसे उन्हें बहुत फायदा होता है।

जॉब छोड़ने के बाद क्रॉकरी का आईडिया कैसे आया- विजय लक्ष्मी बताती है कि नौकरी के बाद ज्यादातर में प्लास्टिक वेस्ट के वैकल्पिक प्लान के बारे में सोचती रहती थी उससे रिलेटेड आइडिया के बारे में रिसर्च पेपर पढ़ती रहती थी तब उन्हें पता चला कि हमारे आसपास ऐसे बहुत से नेचुरल वेस्ट हैं जिन्हें प्रोसेस कर क्रॉकरी प्रोडक्ट्स बनाए जा सकते हैं और यह भी पता चला कि बहुत से लोग इस काम को करते हैं अभी उनकी संख्या में कमी है इन सब जानकारी के बाद उन्होंने तय किया कि वह भी नेचुरल वेस्ट से क्राकरी तैयार करेंगे भले ही छोटे लेवल से ही स्टार्ट क्यों ना हो।

कहां से ली जानकारी और कैसे किया स्टार्ट – विजयलक्ष्मी को इसकी कुछ अधिक जानकारी पहले से नहीं थी। ऐसे में उन्होंने 4 से 5 साल तक इस प्रोसेस को समझा और क्रॉकरी के बिजनेस को भी समझा। इससे जुड़े लोगों से भी इस बिजनेस के बारे में जानकारी ली जब उन्हें इसके बारे में अनुभव हुआ तो उन्होंने अपना खुद का काम शुरू करने का सोचा और दिसंबर 2018 में उन्होंने अपना स्टार्टअप लांच किया।

कैसे कि अपने प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग – स्टार्टिंग मैं अपने प्रोडक्ट्स बेचने में थोड़ी प्रॉब्लम आई शुरू में विजयलक्ष्मी ने अपने आसपास के लोगों को और रिश्तेदारों को इस क्रॉकरी के बारे में बताया और इसके उपयोग करने करने के लिए फायदेमंद जानकारी दी जिसे लोगों ने ट्रायल बेसिस पर उनके प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया अधिक से अधिक लोगों को विजयलक्ष्मी का काम पसंद आया और उन्होंने इस प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया और अधिक संख्या में खरीदा भी लेकिन इससे कुछ ज्यादा मार्केटिंग नहीं हुई जिससे उन्होंने कुछ और तरीका निकाला और सोशल मीडिया की मदद ली और अपने प्रोडक्ट का प्रचार (प्रमोशन) किया इससे उनके ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई।

अभी उनके पास 100 से ज्यादा रेगुलर कस्टमर्स है और तो और अब उनके पास कई बड़ी कंपनियों और होटलों के लिए भी प्रोडक्ट्स के ऑर्डर आते हैं और वे प्रोडक्ट तैयार करती है। शादियों और त्योहारों के सीजन में उनके पास प्रोडक्ट्स की डिमांड बढ़ जाती है साथ ही वह अलग-अलग एक्सपो में भी अपनी प्रोडक्ट्स का स्टाल लगाती है यहां से भी अच्छी खासी संख्या में लोग खरीदारी करते हैं।

लोकल उत्पादों से किया टाईअप- विजयलक्ष्मी उन लोगों से भी प्रोडक्ट लोकल लेवल पर खरीदती है जो ऐसे प्रोडक्ट तैयार करते हैं ऐसे कई लोग कल मैन्युफैक्चरर्स से उन्होंने टाइअप किया जो उनकी डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट तैयार करते हैं इससे उन्हें भी फायदा होता है और उन किसानों को भी जिनसे वे गन्ने का वेस्ट खरीदती है।

क्रॉकरी बनाने के फायदे – विजयलक्ष्मी बताती है कि प्रोडक्ट्स पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल सहनशील है जो कचरे में फेंके जाने पर 90 दिनों के भीतर गल जाते हैं। अगर कोई जानवर इसे खा ले तो भी उसके हेल्थ पर गलत असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यह प्रोडक्ट नुकसानदायक नहीं है वैसे भी खेत से निकलने वाली पराली से जानवरों के लिए चारा तैयार करते हैं, इसके साथ ही हम इसे माइक्रोवेव या फ्रिज में भी रख सकते हैं इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखा जा सकता है।विजयलक्ष्मी गन्ने के वेस्ट से बनी इकोफ्रेंडली कटोरी,कप, प्लेट, क्रॉकरी और पैकिंग बॉक्स जैसी चीजों का बिजनेस कर रही है।

किसान अधिकतर गन्ने के वेस्ट और भी अलग-अलग तरह के वेस्ट को या तो फेंक देते हैं या जला देते हैं जिसे प्रदूषण भी होता है इससे किसानों को भी कोई फायदा नहीं होता और क्रॉकरी बनाने से किसानों को भी फायदा होता है और प्रदूषण को भी राहत रहती है।

लोगों की डिमांड के मुताबिक प्रोडक्ट तैयार करती है- विजयलक्ष्मी अपने कस्टमर के आर्डर के अनुसार क्रॉकरी बनाती हैं कई ग्राहक अपनी जरूरतों के मुताबिक डिमांड करते हैं जैसे किसी को प्लेट राउंड चाहिए तो किसी को स्क्वायर तो किसी को अपने मुताबिक शेप चाहिए होता है उसी के अनुसार वह लोकल मैन्युफैक्चरर्स को आर्डर देती है फिर उनके पास क्रॉकरी बनकर आती है फिर उसे वे ग्राहक के पास भेजती है। लक्ष्मी अभी तक कई बड़े-बड़े इवेंट्स के लिए क्रॉकरी तेयार कर चुकी है।

