यहां दिल्ली से ग्रेटर नोएडा एक फार्म है जिसका नाम है सोनी पाल में इसकी विशेषता यह है कि यहां देसी नस्ल गाय जैसे गीर साहिवाल थारपरकर जैसी गाय रखी गई है
वैष्णवी सिन्हा इस गौशाला की संचालक है, जो कि पिछले 20 सालों से गोल्फ की प्लेयर रही हैं। इन्होने देश में ही नहीं विदेशों में भी गोल्फ खेला है गोल्फ गेंद क्लब से खेले जाने वाला एक व्यक्तिगत खेल है जिसमें खिलाड़ी तरह-तरह के क्लाबो का प्रयोग करते हुए गोल्फ के मैदान में दूरी पर स्थित एक छेद में गेंद को डालने का प्रयत्न करते हैं।
फार्म का नाम शून्य कैसे पड़ा – इस फार्म का नाम शून्य इसलिए पड़ा क्योंकि वहां पर किसी प्रकार का केमिकल और रसायन इंपयोरिट का उपयोग नहीं करते लोगों को शुद्ध और बिना मिलावट की सामग्री उपलब्ध कराते। जिससे कि लोगों को भी अच्छी गुणवत्ता का दूध प्राप्त करने में परेशानी नहीं होती। यही कारण है कि फर्म का नाम शून्य फार्म रखा।
1960 में देसी गायों से थोड़ा दूर हुए जब व्हाइट रिवोल्यूशन आई। क्वालिटी के लिए देसी गायों से दूर है। जब लोगों ने कहा कि जर्सी गाय एचएफ गाय रखो और क्वांटिटी बढ़ाओ पर क्वांटिटी से कुछ नहीं हो सकता क्वालिटी भी जरूरी है, लाइफ ऑफ क्वालिटी खत्म हो गई इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों ना देसी गायों का फॉर्म खोला जाए और लोगों तक क्वालिटी का दूध पहुंचाया जाए।
गायों के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध – इस फॉर्म में गायों के लिए हर तरह की आरामदायक सुविधा रखी गई है। अधिकतर फॉर्म में गायों के लिए जगह कम होती है या गायों को बांधकर रखा जाता है, लेकिन इस फॉर्म में गायों को बांधकर नहीं रखा जाता तथा उन्हें अपने तरीके से जगह पर रहने के लिए सुविधा है। उनका पूरा प्रयास यही है कि गायों को नेचुरल वातावरण दे। जैसे की गायों के लिए पेड़ों की छाया तथा मिट्टी उपलब्ध है, जहां उन्हें बैठना हो वहां बैठ सकती है धूप में या छांव में कहीं भी बैठ सकती है। जब उन्हें खाना हो तब वह खा सकती है हमेशा हरा चारा उपलब्ध रहता है गायों के बगल में हमेशा उनके बछड़े रहते हैं, हमेशा पानी भी उपलब्ध रहता है, जब भी पानी खत्म होता है तो अपनेआप वाल सिस्टम के द्वारा आ जाता है पानी ठंडा रहता है साथ ही चुने की लेप भी हुई होती है, जिससे कि पानी में कैल्शियम की मात्रा भी बनी रहती है और पानी में कीटाणु भी नही होते।

गायों के लिए ग्रूमिंग ब्रश भी उपलब्ध है, जिससे कि जब गायों को खुजली होती है तो वह उस ब्रश के पास जाती है जिससे कि वह अपने आप घूमने लगता है यह गायों के लिए बहुत ही अच्छी सुविधाएं हैं ।
गायों को बीमारी होने पर क्या करते हैं – जब भी गायों को बीमारी है कुछ भी होता है तो ज्यादातर देसी इलाज करते हैं जैसे हल्दी एंटीसेप्टिक नेचुरल तरीके से नीम गिलोय भी खिलाते हैं लिहाजा ज्यादा से ज्यादा उपयोग देसी इलाज का ही किया जाता है अगर ज्यादा इमरजेंसी होती है तो निश्चित ही एलोपैथिक पर आना पड़ता है तो भी फिर वे उस गाय का दूध अलग रखते हैं।
खाने के लिए गायों को हर दिन हरा चारा और साथ में भूसा भी दिया जाता है। प्रत्येक गाय 20 – 20 kg हरा चारा खाती है दाना में चौकर, चूरी, जौ, खल, चना और पौष्टिक चीजें दी जाती है गायों के खान-पान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
