उम्मुल खैर : एक प्रेरणा
एक ऐसी लड़की जिसने आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को अपनी सफलता का प्रथम चरण बनाया।
आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता सफलता की दो महत्वपूर्ण कुंजिया है लेकिन किसी गंभीर बीमारी से जूझते हुए अपने अंदर आत्मविश्वास पैदा करना एवं आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं होता है। उम्मुल खैर अजेले बोन डिसऑर्डर बीमारी के साथ पैदा हुई, ये एक ऐसी बीमारी है जिसमे व्यक्ति की हड्डिया कमजोर हो जाती है। हड्डिया कमजोर होने की वजह से गिरने या झटके लगने की बजह से फेक्चर होने की ज्यादा सम्भावना होती है। यही कारण है की उम्मुल को अठ्ठाइस वर्ष की उम्र में पंद्रह से ज्यादा फेक्चर हो चुके है। इतनी जटिल बीमारी से जूझने के बाद भी उम्मुल ने उम्मीद नहीं छोड़ी, उन्होंने अपने भीतर आत्मविश्वास जगाया और आत्मनिर्भर बनकर देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 420 वी रैंक हासिल की। एक ऐसी परीक्षा जिसमे हर सुविधाओं से सुसज्जित व्यक्ति भी प्रथम प्रयास में सफलता प्राप्त नहीं कर पता लेकिन राजस्थान के छोटे से गांव पाली में जन्मी उम्मुल जिसको बीमारी अपने जन्म के साथ ही उपहार में मिली उसने अपने पहले ही प्रयास में 420 वी रैंक हासिल कर के साबित कर दिया की आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भर होकर व्यक्ति जीवन की सारी कठिनाईयो को पार कर सकता है।
उम्मुल का संघर्ष भरा बचपन
उम्मुल का बचपन दिल्ली के घुग्गी इलाकों में बीता, उम्मुल के पिता फुटपाथ पर मूंगफली बेचा करते थे। सन 2001 में अतिक्रमण की बजह से बहुत झुग्गियां टूट गयी उनमे से एक झुग्गी उम्मुल की भी थी, झुग्गी टूटने के बाद उम्मुल का परिवार किराय के माकन में रहने लगा उस वक्त उम्मुल सातवीं कक्षा में पढ़ती थी। घर में आर्थिक तंगी होने के कारण उम्मुल का परिवार नहीं चाहता था की उम्मुल आगे पढाई करे लेकिन उम्मुल आगे पढ़ना चाहती थी। हमारे देश में अमूमन गरीब एवं मध्यमबर्गी परिवार, लड़कियों को अधिक शिक्षित नहीं करना चाहते उनका मानना होता है की आगे चलकर शादी होने के बाद लड़कियों को सिर्फ घरेलू काम करने होते है, इसलिए शिक्षा का कोई महत्व नहीं रह जाता। उम्मुल ने अपने परिवार के आगे न पढ़ने के फैसले को नकार कर स्वयं ही अपनी पढाई का खर्च उठाने का फैसला लिया और अपने आसपास के बच्चो को ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। उम्मुल अपने ट्यूशन से जितना भी पैसा कमाती सारा अपनी पढाई में खर्च कर देती।
माँ का देहांत
आर्थिक समस्यों और बीमारी से जूझ रही उम्मुल के ऊपर कठनाईयो का पहाड़ तब टूटा जब उनकी माँ का देहांत हो गया। उम्मुल का अपनी सौतेली माँ के साथ रिश्ता अच्छा नहीं था और घर में आर्थिक समस्यों के चलते पढाई आगे जारी रखना उम्मुल के लिए बहुत मुश्किल होता जा रहा था। इसी कठिन समय ने उम्मुल को आत्मनिर्भर बनाया।
आत्मविश्वास से आत्मनिर्भरता का सफर
उम्मुल में आत्मविश्वास की कोई भी कमी नहीं थी, जहाँ लोग जीने की उम्मीद छोड़ देते है वहाँ उम्मुल ने अपने सपनो को साकार करने के लिए और अपनी पढाई आगे जारी रखने के लिए अपना घर छोड़कर पूर्ण आत्मनिर्भर बनने का निर्णय लिया। नवी क्लास में ही घर छोड़कर उम्मुल एक अलग कमरा किराय से लेकर रहने लगी, अपना खर्च उठाने के लिए वह रोज 8 -8 घंटे ट्यूशन पढ़ाने लगी।
विकलांग बच्चो के स्कूल से गार्गी कालेज तक का सफर
उम्मुल पांचवी कक्षा तक विकलांग बच्चो के स्कूल में पढ़ी फिर आठवीं कक्षा तक एक मुफ्त स्कूल अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढ़ी, उम्मुल आठवीं कक्षा में स्कूल टॉपर थी इसलिए उन्हे पूर्ण स्कॉलरशिप के साथ एक प्राइवेट स्कूल में दाखिला मिल गया। उम्मुल ने इस स्कूल में भी अपनी प्रतिभा दिखाई और कक्षा दसवीं में 91% तथा कक्षा बारहवीं में 90% अंक प्राप्त किये। उम्मुल ने बाहरवीं के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कालेज में साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन की।
आईएएस बनने तक का सफर
जब उम्मुल गार्गी कालेज में थी तब उन्होंने अलग – अलग देशो में दिव्यांग लोगो के कार्यक्रम में भारत के प्रतिनिधित्व किया। अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद जेएनयू में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स के लिए एडमिशन लिया, जेएनयू के हॉस्टल का चार्ज काम होने की बजह से अब उम्मुल को ज्यादा टूशन नहीं पढ़ाना पड़ता था। अपनी M.A. पूरी करने के बाद उम्मुल ने जेएनयू में ही एमफिल करने के लिए दाखिला लिया। बर्ष 2014 में उम्मुल का जापान के इंटरनेशनल लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम में चयन हुआ, पिछले 18 साल में इस प्रोग्राम में सिर्फ 3 भारतीयों का चयन हुआ है। इस प्रोग्राम के जरिये उम्मुल दिव्यांग लोगो को यह सिखाती थी कैसे आत्मनिर्भर होकर इज्जत की जिंदगी जीयी जाए। एक साल के ट्रेनिंग प्रोग्राम के बाद उम्मुल बापिस भारत आयी और अपनी एमफिल की पढाई पूरी की। एमफिल पूरी होने के बाद उम्मुल जेएनयू से ही पीएचडी करने लगी। जनवरी 2016 में उम्मुल ने IAS की तैयारी शुरू की और अपने पहले प्रयास में ही देश की सर्वोच्च प्रसाशनिक सेवा परीक्षा में 420 वी रैंक हासिल की।
दायित्व निर्वहन
IAS में चयन के बाद उम्मुल ने अपने माता पिता के प्रति अपने दायित्वों को निर्बहन करना का फैसला लिया। उम्मुल ने वो सब कुछ भुला दिया जो उनके माता पिता ने उनके साथ किया था, उम्मुल अब बस दुनिया की हर सुविधा अपने माता पिता को देना चाहती है।
उम्मुल खैर और उनके जैसी तमाम लड़किया हमारे समाज को पूरानी एवं परांपरागत सोच को बढ़ने के लिए मजबूर करती है और उन सभी के लिए प्रेरणा बनती है जो अपनी समस्याओ या किसी बीमारी के चलते जीवन को जीना छोड़ देते है।
उम्मुल खैर एवं उनके जैसी सभी लड़कियों को मेरा सत सत नमन!!!