कैंडिडेट्स कि डिमांड के मुताबिक़ तैयार क्रॉकरी

लॉकडाउन का प्रभाव – विजयलक्ष्मी के कारोबार में लोक डाउन की वजह से बुरा असर पड़ा या यूं कहे कि कारोबार में थोड़ी गिरावट आई। लॉकडाउन की वजह से करीब 1 साल तक सब कुछ बंद रहा लेकिन इससे उन्हें एक फायदा भी हुआ, वह यह है कि अब लोगों में जागरूकता बढ़ी लोगों को नेचुरल प्रोडक्ट्स के एडवांटेज के बारे में पता चला और लोग डिमांड करने लगे। विजयलक्ष्मी की कोशिश यह है कि वह स्वयं की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाएं। जब वह खुद मैन्युफैक्चरर होंगी तो प्रोडक्ट्स की कीमत भी कम होगी और इससे उन्हें भी बचत ज्यादा होगी, जिससे उन्हें फायदा होगा।

क्रॉकरी कैसे तैयार करते हैं गन्ने के व्यर्थ पदार्थों से क्रॉकरी बनाने के लिए गन्ने से निकलने वाले छिलके (झाले) तथा उसकी पत्तियों को धूप में सुखाया जाता है इसके बाद उसे टुकड़े करके पानी में घोल दिया जाता है जब पानी में अच्छी तरह घुल जाता है तब उसे अच्छी तरह मिला लिया जाता है, बाद में वह लुगदी का रूप ले लेता है फिर उसे अच्छी तरह से मशीन की मदद से मनपसंद या लोगों की डिमांड के मुताबिक आकार दे दिया जाता है, इस तरह क्रॉकरी तैयार हो जाती है।

पर्यावरण की सुरक्षा तथा पर्यावरण को बचाए रखने के लिए लोगों को इस तरह के इनोवेशन से जुड़ना चाहिए। भारत में ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा गन्ने का प्रोडक्शन होता है जैसे क्राकरी के लिए गन्ने का वेस्ट आसानी से मिल जाता है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, जैसे राज्यों में गन्ना भरपूर मात्रा में होता है हर साल से निकलने वाले हजारों टन वेस्ट या तो जला दिए जाते हैं या फेक दिए जाते हैं, इसी तरह धान की पराली भी बड़ी चुनौती है अगर लोग इस इनोवेशन से जुड़ते हैं तो इसका सही तरीके से वेस्ट मैनेजमेंट किया जा सकता है और कमाई के साथ – साथ पर्यावरण को भी बचाया जा सकता है। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्रों से इसके बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है।

मध्यप्रदेश के गुरु प्रसाद पंवार ने नौकरी छोड़कर खेती में हाथ आजमाया – महीने की लाखो में कमाई

Success story of Guru Prasad Panvar 

ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जिन्होंने अपनी सरकारी नौकरी को छोड़ कर कृषि में हाथ आजमाया गुरु प्रसाद पवार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के छोटे से गांव बीजकवाड़ा के रहने वाले हैं यह पढ़ाई में बचपन से ही तेज थे पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद पीटीआई (फिजिकल ट्रेनिंग इंस्ट्रक्टर ) किया और साल 2004 में शिक्षा कर्मी वर्ग 2 में नौकरी मिल गई तब उनकी सैलरी ₹5000 महीना थी उन्होंने 3 साल तक नौकरी की लेकिन बाद में उन्हें समझ आया कि इतने कम पैसों में परिवार का खर्चा नहीं निकल पाएगा तो उन्होंने नौकरी के साथ खेती में भी काम करना शुरू किया।

बैंक से लिया लोन और खेती स्टार्ट की

शुरुआत में उन्होंने अपनी 6 एकड़ पैतृक जमीन पर लहसुन की खेती की। इस खेती को करने के लिए अधिक पैसों की जरूरत थी जो कि उनके पास नहीं थे ऐसे में उन्होंने बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाया और डेढ़ लाख रुपए का लोन लिया अब उन्होंने ठीक तरीके से काम शुरू करना शुरू किया करीब साढे 4 महीने में लहसुन की फसल तैयार हुई और इसे बेचकर गुरु को ₹10 लाख का फायदा हुआ। https://wp.me/p9wTOX-3a

पहली बार उन्हें इतना बड़ा फायदा हुआ जिससे उनकी खेती में और रुचि बढ़ी और उन्होंने लहसुन में जो फायदा हुआ उससे 6 एकड़ खेत और भी खरीद लिया तब खेती का दाम 80 हजार से 1लाख रुपए एकड़ था, ऐसे ही वह हर साल थोड़ी-थोड़ी जमीन खरीदते रहे और उनके पास 50 एकड़ जमीन है साल 2007 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह खेती करने लगे आज उनके पास 50 एकड़ जमीन है जिससे उन्हें करीब 55 लाख रुपए की कमाई होती है।

पानी की कमी होने के बावजूद नए – नए तरीके अपनाकर की खेती –

ड्रिप इरिगेशन सिस्टम

गांव में पानी की कमी थी ऐसे में खेतों में पानी दिए बिना फसल तैयार करना मुमकिन नहीं था इस पानी की परेशानी से निजात पाने के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों से बात की और खेतों की सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया और ऐसे तरीके से खेती की जिससे कि 1 साल के अंदर रवि और खरीफ दोनों फसलों की अधिकतम पैदावार मिल सके। और उन्होंने रबी और खरीफ की फसलों के बीच भी ऐसी फसल उगाना शुरू करने की सूची जिससे भूमि की उर्वरक क्षमता कम ना हो और फसल अच्छी हो। कम पानी में सिंचाई करने के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक का सहारा लिया इससे उन्हें फायदा तो हुआ ही साथ में खेत में लेबर चार्ज की भी कमी आई।http://topsuccessstory.com/hindi/