गायों की पहचान कैसे करें – गिर गायों की पहचान काफी आसान होती है इनके सिंह सीधे नीचे जाते हैं बाकी गायों में सिंग ऊपर जाते हैं। उनके कान नीचे जाकर मिलते हैं, गिर गायों के कान पर सिक्का भी रख सकते हैं। इनका सिर (माथा) उल्टा तवे के शेप का होता है। तथा गलकंबल ढीला होता है जिससे गर्मी बर्दाश्त कर सकते हैं गीर गाय काली, कबरी (सफेद धब्बे होते हैं), रेड और शुद्ध सफेद रंग की भी होती है।

कैसे आया फॉर्म का आईडिया – वैष्णवी सिन्हा बताती है कि उन्होंने अपने नाना को देखा वह 81 साल के हैं वह उनके साथ घूमते हैं सारी एक्टिविटी करते हैं फुल ऑफ एनर्जी में रहते हैं जब वह अपने नाना से पूछती हैं कि इतना एनर्जेटिक रहने का क्या राज है तो वे बताते हैं, कि उन्होंने बचपन में जो खाया – पिया उसकी वजह से वह एनर्जेटिक रहते हैं। जो पहले मिलता था और जो अब मार्केट में मिलता है उसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। यही वैष्णवी जी को बड़ा चुभता था। फिर सोचती थी कि फिर आगे उनकी जनरेशन या ओल्डेज कैसी रहेगी। आजकल की जनरेशन जो खा रही है उनका फ्यूचर कैसा होगा। यह सोचकर उन्होंने फॉर्म करने का सोचा और इसलिए वे इस फील्ड में आई।
फॉर्म खोलते वक्त आई कठिनाइयां – नाना – नानी को फॉर्म के बारे में पता चला तो वह बहुत गुस्सा हुए, उनको ऐसा लगता था कि यह उन्नति के खिलाफ है क्योंकि उन्हें लगता था कि वह गांव से पढ़ लिखकर शहर आए बच्चों को पढ़ाया और पोते पोतियो को पढ़ाया और वह फिर से गांव में ही जा रहे हैं तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। लेकिन जब वैष्णवी सिंह के फॉर्म में इतना कुछ बदलाव हुआ और वह सक्सेस हुई तो उन्हें अच्छा लगा और अब वह फॉर्म आते हैं तो कहते हैं, यही सही तरीका है यह बहुत जरूरी भी है यह बहुत सी ऐसी परेशानियों से भरा रहा क्योंकि अब अच्छी गाय ढूंढने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी। साहिवाल गाय ढूंढने के लिए उन्हें ढाई साल लगे और फिर गिर गाय भी ढूंढने में भी कठिनाई हुई ।
वैष्णवी सिन्हा बताती है कि अगर देसी गाय चाहिए तो पॉपुलर या फेमस जगह पर मत जाइएगा। जब गाय लेने जाते हैं तो बहुत से व्यापारी धोखा दे देते हैं तो उसमें उन्होंने बताया अब वे जागरूक हो गई है। आपको 10 से 15 दिन लगेंगे किसानों के एक-एक घर जाइए और पता कीजिए कि उनके पास देसी गाय मिलेगी या नहीं अगर उनके पास गाय नहीं होगी तो किसी और के बारे में बताएंगे कि उनके पास अच्छी क्वालिटी की गाय मिल जाएगी और वे यह भी बताती है कि बल्क से गाय नहीं लेनी चाहिए।
पैकेट और गाय के दूध में अंतर – वैष्णवी जी ने बताया कि गाय के दूध मैं एक अलग ही टेस्ट होता है जो कि पैकेट के दूध में नहीं होता। गाय के दूध का टेस्ट करने पर मीठा लगता है, वैष्णवी जी कहती है कि जब मैं दूध टेस्ट करती हूं तो मुझे लगता है जैसे दूध में चीनी मिली है जबकि सामने ही दूध निकाला जाता है पैकेट के दूध में और गाय के दूध में सबसे बड़ा डिफरेंस स्वाद का होता है। देसी गायों के दूध में फैट ज्यादा होता है दूध क्रीमी होता है जब कि विदेशी गायों के दूध में नहीं होता। ग्राहक की बहुत डिमांड होती है एक बार ट्राई करने के बाद ग्राहक उनके पास ही आते हैं, काफी पेशेंट्स भी आते हैं कि उन्हें देसी गाय का दूध चाहिए कुछ तो ऐसे भी ग्राहक आते हैं कि उन्हें केवल काली कपिला गाय का दूध चाहिए।