फसलों के बारे में जानकारी दी

गुरु ने बताया कि पानी की परेशानी से निजात पाने के बाद खेती में 1 साल के अंदर तीन फसल तैयार करते थे यह सब नकदी फसलें होती है। इसमें वे बताते हैं कि शुरू में सितंबर से अक्टूबर में लहसुन लगाते थे जो कि फरवरी-मार्च में तैयार हो जाती थी इसके बाद गोभी लगाते थे जो कि मई से जून में तैयार हो जाती थी इसके बाद स्वीटकॉर्न लगा देते थे गोभी और स्वीट कॉर्न की फसल 60 से 65 दिन में तैयार हो जाती थी यह प्रक्रिया साल 2012 के बाद तक चलती रही।

खेती करने के तरीके में बदलाव करते हुए कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की

 कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के चलते गोभी की जगह आलू की खेती करने लगे जो कि दिसंबर तक तैयार हो जाती। इसके बाद जनवरी – फरवरी में खेतों में सब्जी लगाते हैं अभी 30 एकड़ में फूलगोभी लगी और 20 एकड़ में तरबूज – खरबूज लगे। बाकी हिस्से में गेहूं की खेती करते जो कि खुद के लिए होता है इसे वे बेचते नहीं है। जब अप्रैल-मई में खेत खाली हो जाता है तो उसमें स्वीट कॉर्न लगाते हैं जो कि महाराष्ट्र और जबलपुर जाता है इसके लिए व्यापारी खुद खेतों में आते हैं और कीमत तय करके जाते हैं और खुद ही माल ले जाते हैं।

 

Contract farming

पेप्सीको के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे

गुरु कहते हैं कि जो किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं करते उनसे हमारी स्थिति काफी बेहतर है इसमें यह किसान पर निर्भर करता है कि वह उन्हें पूरी फसल दे या ना दे। इसके अलावा कंपनी अच्छी गुणवत्ता के बीज कम दाम में उपलब्ध कराती है। कंपनी के लोग खेतों में आकर उन्हें यह भी बताते हैं कि कौन सी खाद का छिड़काव करना है और भी जानकारी देते हैं। इन सब के बावजूद फसल के दाम मार्केट में फिक्स रेट से ज्यादा होता है तो कंपनी उनकी फसल का रेट भी बढ़ा कर देती है।

गुरु और भी कंपनी के फायदे बताते हुए कहते हैं कि पिछले साल का उदाहरण देते हुए कि कंपनी ने 27.70 रुपए प्रति किलो की दर से हमें सीट दिया था। वही जिस रेट पर आलू खरीद नाते हुआ था उसके तहत 30 नवंबर तक 16 .64 रुपे, 1 से 15 दिसंबर तक 15.29 रुपे और 15 से 31 दिसंबर तक 14.9 रुपए का रेट तय था लेकिन आलू का मार्केट में दाम ज्यादा रहा इस कारण कंपनी ने हमसे दिसंबर में ₹24 प्रति किलो हिसाब से आलू खरीदा वहीं 30 जून तक जो आलू गया वह भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के रेट से ₹3 ज्यादा पर किसानों से खरीदा गया। इसके जरिए वे यह बताना चाहते है कि किसानों को कम्पनी कभी भी घाटे में नहीं जाने देती है।

आज छिंदवाड़ा के 500 से ज्यादा किसान पेप्सिको के साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रहे हैं। जो किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग नहीं कर रहे हैं उनसे इन किसानों की स्थिति ज्यादा बेहतर है। यह बात है कि छिंदवाड़ा जिले के किसान तो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करना चाहते हैं लेकिन कंपनी का अपना टारगेट होता है कि उन्हें साल भर में कितना आलू खरीदना है।http://topsuccessstory.com/hindi/

खेती करने पर गुरु के विचार 

गुरु बताते हैं कि वह अपनी किसानी से संतुष्ट और प्रसन्न है। वे बताते हैं कि अगर वह सिर्फ सरकारी नौकरी करते तो उनके पास मोटरसाइकिल होती लेकिन आज उनके पास बड़ा घर, गाड़ियां और जिले का सबसे बड़ा ट्रेक्टर है यह सब शायद वह अपनी नौकरी से नहीं पा सकते थे। वे कहते हैं कि लोगों को लगता है खेती, किसानी कमाने का अच्छा साधन नहीं है लेकिन वह कहते हैं इसे करते समय पारंपरिक तौर तरीके बदलने की जरूरत है आधुनिक तरीके से खेती करने की जरूरत है अगर वे ऐसा करेंगे तो मुनाफा मिलेगा।

सन 2019 में गुरु प्रसाद पवार को जिला व राज्य स्तर पर प्रगतिशील कृषक के तौर पर सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए भी अपनी और अन्य किसानों की आय बढ़ाने के लिए भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। https://wp.me/p9wTOX-3a

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सोनल शर्मा – किसान की बेटी बनी जज | खेती के काम के साथ की पढ़ाई | Sonal Sharma Success Story

डेयरी चलाने वाले कि बेटी बनी जज , गाय के तबेले में गोबर फेंकने से लेकर पिपे की टेबल बनाकर करती थीं पढ़ाई।

राजस्थान की झीलों की नगरी उदयपुर जिला मुख्यालय पर प्रताप नगर में दूध की डेरी चलाने वाले की बेटी सोनल शर्मा जज चुकी है जज।

सोनल शर्मा के बारे में जानकारी | Story of Sonal Sharma

सोनल उदयपुर के प्रताप नगर की रहने वाली है उनके पिता का नाम ख्यालीलाल शर्मा और माता का नाम जसबीर है सोनल का जन्म 7 दिसंबर 1993 में हुआ।माता पिता की इंटर रिलीजन मैरिज हुई थी जिसके कारण समाज में उन्हें कोई सम्मान नहीं दिया जाता था ना किसी शादी, समारोह और ना किसी बैठक में बुलाया जाता था लोगों का व्यवहार, लोगों की नजरें बहुत अजीब हुआ करती थी। सोनल जिस समाज से आती है वहां सरकारी नौकरी बहुत बड़ी बात थी सरकारी नौकरी को बहुत ही सम्मानजनक माना जाता था । अब क्योंकि उस समाज में उनके माता-पिता को कोई सम्मान नहीं मिल रहा था तो ऐसे में सोनल सरकारी नौकरी करके अपने माता-पिता को उनका सम्मान दिलाना चाहती थी ।

घर की माली हालत – आय का साधन 

घर में पैसे का ओर कोई साधन नहीं था केवल एक गाय का तबेला और डेयरी थी, जिसमे पूरे परिवार की परवरिश होती थी सोनल बचपन से ही अपने पापा की मदद करती थी गाय का गोबर फेकना, दूध निकालना, और तबेले कि साफ सफाई जैसे सारे काम सोनल किया करती थी अपने माता – पिता को काम करते देख वे सोचती थी कि मुझे काम भी करवाना है और साथ ही अपनी पढ़ाई में भी 100% देना है । और वे गयो के तबेले में ही खाली पीपे का टेबल बनाकर पढ़ाई किया करती थी

सोनल का स्कूल से लेकर कॉलेज तक का सफर 

सोनल सुबह 5 बजे उठती और गयो का सारा काम करती और फिर स्कूल जाती थी स्कूल में भी अपना 100% देती थी। वे सोचती थी कि जब पापा दिन – रात मेहनत कर सकते है तो मै क्यों नहीं में भी काम के साथ स्कूल में भी अपना 100% दूंगी। दसवीं कक्षा अच्छे अंकों से पास की और 11वी कक्षा में आर्ट बैकग्राउंड (art background) लिया और 12 वी कक्षा में अपना 100% देकर के स्कूल में टॉप किया और हिंदी में मैरिट सर्टिफिकेट मिला ,ये सर्टिफिकेट उन 100 बच्चो को मिलता है जिनको इंडिया में हाईएस्ट मार्क होते हैं और इकोनॉमिक्स में राजस्थान टॉप किया । “पर कहते है ना कि अभी तो नापी है बस मुठ्ठी भर जमी मैंने, अभी तो सारा आसमान बाकी है” अभी तो सिर्फ 12 वी में टॉप किया था अभी तो सरकारी नौकरी पाने के लिए बहुत कुछ करना बाकी था।12 वी के बाद कुछ पता नहीं था क्या करना है ।

ऐसे में एक सर ने बोला तू बोलती अच्छा है लॉ कर ले तो मैने लॉ में एडमिशन ले लिया और बोला पास में ही कॉलेज ले ले तो मैने कॉलेज ले लिया । मुझे सिर्फ पढ़ाई में ही टॉप नहीं करना था, मल्टी टैलेंटेड बनना था कल्चर एक्टिविटी होती थी तो उसमे हिस्सा ले लेती थी और डांस में भी पार्टिसिपेट कर लेती थी सोंग्स में साथ ही एंकरिंग भी कर लेती थी ।http://topsuccessstory.com/hindi/

सोनल के जीवन का टर्निंग पॉइंट –

टर्न पोइंट यह है कि जब वे हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के जज को आते हुए देखती थीं तो वे देखती थी उन्हे वह कितना सम्मान मिलता था, उनका कैसे स्वागत किया जाता था, कितनी इज्जत मिलती थी, ऐसे में उन्होंने वहीं से ठान लिया था कि अब मुझे कुछ नहीं करना बस आरजेएस ( RJS) फाइट करना है।

अब वे टीचर्स से कहती कि मुझे गाइड कर दो मुझे आरजेएस फाइट करना है तो टीचर कहते थे कि अभी तो तुम फर्स्ट ईयर में ही हो, लॉ स्टार्ट नहीं हुआ कैसे करोगी फर्स्ट ईयर निकला सैकंड ईयर निकला और थर्ड ईयर में थोड़ा लॉस आए लेकिन वो आरजेएस वाले लॉस नहीं थे अब फोर्थ ईयर में लॉस आए अब मन में लगी को आग और झुलसने लगी ।

परीक्षा की शुरुवात करने में आयी कठिनाईया

अब तैयारी शुरू करनी थी इतना बड़ा एग्जाम है लेकिन पढ़ाई कैसे करना है कोचिंग करना है क्योंकि आरजेएस की एग्जाम पास करना था साथ ही कॉलेज भी करना था। ऐसे में लोगों ने डिमोटिवेट किया लेकिन सोनल अपने पापा को अपना आइडियल बनाकर तैयारी में लगी रही ba.llb में टॉप किया। फाइनली आरजेएस 2017 वैकेंसी आ गई थी उसकी एग्जाम 2018 में परीक्षा हुई प्री निकाला, मेंस निकाला और इंटरव्यू भी निकाला लेकिन तीन नंबर से रह गई ।

पापा को आइडियल बनाकर तैयारी की 

लेकिन उन्होंने असफलता को अपनी ढाल बनाया और सेल्फ मोटिवेशन भी किया। वे सोचती थी कि जब इस उम्र में पापा इतना कुछ करते है तो मै तो कुछ भी कर सकती हूं ।सोनल के पापा ने अपने बच्चो को पढ़ाने के लिए बहुत अपमान सहन किया और कड़ी मेहनत की ।https://wp.me/p9wTOX-3a