गाय के गोबर और गोमूत्र से भी बनाए प्रोडक्ट – गोबर और गोमूत्र को वेस्ट में नहीं जाने देते, उससे जीवामृत, ब्रह्मास्त्र, निमास्त्र, बीजामृत बनाते हैं जैसे कि गोअर्क इनकी भी काफी डिमांड होती है लेकिन अभी वह सेल नहीं करते।
वैष्णवी सिन्हा का लोगों के लिए संदेश – वे बताती हैं कि अगर आप इस फील्ड में आना चाहते हैं तो धीरे-धीरे शुरुआत करें। पहली बार में बहुत ज्यादा इन्वेस्टमेंट ना करें और ऑर्गेनिक फार्मिंग से जरूर जुड़े केवल डेरी ना करें। इससे फार्मिंग में गाय के अपशिष्ट से काफी फायदा होगा। धीरे-धीरे करके गाय खरीदे, सोच समझकर गाय लेना चाहिए ना कि जल्दबाजी करें। दूध को बायप्रोडक्ट ट्रीट करें ना कि मैन प्रोडक्ट ट्रीट करें। वह बताती हैं कि इस फॉर्म में फायदा तो बहुत है, लेकिन पूरे मन से काम करना पड़ेगा मेहनत करनी पड़ेगी तभी फायदा होगा इस काम में बहुत ज्यादा स्कोप है। लोगों को यह भी कहना चाहती हैं कि A1 मिल्क पर ही डिपेंड ना रहे A2 मिल्क को भी एक बार ट्राई करें A2 मिल्क हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
डेरी के साथ (जैविक खेती) ऑर्गेनिक फार्मिंग की भी शुरुआत – जैविक खेती हमारे यहां बहुत पुरानी पद्धति है। वैष्णवी सिन्हा जी को खेती के बारे में कोई जानकारी नहीं थी उनका खेती का बैकग्राउंड नहीं था। लेकिन वे बहुत सारे फॉर्म साइट्स पर गई और जानकारी ली, 2 से 3 महीने में उन्होंने गायों और फार्मिंग के बारे में जानकारी प्राप्त की। गाय के अपशिष्ट से बायोमेट्रिक द्वारा जीवामृत, नीमस्त्र, ब्रह्मास्त्र, बीजामृतबनाया जाता है जिससे खेती होती है। उनके पास 40 से 50 तरीके के फल और पेड़ है, जिसमें औषधि वाले पौधे तथा सब्जियां भी है बहुत कुछ है वहां। कस्टमर जो होते हैं, जो फॉर्म के फल या सब्जी खाते हैं वह तो वह कहते हैं कि “यहां के फल वा सब्जी खाने से तो गांव की याद आ गई या बहुत सालों के बाद यह स्वाद मिला” यह बहुत अच्छा कमेंट होता है। ग्राहकों को केमिकल खेती के बारे में वह कहती हैं कि हमें यह नहीं करना चाहिए, इससे प्राप्त होने वाले फल सब्जी देखने में अच्छे लगते हैं लेकिन हेल्थ के लिए ठीक नहीं होते। यहां पर केला, पपीता और साथ ही 8 तरह के आम भी है जैसे लंगड़ा, दशहरी, जोश, मल्लिका, हुस्नारा, वह चाहती है कि किसान वहां आए और वहां उन्हें अच्छी नस्ल के पौधे ले सके।
यह एक बहुत ही अच्छी पहल है । युवाओं के द्वारा खेती करने के तरीके में बदलाव करना तथा लोगों को जागरूक करना एक बहुत ही अच्छी सोच को प्रेरित करता है और इससे लोगों का भी मनोबल बढ़ेगा । जहां लोग खेती को छोड़कर शहरों में जा रहे हैं वहां वैष्णवी सिन्हा जैसे युवा को देखकर लोग भी खेती के लिए प्रेरित होंगे।इससे हमें या लोगों को देसी और शुद्ध सब्जी फल दूध और बहुत सारे लाभकारी प्रोडक्ट्स प्राप्त हो सकेंगे।

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