रिजल्ट के बाद और तैयारी की और आरजेएस 2018 की 197 वैकेंसी आ चुकी थी इस बार 100% नहीं 200% देना था फिर से उन्होंने प्रि निकाला, मेंस निकाला, इंटरव्यू भी क्वालीफाई किया लेकिन एक नंबर से मेरिट आउट हो गई अब वह बहुत डिप्रेशन में चली गई थी और साथ ही साथ चिंतित भी बहुत थी डिमोटिवेट भी हो गई डिप्रेशन और डिमोटिवेट क्या होता है यह उन्होंने यहां देखा लेकिन पता चला कि 7 बच्चे छोड़ कर जा चुके हैं और मेरा एक ही नंबर कम था तो चांस बन सकता था ऐसे में उन्होंने पढ़ाई नहीं रोकी थी और मोटिवेट हुई । 2020 दिसंबर रिजल्ट आया और वे जज बन गई ।http://topsuccessstory.com/hindi/

कहते हैं ना कि- “लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालो की हार नहीं होती “ यह सुविचार यहां बिल्कुल सही सिद्ध होता है मेहनत करके कुछ भी किया जा सकता है सोनल ने भी अपनी कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की ओर वे अंततः जज बन गई। यह उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है जिनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है या किसी कारणवश कोचिंग सेंटर नहीं जा पाते। आज उनके पापा मम्मी के पास सोनल की बढ़ाई करने के लिए शब्द नहीं है ।वे बहुत खुश हैं।

सोनल शर्मा की उपलब्धियां

सोनल बचपन से ही बहुत होनहार थी उन्होंने एलएलबी में प्रदेश में टॉप रही महाराणा मेवाड़ चेरिटेबल भामाशाह अवार्ड भी मिल चुका है रिजल्ट आने से 1 दिन पहले ही उदयपुर के सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में हिस्सा लिया उसमें दो गोल्ड समेत तीन मेडल प्राप्त किए इन्हें चांसलर मेडल भी मिल चुका हैhttp://topsuccessstory.com/hindi/

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मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वातारोही , छोटे से गांव में पली बढ़ी , किसान की बेटी – मेघा परमार के संघर्ष की कहानी !

मेघा परमार  – किसान की बेटी  | Megha Parmar Success Story

जी हां मेघा एक ऐसी लड़की है जिसने अपने गांव का नाम अपने कठिन परिश्रम से पूरे देश मे रोशन किया

ये हैं मेघा जिसने अपने गांव का नाम प्रदेश में ही नहीं बल्कि पुरे देश में रोशन किया ।

मध्य प्रदेश की पहली बेटी जिसने ऐसा काम कर दिखाया जो अभी तक किसी ने नहीं किया । उन्होंने अपने कठिन परिश्रम और अपने सपने के प्रति लगन से दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की फतह हासिल ।

मेघा एक छोटे से गांव से है यह गांव मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से कुछ ही दूर सिहोर जिले से कुछ ही दूर है छोटा सा गांव भोजनगर । भोजनगर एक ऐसा गांव है जहां की आबादी महज 100 घरों में 1500 लोगो के बीच है ।

मेघा एक छोटे से गांव भोजनगर के साधारण से परिवार से है मेघा के पापा का नाम दामोदर परमार और मां का नाम मंजू परमार है उसके पापा किसान है और मां ग्रहणी है। वो कहती हैं कि मुझे गर्व है कि में एक किसान कि बेटी हूं। लेकिन मेघा के सपने साधारण नहीं थे और उसके सपने की तरह उसके हौसले भी बहुत बड़े थे । उसका लक्ष्य ऐवरेस्ट की चोंटि तक पहुंचना था तो इरादा भी एवरेस्ट की तरह मजबूत था । फिर भी यह सब इतना आसान नहीं था।लेकिन मेघा कि जिद और जुनून के कारण वह एवरेस्ट की चोटी पर फतह हासिल कर चुकी है उसने अपने सपने को भी पूरा किया और दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर तिरंगा लहराया ।मेघा ने बुधवार सुबह 10 बजकर 45 मिनिट पर माउंट एवरेस्ट की चोटी (जो कि 29 हजार 29 फिट ऊंची है) पर तिरंगा लहराया ओर साथ ही सीहोर कि मिट्टी और पत्थर भी वहां रख दिया ।

कैसे आया आयडिया- तो मेघा बताती है कि घर में परवरिश के समय भाई को ज्यादा अच्छे से रखते उन्हे रोटियो पर घी लगाकर दिया जाता था और लड़कियों को बिना घी के दी जाती है और पूछने पर कहा जाता था कि तुम क्या करोगी, क्या नाम रोशन करोगी तुम तो लड़की हो एक दिन ससुराल चली जाओगी ।तो मेघा ने सोचा कि में ये अंतर हटा कर रहूंगी। ऐसे में मेघा ने सोंचा की में भी कुछ करके दिखाऊंगी अपने पापा का और अपने गांव का नाम रोशन करूंगी। ऐसे में उसके भाई सीहोर रहते थे तो उन्हे कामवाली के हाथ कि रोटियां अच्छी नहीं लगती थी तो मेघा को 12वीं के बाद रोटी बनाने के लिए सीहोर छोड़ दिया और साथ में कॉलेज भी कर रही थी ऐसे में उन्होंने अखबार में देखा कि दो लडको ने माउंट एवरेस्ट फतह किया तो मेघा सोंचा की अभी तक मध्य प्रदेश कि कोई भी लड़की टॉप ऑफ द वर्ल्ड पर नहीं गई, किसी लड़की ने ऐसा नहीं किया क्यों ना मै ये करूं। और मेघा कॉलेज में हर क्षेत्र में हिस्सा लेती थी और वो यह चाहती थी कि में स्टूडेंट ऑफ द ईयर बनु तभी उसे एवरेस्ट पर चढ़ने का आयडिया आया।

 

शुरुवात कैसे हुई – सिहोर आने के बाद मेघा ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कि शुरुवात में तो किसी ने भी पूरी जानकारी नहीं दी बाद में धीरे – धीरे उसे पूरी जानकारी प्राप्त हुई ।पहली बार मेघा ने बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स अटल बिहारी इंस्टीट्यूट से ट्रेनिंग शुरू कि और यह 28 दिन का होता है वहां हर चुनौती से कैसे लड़ना है यह सीखाते है उसके बाद दो और एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स और 6 थाउजेंड की दो माउंटेन शाइन करना कंपल्सरी होता हैं ये सब करने के बाद अब बारी आती है 25लाख रुपए की तो किसी ने उसे बताया कि जो सोनी लोग होते हैं उनके पास बहुत पैसे होते है वो शायद कुछ मदद कर दे तो मेघा ने 500 ऐसे लोगो कि लिस्ट बनाई और उनके पास गई और बोली आप मेरी मदद कर दो जब ने एमपी कि पहली महिला बन जाऊंगी तो तो आपने नाम होगा और आपकी ब्रांड भी पापुलर ही जाएगी लेकिन ऐसे में बस उसे 15हजार रुपए ही मिले ।वल्लभ भवन और कहीं जगह गई वहीं से एक अधिकारी की नजर उस पर पड़ी तो उससे पूछा कि तुम यहां वहां क्यों जाती हो तो मेघा ने बताया कि मुझे एवरेस्ट की चढ़ाई करनी है फिर उसे मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से मदद मिली

24 साल की मेघा के सामने चुनौतियां भी कम नहीं थी लेकिन उन्होंने हार न मानते हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान दिया और मदद के लिए माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष एसआर मोहंती के पास पहुंची तो वे चोक गए कि मध्य प्रदेश के छोटे से गांव कि लडकी इस बारे में भी सोच सकती हैं और इतने बड़े सपने रखती है । उन्होने मेघा के हौसले, जिद और सपने के प्रति लगन को देखकर उसकी मदद की और मेघा को एनसीसी के अधिकारियों के पास भेजा ।मेघा ने अब पीछे मुड़कर नहीं देखा अपने सपने को पाने के लिए मेहनत करने लगी लेकिन यहां एक ओर चुनौती उसके सामने आई पैसे की । इस चुनौती में भी आईएएस मोहंती ने मेघा को एक फंड का सुझाव दिया और अनुमति दिलाने से लेकर पैसे दिलाने तक मोहंती जी ने उसकी बहुत बड़ी मदद की । इसलिए मेघा ने एवरेस्ट फतह करने के बाद सबसे ज्यादा आईएएस मोहंती को याद किया धन्यवाद दीया । मेघा की इस सफलता में एसआर मोहंती जी की बहुत बड़ी भागीदारी रही ।मेघा अपने साथ आईएएस मोहंती ओर उनकी पत्नी की फोटो भी ले गई थी एवरेस्ट की चोटी को छूने के बाद मेघा ने उनके तस्वीर के साथ फोटो क्लिक कर शेयर की ।

अब वो भोपाल से मनाली गई वहां भी उसके सामने एक चुनौती थी कि कोई सीट खाली नहीं थी वो वेटिंग में थी बाद में एक व्यक्ति नहीं आया और उसे सीट मिल गई। फिर बाद में वहा के टीचर्स ने पूछा कि तुम यह इतनी दूर क्यों आती जबकि कोई सीट खाली नहीं थी हम तुम्हे वापस जाने को भी कह सकते थे तो मेघा ने उन्हें बताया कि में यह काम करके ट्रेनिंग ले लेती लेकिन कुछ भी करके में कोर्स कर लेती ।

2018 में अधिकारी ने मदद की ओर माउंट एवरेस्ट के लिए गई और कहते हैं ना कि पहाड़ों में दर्द कहा नहीं जाता सहा जाता है चुनौतियां बहुत अलग हो जाती है वहां जूते भी 2-2 किलो के होते हैं और बेग 25 – 25 किलो के होते है हर क्षेत्र पर हार्ट पंप करने लगता है चार के होते हैं एक पर बर्फ पिघलाकर पानी पीते हैं और ड्राई फ्रूट वगैरह कुछ नहीं पच पाता है तो वहां सिर्फ जूस पीकर ही चढ़ाई करते हैं कैंप 370 डिग्री का ग्रेडियन होता है 7900 मीटर के बाद ऑक्सीजन बिल्कुल खत्म हो जाता है वहां से डेथ जॉन (death zone start) हो जाता है । सबसे बड़ी चीज होती है कि ग्लेशियर में डेड बॉडी तभी हुई होती है और ग्लेशियर के मूवमेंट करने पर डेड बॉडीज निकल के बाहर आ जाती है कहीं दफा डेड बॉडी के बगल से निकलना पड़ता है और कई दफा ऊपर से निकलना पड़ता है तब कैंप 4 पर पहुंचते हैं यदि वहां लिमिटेड ऑक्सीजन होती है तो तू सक्सेसफुल होगा वरना हो सकता है कि आप कभी वापस भी ना आए इन सब चुनौतियों के बाद भी 2018 में मेघा का मात्र 700 मीटर माउंट एवरेस्ट रह गया। वापिस आ गई क्योंकि उन्हें शेरपा ने बोला था की जिंदगी रही तो पहाड़ वही है हम दोबारा आ जाएंगे।लेकिन मैंने हार नहीं मानी फिर से मनाली इंस्टिट्यूट गई 1 जुलाई को उनकी रीढ़ की हड्डी में फ्रैक्चर हो गया था मेघा ने बताया कि जिंदगी का सबसे दर्द भरा सफर मनाली से दिल्ली और दिल्ली से भोपाल तक का रहा इतना दर्द मुझे कभी नहीं हुआ होगा। घर पर फोन किया स्टेशन से तो पापा ने कहा घर मत आना ऐसे में उन्हें अपने टीचर के घर रहना पड़ा जब वो फ्रैक्चर से पीड़ित थी तो उनके टीचर मूवी लगा कर चले जाते थे और मेघा मूवी देखा करती थी वह बताती है कि हमेशा अच्छा देखना, अच्छा सुनना चाहिए जैसा हम सुनते हैं, देखते हैं, वैसा ही करते हैं “चक दे इंडिया” मूवी के डायलॉग को उन्होंने याद रखा और “मांझी: द माउंटेन मैन” की मूवी का डायलॉग “जब तक तोडूंगा नहीं, तब तक छोडूंगा नहीं”(Untill I break it….. Till then I won’t leave it…) उन्होंने अपना डायलॉग बनाया “जब तक चढ़ूंगी नहीं, तब तक छोडूंगी नहीं” इसी दौरान उसके पास उसके कोच सर मिलने आए और पूछा क्या तुम अब भी चढ़ाई करना चाहती हो तो मेघा बोला मैं छोडूंगी नहीं में करूंगी।

मेघा को बस अपने लक्ष्य पर ध्यान देना था अपने मोबाइल में तीन नंबर थे और ना कोई त्योहार मनाया ना दिवाली, ना होली फोकस मतलब फोकस । ग्राउंड, नौकरी और शाम की ट्रेनिंग और खाना बनाने के बाद सो जाती थी पुरानी चुनौतियों के साथ इस बार फाइनली 22 मई सुबह 5:00 बजे 2019 में माउंट एवरेस्ट टॉप पर थी । अब भी मेघा कि चुनौतियां कम नहीं हुई थी उसका जो चश्मा था (सनग्लास) धक्का-मुक्की में गिर गया था ऐसे में माउंट एवरेस्ट पर होते हैं तो सूरज की किरणें बर्फ पर पड़ती है और रिफ्लेक्ट होता है जिसके कारण आंखों की रेटिना झुलस जाती है जिसमें जिंदगी भर के लिए अंधे हो सकते हैं या 4 या 1 दिन के लिए भी आंखों की रोशनी जा सकती है । मेघा के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ आंखों से पानी निकल रहा था और गाइड ने कहा बहन हमें बिना रुके जल्दी – जल्दी चलना होगा क्योंकि अक्सीजन लिमिटेड बची थी कैंप 4 में पहुंचे तो शाम हो चुकी थी तो उन्हें केंप 4 में रुकना पड़ा। डेथ जॉन वहां बहुत डेड बॉडी होती है । कैंप 3 और 4 के बीच में मेघा के पास ऑक्सीजन खत्म हो चुकी थी ऐसे में मेघा के गाइड ने मदद मांगी और वहां गाइड के दोस्त के साथी कि मौत हो चुकी थीं तो उनका आक्सीजन सिलेंडर मेघा को दे देते है और सिलेंडर चेंज करते हैं । ये रही मेघा के सबसे कठिन परिश्रम की कहानी ।

यह सबसे प्रेरित करने वाली कहानी है एक बार में नहीं हुआ तो मेघा ने फिर से कोशिश कि और पूरे देश मे अपने छोटे से गांव का नाम रोशन किया अब मेघा मध्यप्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही है और महिला एवं बाल विकास विभाग मध्यप्रदेश बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया । इसी कड़ी में मेघा ने राष्ट्रीय ध्वज के साथ “trust me” (समाज बेटियों पर भरोसा करे, बेटियां असंभव कार्य को भी सफलतापूर्वक करती हैं) का संदेश प्रसारित किया।

धन्यवाद ।

लॉकडाउन की वजह से कई लोगो कि गई नोकरी जिनमें से कुछ लोगो ने अपना बिजनेस स्टार्ट किया –

आज हम जानेंगे एक ऐसे व्यक्ति की succes story के बारे में जिन्होंने लॉकडॉउन की वजह से अपनी नोकरी खो दी और अपनी खुद की कंपनी स्टार्ट की

प्रशांत एक ऐसे व्यक्ति है जिन्होंने lockdown की वजह से अपनी नोकरी खो दी फिर भी हार नहीं मानी ।

प्रशांत महाराजगंज जिले के एक छोटे से गांव के रहने वाले है जमीन जायदाद ज्यादा नही है चार बहनों की शादी और कमाने वाले अकेले पापा इन्हीं सब कारणों को वजह से शहर आ गए और शुरू से ही आप्टिकल की कंपनी में काम किया । पचास हजार रुपए महीना सैलरी थी लगातार 16 साल कंपनी में काम किया और अब lockdown कि वजह से अपनी नोकरी खो दी

नौकरी चली गई थी अब परिवार को चलाने के लिए और बच्चो के भविष्य के लिए कुछ तो करना ही था ऐसे में उन्होंने खेती से जुड़े कुछ काम ( जैसे डेयरी फार्मिंग ) के बारे में भी सोंचा पर कुछ हासिल नहीं हुआ।

अब जिस कंपनी में वे काम कर रहे थे उस कंपनी में जो लोग उनके साथ काम कर रहे थे उन्हीं से उन्होंने चर्चा की तो उन लोगो ने अपना नजरिया बताया की आप्टिकल में ही कुछ न कुछ काम करना चाहिए क्योंकि उनके पास 16 साल का अनुभव भी था ऐसे में उन्होंने खुद को कंपनी खोलने का निर्णय लिया पर कंपनी स्टार्ट करने के लिए पैसे को जरूरत थी और साथ ही रिस्क लेने का डर भी था

ऐसे में उन्होंने अपने पापा से बात की। इनका नाम है ओम प्रकाश श्रीवास्तव उनके पापा ने बताया जिसमे अनुभव हो वही काम करो

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने अपने बेटे को बिजनेस स्टार्ट करने के लिए प्रेरित किया और अपना रिटायरमेंट फंड भी प्रशांत को दे दिया

अब कंपनी स्टार्ट करने के लिए पैसो की जरूरत थी

पैसों के लिए FD तुड़वाई अपने पापा का रिटायरमेंट फंड भी लिया और अपनी पत्नी की सेविंग्स भी ली यहां तक कि उधार भी लिया तब जाकर कंपनी स्टार्ट की ।

कंपनी स्टार्ट करते वक्त कुछ लोगो ने डिमोटिवेट भी किया और कुछ ने कहा अभी कंपनी स्टार्ट मत करों पर प्रशांत ने ठान लिया था कि लॉकडाउन में कुछ तो करना है।

प्रशांत पहले की कंपनी में up बिजनेस हेड की भूमिका में काम करते थे उस समय 20 -22 लोगो ने उनके कहनें पर अलग अलग कंपनी से नौकरी छोड़कर अप्टिकल की कंपनी में काम किया।

ऐसे में उन्होंने पहले उन 20 – 22 लोगो को ही ऑफर दिया और क्योंकि कंपनी नई थी तो ज्वाइन करने के लिए कोई प्रैशर भी नहीं था पर उन लोगो ने प्रशांत पर भरोसा किया और उन्हें ज्वाइन किया ।

यह कंपनी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनव में फैजाबाद रोड पर मटियारी गांव से पहले बालाजीपुरम कॉलोनी के टू बिएचके घर में आप्टिकल कंपनी का ऑफिस बना हुआ हैं ऑफिस अभी छोटा है लेकिन कंपनी के एमडी प्रशांत श्रीवास्तव से लेकर अकाउंटेंट तक बैठते हैं और वे कहते हैं कि कंपनी अभी छोटी है पर 2025 तक हर बड़े से बड़े शहर में ऑफिस खोलेंगे । अभी कंपनी में पूरे प्रदेश में 22 लोगों कि टीम काम कर रही हैं।

Company के बारे में जानकारी-

प्रशांत बताते हैं कि अलग अलग शहरों में अपने परिचित डाक्टरों से बात करके उनके हॉस्पिटल और क्लीनिक में अपना आउटलेट खोला लगभग आधा दर्जन शहरों में उनके आउटलेट है।

अब हर महीने लगभग 22 से 25 लाख की सेल चश्मे और लेंश की होती है। सबकी सैलरी , कम्पनी का फायदा और खर्चे निकालकर उनके पास सवा लाख रूपये बचते हैं

हर महीने 25 लाख रुपए की सेल और सवा लाख रुपए की बचत होती हैं यह एक बहुत बड़ी अचीवमेंट है।

आज हम बात करेंगे आईपीएस अधिकारी सचिन अतुलकर जी की सफलताओ के बारे में –

सचिन अतुलकर का जन्म 8 अगस्त 1984 में भागलपुर, भोपाल में हुआ था ।

उन्होंने स्नातक कि पढ़ाई वाणिज्य (बी कॉम) से उत्तीर्ण किया हैं

IPS बनने वाले विद्यार्थियों के लिए वे एक प्रेरणा स्रोत है

उन्होंने बताया कि उन्होंने ग्रेजुएशन के बाद किया अटेंप्ट और पहली बार में ही सफल हुए।

सिविल सेवा परीक्षा 2006 में उन्होंने 258 रैंक प्राप्त की थी

मात्र 22 साल की उम्र में बने आईपीएस और वे पुलिस डिपार्टमेंट में बहुत ही जानेमाने अधिकारी बन चुके हैं

अपनी हैल्थ और बॉडी को लेकर वो अधिकतर चर्चा में रहते हैं आजकल के लड़के लड़की उनकी पर्सनालिटी के दीवाने हैं

वे अपनी हैल्थ को लेकर बहुत ही सजग रहते हैं और वे योगा भी करते हैं ताकि उनका दिमाग स्वस्थ रहें और सभी लोगो को भी योग करने के लिए जागरूक करते हैं

उन्होंने लोकडाउन के समय भी लोगो को जागरूक करने के लिए बहुत से काम किए जैसे की आप ऊपर 👆 फोटो में देख सकते हैं

सिर्फ सिविल सेवा में ही नहीं उन्होंने खेल जगत में भी बहुत से 🏅 गोल्ड मेडल प्राप्त किए हैं

नेशनल लेवल के क्रिकेट प्लेयर भी रह चुके हैं उन्होंने 1999 में इन्होंने नेशनल लेवल पर क्रिकेट खेला और गोल्ड मेडल भी जीता था।

यही तक नहीं सचिन घुड़सवारी यानी horse riding का भी शौक रखते हैं घुड़सवारी में भी उन्होंने गोल्ड मेडल प्राप्त किया है।

सचिन अतुलकर के पिता फॉरेस्ट सर्विस (भारतीय वन सेवा अधिकार) से रिटायर है ओर उनके भाई भारतीय सैना में पदस्थ है।

सचिन अतुलकर युवाओ के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत है इनसे प्रेरणा लेकर अधिकतर युवा सिविल सेवा में अपना योगदान देंगे।